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हमारी कार्यपालिका आखिर ज़मीनी स्तर पर योजनाओं को लागू क्यों नहीं कर पाती है?

गाँंव से कस्बा, कस्बे से नगर और नगर से तमाम महानगर। मेरी कुछ इसी तरह की शैक्षणिक और कार्य संबंधी यात्रा रही है। जीवन पुलकित होना उस दिन से प्रारंभ हुआ जब राजस्थान के बगड़ में गाँधी फेलोशिप के कैंपस, पीरामल स्कूल ऑफ लीडरशिप की दहलीज़ पर कदम रखा। प्रवेश करते ही उत्साह दो गुना हो गया और आकांक्षाएं कुलांचे भरने लगीं। 

मेरा सफर

मैं उत्तरप्रदेश के साहित्य मनीषियों और क्रांतिकारियों की जन्मभूमि और कर्मभूमि उन्नाव के छोटे से गाँव गपचियापुर बल्लापुर का रहने वाला हूं। मैंने अपनी उच्च शिक्षा छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर के “पी. पी. एन. महाविद्यालय” से “समाजशास्त्र” विषय में परास्नातक प्रथम श्रेणी और प्रथम स्थान के साथ वर्ष 2017 में पास की।

स्नातक स्तर पर राष्ट्रीय सेवा योजना में दो वर्ष का योगदान दिया, फिर महाविद्यालय स्तर पर विभिन्न खेलकूद प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। बतौर एथलीट मैंने दो बार स्वर्ण पदक प्राप्त किया। 

अंकित कुमार

कार्य अनुभव के रूप में जुलाई 2017 से मई 2019 तक गाँधी फेलोशिप में फेलो की भूमिका में स्वयं को संयोजित किए रहा। गाँधी फेलोशिप में गुजरात के खेड़ा ज़िले में “ज़िला रूपांतरण कार्यक्रम” में सरकारी अधिकारी तंत्र, CRC (cluster resource coordinator) तथा BRC (Block resource coordinator ) के साथ “शिक्षा व्यवस्था” एवं सामुदायिक विकास को समझने तथा ज़मीनी स्तर पर विभिन्न योजनाओं का क्रियान्वयन कैसे होता है उसकी समझ विकसित की। तंत्र से लेकर समुदाय तक विभिन्न स्तरों पर काम कैसे होता है? उसका अनुभव लिया।

मैं उत्तर प्रदेश के ऐसे भू-भाग या समुदाय से ताल्लुक रखता हूं जहां आज़ादी के 73 वर्ष बाद आज भी पीने का साफ पानी और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं भी मयस्सर नहीं हैं। हालांकि वर्ष 2018 में बिजली की पहली झलक मिल गई है।

विद्यालय और अस्पताल तो आशा की झलकियों में भी नहीं हैं। शायद मैं खुशकिस्मत था कि मेरे किसान माता-पिता ने अपना पेट काटकर, पूंजी जुटाते हुए दसवीं के बाद मुझे आगे की शिक्षा के लिए गाँव से से 80 किलोमीटर दूर कानपुर शहर भेजा। जहां मैं ग्रामीण समाज और शहरी समाज को अलग-अलग परिप्रेक्ष्य से देख पाया। 

मैंने लघु शोध प्रबंध “ग्रामीण विकास कार्यक्रम एवं महिला” विषय पर किया

स्नातक स्तर की शिक्षा मैंने जंतु विज्ञान, वनस्पति विज्ञान तथा रसायन विज्ञान विषयों के साथ उत्तीर्ण की लेकिन अपने ग्रामीण जीवन, समाज तथा वहां की स्थितियों ने मुझे अत्यधिक उद्वेलित कर दिया। जिसने मुझे समाज, शहरी समाज व ग्रामीण समाज, विभिन्न विकास योजनाओं व उनके क्रियान्वयन आदि के अध्ययन की ओर उन्मुख किया।

इसके परिणामस्वरूप मैंने परास्नातक में समाजशास्त्र विषय का अध्ययन किया तथा विभिन्न परिप्रेक्ष्यों से समस्याओं को समझने का प्रयास किया। तदनन्तर मैंने अपना लघु शोध प्रबंध “ग्रामीण विकास कार्यक्रम एवं महिला” विषय पर सम्पन्न किया।

परास्नातक के बाद मुझे गाँधी फेलोशिप में आने का मौका मिला यहां मैंने संरचित रूप में विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत काम किया। ग्रामीण समुदाय में व्याप्त विभिन्न समस्याओं का अध्ययन और योजनाओं के क्रियान्वयन में आ रहे अवरोधों का भी विश्लेषण किया।

इन सभी से जो एक अंतर्दृष्टि बनी उसने सामाजिक क्षेत्र  में संस्थागत रूप से कार्य करने हेतु प्रेरित किया। इसी क्रम में राज्य रूपांतरण कार्यक्रम के अन्तर्गत हरियाणा सरकार के साथ जुड़ा और साथ निर्माण समुदाय से जुड़ने का मौका मिला। 

हरियाणा में काम करते हुए राज्य शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद, हरियाणा स्कूल शिक्षा परियोजना परिषद और ज़िला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के साथ कार्य करने का अनुभव प्राप्त हुआ।

जिसमें लोकनीति, योजना क्रियान्वयन, गवर्नेंस और ज़िला स्तर पर स्थापित पूरे तंत्र से जुड़ने का अवसर प्राप्त हुआ। गाँधी जी की विचारधारा से प्रेरित समुदाय और उसकी समस्याओं को समझने की उत्कंठा सदैव बनी रही। इसी उत्कंठा ने निर्माण और उसकी कार्यशाला का हिस्सा बनने की ओर अग्रसर किया।

शोधग्राम की एक तस्वीर

“निर्माण” से जुड़ना 

वैसे निर्माण से जुड़ने की कहानी भी दिलचस्प है। जनवरी वर्ष 2019 में मैंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई द्वारा आयोजित एक सामाजिक मेले (सोशल फेस्ट) में हिस्सा लिया। जिसमें नायना ( डॉ. अभय बंग ) ने एक सत्र का संपादन किया और अपने कार्य एवं जीवन यात्रा के विषय में विस्तृत वर्णन किया।

मैं हतप्रभ रह गया। ऊर्जावान अनुभव करने लगा। डॉ. अभय बंग का व्यक्तित्व, विचार और कार्य सब कुछ कितना सहज और कितना विशिष्ट था। मैं भावविभोर हो उठा और मन ही मन निर्माण से जुड़ने लगा, साथ ही नायना से व्यक्तिगत रूप से मिलने को आतुर हो उठा। 

उस दौरान मैं गाँधी फेलोशिप कार्यक्रम में कार्यरत था। अतः मैंने निश्चय किया इसके समाप्त होते ही निर्माण में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करूंगा और अगस्त 2019 में मैंने अपना आवेदन दिया, इसके बाद दिसंबर 2019 में प्रथम कार्यशाला के लिए महाराष्ट्र के गढ़चिरौली की ओर प्रस्थान किया।

यात्रा के पूर्व और उसके दौरान विचार और प्रश्नों का एक क्रम चलता रहा। शोधग्राम पहुंचकर समस्त अनिश्चितताएं एक-एक करके धूमिल हो गईं, इस तरह मेरी प्रथम कार्यशाला संपन्न हुई। निर्माण की प्रथम कार्यशाला के अनुभव अविस्मरणीय हैं।

भवन की संरचना, निर्माण समुदाय से जुड़े लोग, सभी का वैचारिक मंथन, नायना और अम्मा (डॉ. अभय बंग और डॉ. रानी बंग) का मार्गदर्शन और सेवाग्राम से शोधग्राम की यात्रा रोमांचकारी रही। गाँधी जी के विचारों को ज़िंदा रखने में इसकी अहम भूमिका है। बहरहाल मैंने निर्माण के बारे में अपने अनुभव से उपजे विचारों को निम्न शब्दों में पिरोया है।

आओ करें ‘निर्माण’ हम!

होकर एक प्राण हम।
भले पथ अनेक हैं
उद्देश्य सबके एक हैं
अभी मिली पहली किरण

होगा सूर्य का अवतरण
इस रवि की खोज में

अंत के अनंत में,
खुद हों क्यूं निष्प्राण हम!
आओ करें निर्माण हम,
होकर एक प्राण हम।

आओ करें प्रयास हम
ना रहे कोई भ्रम
खुद पर रखें विश्वास हम।
साथ-साथ सब चलें
आश की लहरें उठें!
यह अभी प्रारंभ है
अंत हो क्या भला,

ना भीड़ है, ना व्यक्ति है
निर्माण की ये शक्ति है
सामर्थ्य को है खोजना
असाध्य को है साधना

नहीं कुछ अनर्थ है
सभी का तो अर्थ है
कार्य बस करते रहें
वही दें प्रमाण हम
आओ करें निर्माण हम
होकर एक प्राण हम।

अब दिशा सूचक भी है
नहीं कोई भ्रम है,
कभी हार कभी जीत
बस यही तो क्रम है
बंद थे भवन में अब तक
खोल दें किवाड़ हम।
आओ करें निर्माण हम
होकर एक प्राण हम।

प्रतीकात्मक तस्वीर

इस निर्माण करने की प्रक्रिया में स्वयं के निर्माण और समाज के निर्माण में योगदान देने के लिए मैं दृढ़ हुआ। गाँधी जी की ग्राम स्वराज की संकल्पना को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित हुआ।

वर्तमान में मैं “महात्मा गाँधी नेशनल फेलो” के तौर भारतीय प्रबंध संस्थान बंगलौर से जुड़ा हुआ हूं। जबकि फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश में कार्यरत हूं। जिसमें केंद्र और राज्य आयोजित रोज़गार एवं ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के ज़िला स्तर पर क्रियान्वयन में संलग्न हूं।

शोधग्राम स्थित निर्माण कार्यशाला का दृश्य

भविष्योन्मुखी योजनाओं में समुदाय विकास सम्बन्धी योजनाओं का अध्ययन करना तथा उनके सही रूप में क्रियान्वयन के लिए कार्य करना प्रमुख उद्देश्य है।

मैं सुशासन (गुड गवर्नेंस) के लिए काम करना चाहता हूं। इससे सम्बंधित मेरे स्वयं के विभिन्न अनुभव रहे हैं जैसे कि हमारी कार्यपालिका द्वारा विभिन्न योजनाओं की उद्घोषणा कर दी जाती हैं लेकिन उनका सही रूप में क्रियान्वयन ना हो पाने के कारण ज़मीनी स्तर तक आते-आते वह प्रभावी नहीं रहतीं।

इसी संदर्भ में मैं लोकनीति के विषय पर शोध कार्य के माध्यम से अपना योगदान देने के लिए आतुर हूं। आम जन जो कि दूर दराज़ के किसी गाँव में हैं, वह भी इस आस में हैं कि यह स्थिति कब और कैसे बदलेगी? उसकी भी बची खुची आशा की किरण धूमिल ना हो।

इसके लिए मैं उस वेदिका की तलाश में हूं जो संरचित रूप से इन स्थितियों का अध्ययन कर सके। साथ ही इसके उत्थान में योगदान देने हेतु सक्षम बना सके तथा स्थिति के रूपांतरण के लिए उत्प्रेरित करे।

अंकित कुमार ‘यायावर’ 

वर्तमान- महात्मा गांधी नेशनल फेलो आईआईएम, बंगलौर

भूतपूर्व- गाँधी फेलो, खेड़ा (गुजरात)  

Email ID – ankity818@gmail.com


NIRMAN –

The goal of the NIRMAN program is to contribute to the flourishing of youth in India, facilitate their search for pro-social purpose and nurture them as social contributors. 

The selection process for the next batch of NIRMAN is going on right now. To join in the participants have to fill up an introspective application form and a first of kind youth purpose questionnaire.

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