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काश सियासत से हम मंदिर-मस्जिद के बदले अस्पताल मांग पाते!

मैं एक हिन्दू हूं। कल कोई कट्टर मुस्लिम मेरी हत्या कर सकता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आज कट्टर हिन्दू मुझे गाली देते हैं, क्योंकि कट्टर हर हालत में कट्टर ही होता है। समाज का साधारण हिन्दू और मुसलमान दोनों के लिए कट्टरता बुरा है। यदि आप समाज में शांति चाहते हैं, तो कोशिश कीजिए आपके बच्चें कट्टर ना बनें।

समाज के आम लोगों को कट्टर और संप्रदायिक लोगों से हमेशा खतरा रहा है। हमारे आम लोगों को इससे बचना चाहिए, क्योंकि कट्टरता किसी भी तरफ बढ़ेगा उसके हत्थे आम लोग चढ़ेंगे।

इस देश ने हजारों दंगे देखे हैं। कभी एक नेता नहीं मारा गया। कभी दंगाई नहीं मारे गये। हमेशा उनका कत्ल हुआ जिन्हें ना राजनीति पता थी ना अच्छे से धर्म। दंगे कभी बिना मकसद के नहीं होते। और देश में कभी कोई दंगा आम लोगों ने नहीं किया।

ईश्वर को प्राप्त करने के लिए जगह की कमी रही ही नहीं!

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

आस्था जब तक अपनी खुशी के लिए है, ठीक है। अब ठहर जाइए, बस करिए। गाँव में सड़कें नहीं हैं मगर आपके मस्जिद के मीनार बड़े हैं। ना जाने कितनी  ऐसी मस्जिदें हैं! आपके पास सजदा के लिए कभी जगह की कमी नहीं है। कमी है तो सिर्फ इमान की। आप सच में अल्लाह को खोजना ही नहीं चाहते।

घर घर मंदिर है। ना जाने घरों में कितने लाख मंदिर हैं। कभी ईश्वर को प्राप्त करने के लिए जगह की कमी रही ही नहीं! आप ईश्वर को खोजते ही नहीं हैं। आप खोजते हैं मौका सिर्फ दिखावे की।

ठीक है मंदिर बन जाएगा। बतौर मुसलमान आपको बुरा लगा होगा मगर क्यों? हटिए इस विमर्श से। रोज़ पांच वक्त नमाज़ पढ़िए। आम मुसलमान अल्लाह की इबादत चाहता है। कट्टर मुसलमान सब कुछ चाहता है मगर अल्लाह के प्रति उसका रुझान नहीं है।

मंदिर बन जाएगा। मंदिर तो हमारे घरों में भी है। साधारण हिन्दू रोज़ पूजा करता है। सूर्य को जल चढ़ाकर प्रार्थना करता है। उसका विवाद से कोई लेना देना नहीं है और जो कट्टर हिन्दू है उसका धर्म से कोई लेना देना नहीं है।

दंगे मकसद के लिए होते हैं और वर्चस्व के लिए होती है सियासत

नफरत की सड़क पर चलने वाला कभी ईश्वर को प्राप्त ही नहीं कर सकता है। सबको मालूम है कि हम सब ईश्वर के ही संतान हैं। तो नफरत क्यों फैलाएं? दंगो को देखकर क्या ईश्वर खुश होता होगा? इस धरती पर वर्चस्व के लिए लड़ाई हुई। दंगे मकसद के लिए होते हैं और वर्चस्व के लिए होती है सियासत।

इसलिए सियासत से वही मांगिए जो आपकी जरुरत है। अबतक आपकी जरुरत मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर हैं। इसलिए पुरी दुनिया में वही सब मिल रहा है। जिस दिन आपकी जरुरत बदलेगी आपको सियासत वही देगी।

इसलिए मैं मानता हूं कि अगर आज यह विषय चरम पर है, तो इस देश के हिंदू-मुसलमानों की ज़रूरत यही सब विषय रही है। इसलिए मुबारक के पात्र तो आप सब हैं। फैसला मंदिर का आया तो हिंदू खुश और मस्जिद का आता तो मुसलमान खुश होते।

खुश तो कोई ना कोई अपनी ज़रूरत के लिए ही होता! आपने एक विषय को इतना ज़रूरी बनाया कि सियायत उसको ही पूरा करने में लग गई। तो इसमें किसी को नाराज़ करने वाली बात मैं लिखकर भी तो गलत ही करूंगा।

अब बस करिए। सांप्रदायिकता को ठहरने दीजिए। फिर से कभी कोई ऐसी गैर ज़रूरी मुद्दे पर ना टीक जाइएगा। नागरिक होने के नाते ज़रूरी मुद्दों पर शोर मचाइएगा। कट्टर अपने बच्चों को ना बनाइएगा। तभी विश्वगुरु बन पाइइगा और शिक्षित स्वस्थ हिंदुस्तान पाइएगा।

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