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13 साल की नाबालिग दलित बच्ची के रेप पर पूरा देश चुप क्यों है?

दलित है? छोड़ो-छोड़ो इसका केस मज़बूत नहीं बनेगा। यह किसी फिल्म का डायलॉग नहीं, बल्कि मेरे दोस्त राजू जाटव के गाँव का आंखों देखा हाल है जहां दलित लड़कियों को सरेआम ज़मींदार उठा कर ले जाते हैं और मासूमों का भक्षण करते हैं। पुलिस के पास जाओ, तो वह सबसे पहले जाति पूछते हैं। फिर उसके बाद शुरू होता है अपराधों का तांडव।

13 साल की नाबालिक के साथ हुआ रेप

फिलहाल की बात करें, तो एक वीभत्स घटना सामने आई है। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के ईसानगर थाना क्षेत्र के पकरिया गाँव की घटना है। जहां 13 साल कि दलित बच्ची से बलात्कार करके उसके बाद उसके शरीर को क्षत-विक्षत कर दिया। फिर हत्या कर दी और शव को गन्ने के खेत में फेंक दिया।

प्रतीकात्मक तस्वीर

वह बच्ची दोपहर में शौच करने गई थी। बहुत देर तक जब वह नहीं आई तो उसके परिजनों ने थाने में शिकायत दर्ज करवाई। परिजनों के मुताबिक उसके दुपट्टे से गला घोंट रखा था और पैर बंधे हुए थे। आंखों पर भी चोट के निशान पाए गए हैं।

परिजनों का कहना है उसकी आंखें निकाल ली गईं थीं और जीभ काट दी गई थी लेकिन पुलिस इस बात को नकार रही है। पुलिस ने बताया कि अभियुक्तों को हिरासत में ले लिया गया है और मामले की जांच चल रही है।
वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने ट्वीट किया,

“यूपी के लखीमपुर खीरी के एक गाँव में दलित नाबालिग के साथ दुष्कर्म के बाद फिर उसकी नृशंस हत्या अति दुखद और शर्मनाक है। ऐसी घटनाओं से सपा और वर्तमान भाजपा सरकार में फिर क्या अंतर रहा? सरकार आज़मगढ़ के साथ खीरी के दोषियों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई करे, बीएसपी की यह मांग है।”

महिलाओं को अब भी जाना पड़ता है शौच के लिए बाहर

शौच करने के लिए गाँव की महिलाओं को बाहर क्यों जाना पड़ता है? कहां गए वो दावे जिसमें यह कहा गया था कि हर घर में शौचालय होंगे। किसी को बाहर जाने की ज़रूरत नहीं है। क्या यह महज चुनावी हथकंडा था जो मासूमों की जान लेकर पूरा किया जा रहा है। कहां गया सबका साथ सबका विकास?

विकास हो रहा है लेकिन सिर्फ उनका जो पहले से ही विकसित हैं। देश के हुक्मरान क्या कर रहे हैं? यहां बेटियों की और उनके इज़्ज़तों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। मुझे अपनी आंखों पर गुस्सा आता है कि यह अब तक जीवित हैं। क्या यही सब देखने के लिए?

जिसका कोई अपना जाता है उसको ही महसूस होता है। हम लिख लेंगे लिखकर छप जाएगा बस। उनका क्या होगा? जिसकी बेटी की इतनी बेरहमी से हत्या कि गई। यह वही भारत है जहां निर्भया को इंसाफ मिलने में 8 साल लग गए।

यह वही भारत है जहां औरतों को ज़िंदा जला दिया जा रहा है। यह वही भारत है जहां औरतें सर्दियों की रात में दूधमुंहे बच्चे को गोद में सुलाकर धरना करती हैं। यह वही भारत हैं जहां पर किसी गर्भवती महिला को जेल में रहने के कारण कुलटा कहा जाता है।

कहां हैं भगवान और खुदा?

माँ दुर्गा, माँ लक्ष्मी, माँ पार्वती और यह भी तो महिलाओं का ही रूप हैं। इनसे आप पुण्य की आशा मत रखें। आप कितनी भी पूजा कर लें कितनी भी इबादत कर लें, ना तो आपके भगवान खुश होंगे और ना आपके खुदा। समाज इतना पथरीला हो गया। इसमें मौजूद अपराधियों का दिल भी नहीं पसीजता कि वे क्या करने जा रहे हैं?

वहीं बात अगर दलित की आ जाए, तो फिर पूछिए मत सारी नफरतें इनके लिए ही ज़ाहिर हो जाएंगी। वर्ण, जाति क्या है यह सब? आज अगर मैं बहुत ऊंची उपाधि पर हूं और अमीर हूं, तो कोई भी मेरी जाति के लिए नहीं पूछेगा। चाहे मैं दलित ही क्यों ना रहूं। मगर यह बात भी सत्यापित नहीं होती राम मंदिर के शिलान्यास में देश के राष्ट्रपति को न्यौता ही नहीं मिला था। वजह ! सिर्फ “दलित”।

वहीं अगर मेरे बुरे दिन आ गए तो समाज मुझे नोच खाएगा, तब बात आएगी तुम्हारा धर्म क्या है? अगर मैं मुस्लिम बोलूंगा तो बात की तफ्तीश वहीं खत्म कर दी जाएगी और शोषण शुरू। अगर मैं हिन्दू बोलूंगा, तो इसके विषय में दूसरा सवाल होगा किस जाति से? अगर मैंने बोल दिया मैं दलित हूं। फिर मेरा शोषण शुरू।

समाज कितना बिखर गया है। देश में दलित, मुस्लिम और भी ना जाने किन-किन शब्दों के विष से भरे हुए तीर और तलवारों का बोलबाला है। समानता, एकता, प्रेम, सहानुभूति और अपनेपन की लाशें समाज के हर चौराहे पर पड़ी हुई हैं। देश मर रहा है और नफरत का विष फैलता ही जा रहा है।

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