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जानिए आखिर क्यों मनाया जाता है विश्व मानवता दिवस?

“बड़ी चीज़ो की तलाश मत करो, बस छोटे कामों को बहुत प्यार से करो। छोटी चीज़ जितनी बड़ी होगी, हमारा प्यार उतना ही बड़ा होना चाहिए।” – महात्मा गांधी

पूरे विश्व में यह दिवस प्रत्येक वर्ष 19 अगस्त को मनाया जाता है। यह दिन हम मानवता को समर्पित करते हैं। यह दिन इंसानियत का दिन है। यह दिन उन लोगों को समर्पित किया जाता है जो वास्तव में हीरो हैं। साधारण शब्दों में कहें तो “रियल हीरो।”

विश्व मानवता दिवस का एक महवत्पूर्ण उद्देश्य है, ऐसे लोगों की पहचान करना जो हमेशा से दूसरों की मदद करने में मुखर रहे हों। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उनके जज़्बे में कोई कमी नहीं आती हो। एक वैश्विक अभियान जो मानवतावादियों को मनाता है- यह एक “धन्यवाद” है उन लोगों के लिए जिन्होंने दूसरों की मदद करने के लिए अपना जीवन दांव पर लगाया है।

महामारी के इस दौर में बढ़-चढ़कर आगे आए हैं मानवतावादी लोग और संगठन

वर्ष 2019-2020, यह वर्ष सम्पूर्ण विश्व में ‘महामारी वर्ष’ के रूप में उल्लेखित हुआ। पूरा विश्व जानता है कि यह कितना भयानक वर्ष रहा है। कितनी ही जानों को कोरोना वायरस निगल चुका है। कितने ही घर वीरान हो गए हैं।

लाखों अभियान चलाए गए। संघर्ष, असुरक्षा, पहुंच की कमी और COVID -19 से जुड़े जोखिमों के बावजूद जीवन को बचाने के लिए मानवतावादी अभियान चलाने वाले लोगों ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

यह साल कोविड-19 के कारण दुनिया भर के मानवीय कार्यों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। दुनिया भर में सरकारों द्वारा उपयोग और प्रतिबंधों की कमी के परिणामस्वरूप समुदायों, नागरिक समाज और स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों ने मानवता कि अनेक मिसाल पेश की इसलिए यह अभियान मानवीय मानवता की प्रेरक व्यक्तिगत कहानियों को प्रस्तुत करता है, जो कोविड-19 का इलाज और रोकथाम कर रहे हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

ज़रूरतमंद लोगों को भोजन प्रदान करते हैं, लॉकडाउन में महिलाओं और लड़कियों के लिए सुरक्षित स्थान प्रदान करते हैं, बच्चों को खाना वितरित करना, टिड्डियों से लड़ना, बिहार में इसी दौरान बाढ़ ने एक विकराल रूप ले लिया है। इस समय देश में सबसे ज़्यादा भयावह हालात बिहार के हैं।

इस राज्य पर दोहरी मार पड़ रही है। मगर राज्य सरकार की नीतियों की बात को छोड़ दें, तो वहां पर आम नागरिक और समाजसेवी संस्थाएं आगे आ रही हैं और मदद भी कर रहीं हैं। यह मानवतावादी विचारधारा के लोग हैं। जिन्हें सियासत का भूत नहीं सवार, बल्कि लोगों कि जान की परवाह है।

हम सब जानते हैं सम्पूर्ण विश्व इस महामारी से जूझ रहा है, मगर बात करें अगर देश की, तो हमको यहां उनमें मानवता नज़र आ रही है जिनसे हमको उम्मीद नहीं और जिनसे हम आशा रखते हैं कि हमको विपदाओं से निबटने में मदद करेंगे वह लोग चुप बैठे हैं। उनकी चुप्पी तेज़-तीखे शब्दों में बता रही है, “हम स्वार्थी हैं, हमारे भीतर कि मानवता समाप्त हो चुकी है।”

आज जब बात मानवता कि आती है, तो याद आते हैं देश के शहीद सैनिक, डॉक्टर्स और नर्सेज। भारत में कोरोना काल में मरने वाले डॉक्टर्स और नर्सेस को मेरी भावभीन श्रद्धांजलि। जो आज विश्व मानवता दिवस पर याद आ रहे हैं।

दिल्ली में कोरोना मरीज़ों कि जान बचाते-बचाते शहीद हुए डॉ जावेद अली ने अपनी जान गंवाई। वहीं, अप्रैल 2020 में इंदौर के डॉक्टर शत्रुघ्न ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया। वहीं कई पुलिसवाले जान कि बाज़ी लगाकर क्राइम को हैंडल करने के लिए पूरे लॉकडाउन के दौरान गश्त लगाते देखे गए।

विश्व मानवता दिवस का इतिहास

विश्व मानवता दिवस पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मनाया गया। इसके लिए वर्ष 2008 में A/46/L.49 एक प्रस्ताव पारित किया गया था। इस प्रस्ताव को स्वीडन ने प्रायोजित किया था। दरअसल, आज से 17 साल पहले इराक की राजधानी बगदाद में आज के दिन यानी 19 अगस्त, 2003 को संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय पर हमला किया गया था।

इस हमले में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के 22 सहकर्मी मारे गए थे, जिनमें इराक में UNO महासचिव के विशेष प्रतिनिधि सर्जियो विएरा डी मेलो की भी बम विस्फोट के कारण मृत्यु हो गई। इसके बाद से 19 अगस्त को विश्व मानवता दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया गया।

इस वर्ष और आज ही के दिन से हम सभी को इस वैश्विक मानवता दिवस के मौके पर शपथ लेनी चाहिए। हम मानवता के लिए कार्य करेंगे। वर्तमान में विश्व कि स्तिथि कोई अच्छी तरफ इशारा नहीं कर रही, बल्कि एक खतरे कि तरह आगे बढ़ रही है।

लोगों से मेरी अपील है कि धर्म और जाति के आधार पर अपने देश के वज़ीर-ए-आजम को ना चुनें। मानवता के धर्म से बढ़कर कोई धर्म नहीं। मानवता के आधार पर प्रभावशाली इंसान का चयन करें। जो वास्तव में मानवतावादी हो। अन्यथा देश को बर्बाद होने से कोई नहीं रोक सकता।

कभी भी धर्म के नाम पर नियमों और मान्यताओं के जाल में फंसकर आप अपनी मानवता को खत्म मत कीजिए। यदि आपके अंदर से इंसानियत या मानवता खत्म हो जाएगी, तो आप इंसान नहीं रहेंगे।

दर्शन शास्त्र में साफ शब्दों में कहा गया है कि मानवता हमेशा से नैतिकता को प्राथमिकता देती है। जिसे हम आजकल कि भाषा में “मोरैलिटी” कहते हैं। इसमें अलौकिकता और धर्मिक हठधर्मिता को पूरे सिरे से खारिज किया हुआ है, तो आज से अपनी सोच का औज़ार उठाएं और निकल पड़ें किसी कि मदद करने। शायद यह पहला कदम होगा अपकी मानवीय क्रिया का।

“यह वास्तविक जीवन के नायक असाधारण समय में महिलाओं, पुरुषों और बच्चों की मदद करने के लिए असाधारण काम कर रहे हैं जिनके जीवन में संकटों का सामना करना पड़ता है।” – एंटोनियो गुटेरेस

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