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क्या राहुल गाँधी दोबारा बनेंगे कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष?

इस विषय पर चर्चा करने से पहले पार्टी के इतिहास और उनके कर्मठ नेताओं के काम पर संक्षित्प में प्रकाश डालना ज़रूरी है। भारत के स्वंत्रता संघर्ष में कांग्रेस पार्टी ने बढ़चढ़कर भूमिका का निर्वहन किया था।

इस पार्टी का प्रतिनिधित्व करके पंडित जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गाँधी और सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे अनुभवी और महान नेतृत्व ने देश में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक समानता स्थापित करने और देश के अल्पसंखयक समुदाय के हितों की रक्षा के लिए संघर्ष किया। कालांतर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को कई बार तोड़ने का प्रयास किया गया लेकिन इंदिरा गाँधी जी ने पार्टी को अपने अस्तित्व पर कायम रखा।

देश में कांग्रेस की बहुमत सरकारें 1989 तक चलीं लेकिन उनके पश्चात गठबंधन की सरकार का दौर चला और विभिन्न प्रादेशिक दलों ने रष्ट्रीय स्तर पर सरकार बनाने और गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन इसी के मध्य कांग्रेस ने भी अपने नेतृत्व में वृहद् स्तर पर बदलाव किया।

सोनिया गाँधी ने अपने नेतृत्व में दिलाई थी कांग्रेस को सफलता

सोनिया गाँधी, राजीव गाँधी की मौत के बाद हमेशा राजनीति से दूर रहीं लेकिन पार्टी के कार्यकर्त्ता और वरिष्ठ नेताओ की अनुशंसा पर 1998  में कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के साथ ही सक्रीय रूप से राजनीति में प्रवेश किया।

1998 के अध्यक्ष पद के चुनाव में सोनिया गाँधी ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में राजेश पायलट और शरद पवार को हराकर विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश की सौ वर्ष पुरानी पार्टी की अध्यक्ष बनीं। सोनिया गाँधी पार्टी अध्यक्ष के ओहदे को स्वीकार करने के तुरंत बाद कांग्रेस को सशक्त और धरातल पर शक्तिशाली बनाने के काम में जुट गई।

प्रतीकात्मक तस्वीर

परिणाम स्वरूप पार्टी को 2004 के 14वीं लोकसभा के चुनाव में 543 सीटों में से 145 सीटें प्राप्त हुई और देश में कांग्रेस और अन्य दलों के गठबंधन के साथ यूपीए की सरकार बनी। ठीक उसी प्रकार 2009 के 15वीं लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस ने 206 सीटें जीतकर कर दोबारा देश में सरकार बनाई।

लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को पराभव का सामना पड़ा और इसी के साथ ही पार्टी में शीर्ष नेतृत्व के बदलाव पर चर्चा शुरू होने लगी। अतः कांग्रेस अध्यक्ष पद में बदलाव  के साथ ही दिसंबर 2017 में राहुल गाँधी ने पार्टी अध्यक्ष पद की कमान संभाली।

राहुल गाँधी के अध्यक्ष बनने से चला पार्टी में युवाओं को दौर

राहुल गाँधी के अध्यक्ष पद पर आने के बाद कांग्रेस पार्टी में युवाओं का दौर चला और कांग्रेस में युवाओ की भागीदारी में वृहद स्तर पर वृद्धि हुई। दुर्भाग्यवश 2019 के लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को दोबारा मुहकी खानी पड़ी और इसी कारण राहुल गाँधी ने जुलाई 2019 में कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।

कांग्रेस को दोबारा एक बार राष्ट्रीय स्तर तथा धरातल पर सशक्त होने की आवश्यकता है जिसके लिए पार्टी को एक सकुशल नेतृत्व की आवश्यकता है जो आने वाले 2024 के लोकसभा के चुनाव में भाजपा सरकार को मुहतोड़ जवाब दे पाए।

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी विडम्बना देश के युवाओं को कांग्रेस की विचारधारा से जोड़ना है, क्योंकि वर्तमान सरकार राजनीति में अपनाए जाने वाले नीतिमत्ता, नैतिकता, संवैधानिकता और लोकतान्त्रिक मूल्यों को दरकिनार करके मिथ्या प्रचार के माध्यम से देश के युवाओ को ‘मुंगेरी लाल के हंसी स्वप्न’ की भांति आकर्षित कर रही है।

क्या दोबारा से राहुल गाँधी बनेंगे अध्यक्ष?

राहुल गाँधी के द्वारा अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देने के बाद भी वे सत्ताधीन सरकार की नीतियों पर तंज, आलोचना और प्रश्न जन हितार्थ में उठाते रहे। देश में कोरोना महामारी के दौरान घोषित किए गए असफल लॉकडाउन में भी उन्होंने सरकार के निर्णयों और क्रियाकलाप पर वाजिब और उचित प्रश्न उठाए, जिसे देश के लोगो ने स्वीकार भी किया।

राहुल गाँधी, तस्वीर साभार: गेटी इमेजेज

विशेष तौर पर GST के कारण देश के सामान्य वर्ग पर पड़े प्रभाव, निरंतर गहराता आर्थिक संकट, लद्दाख की पूर्वी सीमा पर भारत चीन सम्बन्धो में तनाव और भाजपा सरकार द्वारा देश की सम्प्रभुता के साथ समझौता करने, देश में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न, अविरल रूप से बढ़ती बेरोज़गारी, महिलाओं की सुरक्षा, EIA 2020 के खांके पर और असफल लॉकडाउन के कारण प्रभावित हुए मध्यम और निम्न वर्ग की आजीविका को लेकर सरकार पर प्रश्न खड़े किए।

ऐसे में, यदि राहुल गाँधी दोबारा एक बार पार्टी अध्यक्ष के ओहदे को स्वीकार करते हैं, तो कांग्रेस की विचारधारा से अधिक से अधिक युवा जुड़ेंगे और 2024 के लोकसभा चुनाव में इसका परिणाम और प्रभाव भी सकारात्मक दिखेगा।

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