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कपल चैलेंज़

कालेज का नाम था स्वामी विवेकानंद स्नातकोत्तर महाविद्यालय। इसी के अंग्रेजी संकाय में पढ़ते थे राजीव कुमार। राजीव पढ़ने लिखने से लेकर खेल कूद में दुरुस्त। मस्त मौला। खुशमिजाज। अल्हड़। भाषा पर पकड़ ऐसी कि राह चलते गाते रहते शैल आई कमपेयर दी टू ए समर्स डे। शेक्सपीयर से लेकर कीट्स तक को सस्वर ऐसे पढ़ते कि प्रोफेसर भी वाह वाह कर उठते थे।
 
आंग्ल भाषा के विद्वान राजीव कुमार का दिल जाकर अटक गया था प्रसाद कक्ष की उन सीढ़ियों पर जहां से गुजरती थी हिन्दी स्नातक के अंतिम वर्ष की छात्रा राधिका। मुक्तिबोध की कविताओं जैसी मुक्त और महादेवी के गीतों जैसी निर्मल। यह वह दौर था जब किसान की बेटियां कालेज तक नहीं जाती थी। लेकिन राधिका को उसके बाबू जी ने कालेज भेजा था। राधिका अपने स्कूल में टॉप आई थी उसका इनाम मिला था कि उसका एडमिशन कालेज में करा दिया गया था। साथ बना रहे इसलिए  गांव की माधुरी भी साथ आती थी।
 
हिन्दी और अंग्रेजी का ताल्लुक अचानक से शुरू हुआ। आंखें मिली तो राजीव कुमार को लगा जैसे शेक्सपियर का लव एट फर्स्ट साइट उसी की लिए था। उधर राधिका सकुचाती थी। शर्माती थी। वह कहना तो चाहती थी
 शशि मुख पर घूँघट डाले,अँचल मे दीप छिपाए।
जीवन की गोधूली में,कौतूहल से तुम आए।
लेकिन हिम्मत न होती।
 
कक्षाएं अंतिम चरण में चली आई। दोनों के घनिष्ठ मित्रों को अबूझ प्रेम की अनोखी दास्तानें पता थी। राजीव चाहते थे कि जाकर शेक्सपियर की 116 वीं सोनेट पढ़ दें लेट मी नॉट टू द मैरिज ऑफ ट्रू माइंड्स एडमिट 
इंपेडीमेंट्स। लेकिन उन्हें इस प्रेम के एंपेडिमेंट्स पता थे। 
 
मई का महीना था। कालेज का आखिरी दिन था। अन्तिम पेपर।विदाई का समय। जुदा होने का वक्त। स्कूल और कालेज से आखिरी पेपर देकर निकलना कितना भावुक करता है उसे व्यक्त नहीं किया जा सकता। वह ऐसा दिन होता है जब अपना स्कूल अपना नहीं रह जाता। अपनी क्लास अपनी नहीं रह जाती। अपने दोस्त काफी हद तक अपने नहीं रह जाते। बेटी पीहर से विदा होने के बाद जब पहली बार घर आती है तो उसे जैसा लगता है ठीक वैसा ही कालेज से विदा होने के बाद पहली बार जाने पर लगता है। यह वह अनुभूति है जिसे हर कोई कर सकता है। 
 
 कालेज के रास्ते में एक दुकान थी। राधिका वहां कुछ खरीद रही थी। धड़कते दिल के साथ राजीव वहां पहुंच गए। राधिका अपनी दोस्त के साथ किनारे हो गई। हिम्मत बांधकर राजीव ने कहा। हम तुमसे बहुत प्यार करते हैं। राधिका को ऐसा लगा जैसे गुनाहों के देवता का चन्दर सुधा के सामने खड़ा है। उसने नजरें झुका ली। हिम्मत बांध कर बोली हम भी। राजीव को कुछ समझ ही नहीं अा रहा था क्या करे? दो क्षण की शांति रही। राधिका ने कहा जाती हूं। कोई देख लेगा। राजीव को पता चला क्यों जाना सबसे खतरनाक क्रिया होती है। उसने कहा सुनो? जवाब आया हां। अपनी एक फोटो दे दोगी? क्या करोगे? देखूंगा। चाहूंगा उसे। शर्माते हुए राधिका ने प्रवेश पत्र निकाला। उसमे से फोटो फाड़ दी। उसे राजीव को पकड़ा दिया। कुछ लिखा भी था। वही शेक्सपियर की अमर पंक्तियां जो लेडी मिरांडा फर्डिनंड के लिए कहती है। वह पंक्तियां जो प्रेम व्यक्त करने के लिए अमर हो गई। 

 

आई एम योर वाइफ इफ यू विल मेरी मी
इफ नॉट, आईएल डाई योर मेड।
टू बी योर फेलो, यू मे डीनाई मी। 
बट आइल बी योर सर्वेंट् व्हेथर
यू विल ऑर नो।।
 
 दो कभी मिल न पाए लोग अलग हो गए। कहते हैं उस दिन मानसून की पहली बारिश भी हुई थी। लेकिन वे बूंदें उन बूंदों की बराबरी नहीं कर सकी, जो राजीव ने राधिका की फोटो देखकर अपनी आंखों से बरसाई थी। 
 
( फोटो वाला चैलेंज था लगाने से अच्छा लिखना सही लगा सो लिख दिया, हालांकि बीच में मन बहुत अशांत हो गया!! खैर पात्र,घटनाएं सब मेरी कल्पना एवं खुद की सोच पर आधारित है)



 

सुमित सिंह बीए०एलएलबी छात्र(पंच वर्षीय)

मेरा दिमाग महसूस करता है, मेरे हाथ लिखते हैं और मेरी कलम आवाज़ उठाती है। गलत चीज़ों के खिलाफ, अन्याय के खिलाफ।

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