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किसान नही जगा तो अपने ही खेत मे मजदूर बनकर रह जायेगा

देश का ज्यादातर किसान बिलों की बारीकियों से अनभिज्ञ

राष्ट्रीय किसान महासंघ के सुभाष पाण्डेय ने संसद में पास तीन किसान अध्यादेशों के बारे बताया की देश मे 80% किसानों को समर्थन मूल्य क्या होता है उन्हे यह भी पता नही किसान मेहनत कर उत्पादन तो करता है लेकिन बिचौलिए उनके मेहनत का बाजिब दाम को दबा जाते है दिनभर खेतों में मेहनत करता है बाकी टाइम पारिवारिक जीवन के संचालन में व्यस्त रहता है जिसकी बजह से कानूनी दावपेंच नही समझ पाता अगर सही समय मे किसान इन कानूनी दावपेंचों को नही समझ पाता है तो निश्चित ही बड़े कारपोरेटरो के हाथ कमान चली जायेगी

अनाज एक मूलभूत आवश्यकता व्यापार के शीर्ष को कब्जाने में जुटे बड़े उद्योगपति

मानव सभ्यता के जीवन पोषण में अनाज की महत्त्वपूर्ण भूमिका है जो जीवन बनाये रखने एवं रोजमर्रा के कामों को करने के लिए बल प्रदाय करता है जिसके बिना जीवन यापन असंभव है अनाज किसान खेत मे मेहनत कर उपजाता है जो कारपोरेटरो की बस की बात नही लेकिन उपज के बाद किसान बाजार में अन्य अवश्यक्ताओ की पूर्ति के लिए लेन देन करता है जिसमें उद्योगपतियो की नजर गड़ी हुई है उत्पादन के बाद औने पौने दाम में लेकर भंडारण कर मनमुताबिक कीमत बसूलने की चाल है साथ ही सरकारों को समर्थन मूल्य में खरीदी का दबाव जिससे सरकार बायकाट होना चाहती है वर्तमान में जो अध्यादेश पास हुए है उनमें स्पष्ठ रूप से देखने को मिलता है

एक राष्ट्र एक बाजार के आड़ में गुलामी की जंजीरे

एक राष्ट्र एक बाजार में किसान अब अनाज मंडी के बाहर कहि भी बेंच सकता है ऐसा सरकार का मानना है लेकिन समझने योग्य बात भारत के ज्यादातर किसान सीमांत कृषक है जिनके पास 5 एकड़ से कम भूमि है वो किसान अपने उत्पादन को बेचने के लिए आस पास ही जायेंगे न कि अन्य राज्यों में वे व्यापारी आसानी से खरीद सकेंगे जिनके पास पैन कार्ड होगा लेकिन बिल में कही भी उल्लेख नही है कि व्यापारी समर्थन मूल्य या की ऊपर ही खरीद कर सकेगा अगर कम कीमत में करता है तो उसके ऊपर दंडात्मक कार्यवाही होगी सरकार बोलती है कि समर्थन मूल्य को नही खत्म किया जा रहा है जब अनाज उत्पादन का समय होगा तो ज्यादातर किसानों के पास भंडारण की व्यवस्था नही होती और ज्यादा समय तक रोक नही सकता ऐसे में व्यापारी आपसी साठगांठ कर कम कीमत में खरीदकर ज्यादा कीमत में बिक्री करेंगे तो सरकार से दरख्वास्त है उस बिल में मात्र एक लाइन जोड़ दे कि समर्थन मूल्य से कम खरीदी करने पर खरीददार के ऊपर दंडात्मक कार्यावाही की जायेगी साथ ही अगर बेचने बाले और खरीददार के बीच कोई बिबाद होता है तो सरकार ने इसकी सुनवाई अनुविभागीय अधिकारी और कलेक्टर को अंतिम निर्णय लेने को रखा है किसान व्यवहार न्यायालय नही जा सकता आपको को जनना होगा अनुविभागीय अधिकारी एवं कलेक्टर सरकारों के दबाव में रहते है और सरकारों को पार्टी फंड बड़े उद्योगपति देते है ऐसे में बड़ा सबाल है कैसे निष्पक्ष निर्णय होंगे

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