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जस्टिस फॉर मनीषा ?

इस सदी से बेहया कोई सदी पहले न थी
इस कदर बेआब आंखों की नदी पहले न थी
अब तो यमुना के किनारे भी बहुत वीरान हैं
कृष्ण तेरी बांसुरी यूं बेसुरी पहले न थी।।।
एक बार एक आईपीएस अधिकारी ने कहा था रेप के नब्बे प्रतिशत मामलों में रेप के बाद हत्या की कोशिश की जाती है। वही रेप के असली मामले होते हैं। रेप मानसिक उन्माद है। यह वहश का चरम है। छह माह की बच्ची और सत्तर वर्ष की वृद्धा के साथ इस विश्व गुरु बनने जा रहे देश में रेप हो चुके हैं। सड़क पर चल रही नब्बे प्रतिशत लड़कियां दुष्कर्म की नज़रों से देखी जा रही। पुत्री के उम्र की लड़कियों से लेकर मां की उम्र तक की महिलाओं के विषय में लोग मानसिक, वाचिक, कार्मिक रूप से गलत भाव रखे हैं।
सिनेमा, टीवी ने लड़की को व्यापार बना दिया है। यह प्रचार की जरूरत है। किसी उद्योग के रिसेप्शन पर लड़की आकर्षण के लिए रखी जाती है। प्रचार, रिसेप्शन, सड़क पर घूम रही स्त्री मां, बहन नहीं है वह सिर्फ लड़की है। लड़की शब्द उपभोग का शब्द है। घर से निकलने वाला किसी बहन का भाई चौराहे पर हर लडकी पर फब्ती कस रहा है। वरिष्ठतम लोग इस कृत्य में शामिल हैं। सफेदपोश, वर्दीधारी, संत सब में इस मानसिकता से ग्रस्त लोग हैं।
तमाम लड़कियां अपने नजदीकी लोगों द्वारा सेक्सुअल हरैसमेंट से पीड़ित हैं। रक्त सम्बन्धी तक उनका शोषण कर रहे हैं। तमाम स्त्रियां कार्यक्षेत्र में अपने वरिष्ठ कर्मियों द्वारा शोषित की जा रही हैं। 
पुत्री का पिता होना, बहन का भाई होना एक बहुत दुरूह कार्य होता जा रहा है। हैवानों की फौज बेटियों को खा लेना चाहती है। गलत नज़रों के सम्बन्ध में शिकायत करने पर उसके सपनों पर अंकुश लगाया जाता है। उसे ही प्रताड़ित किया जाता है। सख्त कानून भी इस मसले में प्रभावी नहीं साबित हो रहे हैं।
यह आदम युग में प्रवेश का चरण है। यह बेहयाई की पराकाष्ठा है। हम कुछ दिन बाद फिर सब भूल जाएंगे। हम दुष्कर्म का दर्द नहीं महसूस कर सकते। हम गला दबाने पर जीभ निकल आने की नहीं सोच सकते। हम छह माह की बच्ची के साथ दुष्कर्म को बर्दाश्त कर रहे हैं।
छी! कितने बुरे हैं हम।
निराश हूं! उद्विग्न हूं! बेबस हूं।
परमात्मा इस संसार में शेष बचा जीवन गुजारने की शक्ति दे।
माफ करना।?
# हाथरस #जस्टिस_फॉर_मनीषा




मेरा दिमाग महसूस करता है, मेरे हाथ लिखते हैं और मेरी कलम आवाज़ उठाती है। गलत चीज़ों के खिलाफ, अन्याय के खिलाफ।

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