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जिंदगी एक वरदान या अभिशाप?

 हम लोग बहुत ख़ुश तो होंगे कि इक्कीसवीं सदी में जी रहे है और बहुत सफल और शक्तिशाली जीवन भी है जिसको हम आधुनिक चिकित्सा विज्ञान, टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का युग भी कहते है-मैंने सही कहा ना? और कुछ तो वैज्ञानिक ये भी दावा करते है वो तो जल्द ही ऐसी वैक्सीन भी बना सकते है जिससे हम इंसान कभी मरे ही ना यानी अमर हो सकते हैं, हैना मज़ेदार बात ?
लेकिन सच में कभी किसी ने सोचा है जी इतनी सारी उपलब्धियां हमें मिल रही है उसके बदले हम खो क्या रहे है ? हम सब एक बात तो चाहते है एक लम्बी लाइफ लेकिन वो लंबी लाइफ कैसी होनी चाहिए, सिर्फ लंबी या सुखी, आनंद से भरी हुई, है कि नहीं? लेकिन ऐसा तो मुझे कुछ नजर आता नहीं दिख रहा।
कभी देखा है अपने आस पास रहने वाले जीवों को या जंगल में रहने वाले जानवरों को क्या उनको डॉक्टर के पास जाते, या दवाइयां कहते या सांस नई आ रही तो लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर, नहीं ना। क्यूंकि प्रकृति ने उनको अंदर से ही इतना मजबूत बनाया है कि वो बीमार भी हो तो उनका सिस्टम ख़ुद उनको ठीक कर देता है, ऐसे कुछ हम भी थे और काफ़ी हद तक एक अभी भी है लेकिन आने वाली पीढ़ियों की कोई गारंटी नहीं है क्योंकि हम उनको जाने अनजाने में आशीर्वाद नहीं अभिशाप से भरी जिंदगी देकर जा रहे है। सोचिए अगर आपसे ये बोला जाए आप जिएंगे तो बहुत लेकिन जन्म से ही आपको हफ़्ते में दो दिन ये दवाई, एक दिन वेंटिलेटर या फेफड़े साफ रखने के लिए नेबोलाइजर इस्तेमाल करना पूरी जिंदगी, तो कैसा रहेगा, शायद बिल्कुल भी अच्छा नहीं और आप में से तो कुछ कहेंगे इसे जिंदगी से जीने का क्या फायदा,  हम अभी लकी है  लेकिन आने वाली पीढ़ियां नहीं होंगी।
हर मां बाप अपने बच्चों के लिए जीते है मेहनत करते है क्यूंकि वो एक बेहतर जीवन जी सकें लेकिन ये क्या हम तो कुछ और ही कर रहे है, तो फिर ज़रा सोचिए आप अपने बच्चों के लिए वरदान सिद्ध होना चाहते है या अभिशाप।
चुनाव आपका, तो वैसा ही भविष्य आपका।

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