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भारतीय मीडिया बिकाऊ है?

शिक्षित से लेकर अशिक्षित तक की जानकारी का स्रोत मीडिया होता है। हमारे देश में तो आम जनमानस आधुनिकरण के अभाव के कारण पूर्णतः मीडिया के ऊपर निर्भर है।
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया को कहा जाता है और यह अपने आप में ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है,क्योंकि कहा जाता है देश की आवाज़ ही मीडिया की आवाज़ है लेकिन क्या वर्तमान के परिदृश्य में भारतीय मीडिया को एकतरफा कहा जाना सही है?

तो इसे जानने के लिए थोड़ा बहुत इतिहास भी जान लेते हैं कि आखिरकार कब-कब मीडिया को किसी एक गुट अथवा संगठन की ओर झुकते हुए देखा गया है।

पहला, यदि बात की जाए 1984 सिख दंगों की तो उस समय देखा गया कि मीडिया इतनी बड़ी घटना को मात्र मसाला के रूप में देख रही थी। आज ‘हेट स्पीच’ के ऊपर मीडिया जितना चिल्लाती है शायद उस समय चिल्लाई होती तो सज्जन सिंह (कांग्रेसी नेता) जैसे तमाम अपराधियों को अपने किए की सजा तभी मिल चुकी होती और वहीं दूसरी ओर जहां आज मीडिया को रोहिंग्याओं के मानवाधिकारों की चिंता है यदि उसकी आधी भी भारतीयों के हितों की होती तो कश्मीरी पंडित अपने ही देश में विस्थापित हो शरणार्थी ना बना होता।
यदि इतिहास की नज़रों से देखा जाए तो ऐसे तमाम मुद्दे हैं जिन पर मीडिया की प्रखरता आवश्यक थी।
वर्तमान में देखा जाए तो कुछ मीडिया चैनल अपने अपने एजेंडे सार्थक करने में तत्पर रहते हैं। वे समाचार को जुमला एवं जुमलों को मुद्दे के रूप में पेश करते हैं ।
अब आप हाल ही के मीडिया के मुद्दों पर नजर
दौड़ाकर देखें तो वे कभी सुशांत , तो कभी रिया, फिर कंगना तो कभी बीएमसी ,फिर उद्धव तो कभी सारा, अक्षय आदि-आदि।
मुझे तो एक पल को संशय होता है कि विश्वव्यापी कोरोना काल में करोड़ों लोग बेरोजगार बैठे हैं, शिक्षा के नाम पर
ऑनलाइन लॉलीपॉप थमाया जा रहा है, देश की जीडीपी सबसे निचले पायदान पर पहुँच चुकी है,
महंगाई सातवें आसमान पर है, किसान के ऊपर लाठी चार्ज कराया जा रहा है, दक्षिण भारत के विद्यार्थी अवसाद के कारण आत्महत्या करने पर मजबूर हैं, परंतु देश का मीडिया देश को
ड्रग्स, एंटोनियो माइनो, झांसी की रानी कंगना और तो और करीना की प्रेगनेंसी रिपोर्ट परोस रहा है।

जब देश की मीडिया को सरकार से प्रखर होकर पूछना चाहिए कि देश को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर कैसे बनाया जाए, विदेशी कंपनियों को भारत की ओर कैसे आकर्षित किया जाए, किसानों की आय कैसे दोगुनी की जाए, बेरोजगारी को जड़ से कैसे समाप्त किया जाए? तब देश की टीआरपी की भूखी मीडिया पूछ रही है कि आखिर रसोडे में कौन था ?

यह सभी प्रश्न अपने आप में ही मीडिया की विफलताओं को बखूबी दर्शाते हैं।

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