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भारत के कॉलेज की स्थिति।

भारत के कॉलेज प्रोफेसर और बच्चों के बीच में एक अखाड़ा है एक तरफ प्रोफेसर् बच्चों को तंग करने कि हर तरीके ढूंढते रहते हैं दूसरी तरफ बच्चे उनसे बचने के हर तरीके ढूंढते रहते हैं क्योंकि बच्चों को किसी तरह ना किसी तरह से बस पास होना होता है।
कॉलेज सिर्फ और सिर्फ डिग्री देता है और कुछ नहीं देता। जो भी ज्ञान है बच्चे बुक से बढ़कर खुद से पढ़कर और कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में जा कर लेते है। कॉलेज में बच्चे सिर्फ और सिर्फ अपनी 75% अटेंडेंस को पूरी करने के लिए जाते हैं यह अटेंडेंस रूल हटा दिया जाए तो पूरे देश के कॉलेज सुनसान हो जायेंगे।

कॉलेज में बिना वजह के असाइनमेंट बनाने पड़ते हैं वह असाइनमेंट लाइफ में कभी काम नहीं आता मुझे तो समझ में नहीं आता कि वह क्यों बनवाते हैं क्योंकि वह सिर्फ और सिर्फ कागज बर्बाद करना पैसा बर्बाद करना या पेड़ बर्बाद करना है पर्यावरण को खराब करना है क्योंकि वह असाइनमेंट जीवन में कभी काम नहीं आते हम कई बार असाइनमेंट बनाते हैं और प्रोफेसर को चेक करवाते हैं तब ऑफिसर उनको खोलते भी नहीं बस फाड़ कर फेंक देते हैं तो किस तरीके की पढ़ाई हमारे कॉलेज में चल रही है समझ ही नहीं आ रहा।
स्कूलों में काग़ज़ कॉलेज से भी ज्यादा बर्बाद होते है, LKG से 12th तक इतनी कॉपियां भरते हैं वो सब बर्बाद है, सब सुलेख, प्रश्न उत्तर, प्रस्ताव, सरलार्थ, भावार्थ, गद पद छ्न्द, सारांश और काव्यांश ने कितने पेज बर्बाद किए हैं।

अभी लॉकडाउन में सब बच्चो को जबरदस्ती हॉस्टल खाली करने को कहा, बच्चे घर आ गए, हॉस्टल में कोरोना के मरीज रख दिए, मेस बन्द हो गई, अब मेस वर्कर्स को सैलरी नहीं मिल रही, फिर सब बच्चों से पैसे मांगने लगे, बच्चों ने बोला हम क्यों दे हमारे पैरेंट्स की खुद कि नौकरी नहीं है लॉकडाउन के कारण, इसलिए डीन ने हॉस्टल से सारा सामान जप्त कर लिया, और वापिस देने के 1800/स्टूडेंट्स वसूले है। अलमारी, मेज तोड़ डाली जिसे ठीक करने का फाइन भी हमसे लिया जायेगा।

कॉलेज में क्लास होती हैं उसमें ऐसी पढ़ाई होती है कि जैसे प्रोफेसर क्लास में आते हैं स्लाइड चलाता है लाइट जलाकर पढ़ाने लगता है वो स्लाइड्स पुरानी होती है आउटडेटेड हो चुकी है उनमें गलत इंफॉर्मेशन मान सकते है क्योंकि इंफॉर्मेशन तो बदलती रहती है और खासकर मेडिकल साइंस में। इसलिए उन स्लाइड्स कि तरफ कोई ध्यान नहीं देता सब नीचे अपने जो कोचिंग वाले नोट्स है उनको पढ़ते रहते हैं या फिर सोते रहते हैं, क्योंकि वह सारी रात लाइब्रेरी में पढ़ते हैं क्योंकि पढ़ना तो खुद से ही है। क्योंकि क्लास तो एक तरीके से सिर्फ और सिर्फ समय की बर्बादी है उसके अलावा कुछ भी नहीं है।
प्रोफेसर्स आते है अपना लैपटॉप निकालते हैं लैपटॉप भी एक उनका असिस्टेंट निकालते है वो कुछ भी नहीं करते और बस वो पुरानी स्लाइड को चलाते रहते हैं और बोलते है हमें तो टाइम पास करना है सरकार तो हमें सैलरी देगी ही, कभी बिना वजह गुस्सा आता है तो किसी स्टूडेंट को खड़ा कर देते हैं और बाहर भगा देते हैं और फिर अटेंडेंस नहीं देते हैं जिससे उसकी अटेंडेंस कम हो जाती है और फिर परीक्षा में बैठने नहीं दिया जाता, साल बर्बाद हो जाती है, पैसे बर्बाद हो जाते है, डिप्रेशन में जाकर कुछ सुसाइड कर लेते है, कुछ पढ़ाई छोड़ देते है। अटेंडेंस के नाम पर कॉलेज में इतना जीना मुश्किल कर रखा है कि सुसाइड करना या कॉलेज छोड़ना 2 ही विकल्प बचते है।

बच्चे कॉलेज क्यों जाते हैं नौकरी के लिए कि कॉलेज में जा कर नौकरी मिलेगी। नहीं देखो मैं बताता हूं कॉलेज जाकर आपको डिग्री मिलेगी डिग्री के कारण ही आप फॉर्म भर सकते हैं नौकरी का।
जैसे मैं आपको एक उदाहरण दू, HSSC D ग्रुप, clerk की बात कर लेता हूं अगर आपको नौकरी चाहिए तो उसके लिए टेस्ट होता है और बहुत मुश्किल होता है उसमें भी मुश्किल होता है, उस टेस्ट के लिए आपको कोचिंग करनी पड़ती है और कई बार तो वह 3 साल तक कोचिंग करते हैं तब जाकर भी सिलेक्शन नहीं होता, ऐसा मेरे घर में हुआ है, भाई – बहनों और दोस्तो के साथ।
हरियाणा में अभी कुछ दिन पहले जब डी ग्रुप की भर्ती हुई थी तो करोड़ों बच्चों ने फॉर्म भर दिया और कुछ हजार ही उनकी पोस्ट थी तो अब आप समझ सकते हैं कि कोचिंग का इतना बड़ा रोल है और कॉलेज का क्या रोल है कॉलेज ने तो कुछ भी नहीं किया। कॉलेज में सिर्फ आपको डिग्री मिलेगी ताकि आप एलिजिबल हो जाइए फॉर्म भरने के लिए बस सिर्फ इतना है अगर उस एलिजिबिलिटी लेवल को बारहवी पास कर दें तो कोई भी बच्चा कॉलेज नहीं जाएगा खासकर जो सिर्फ नौकरियों के लिए जाते हैं और ज्यादातर नौकरियों के लिए ही जाते हैं। D- ग्रुप के लिए बाहरवी है पर और दूसरे टेस्ट के लिए नहीं, जैसे यूपीएससी, एसएससी CGL, बैंकिंग।

प्रोफेसर्स viva लेते है, कई बार उसमे रैंक या कैटेगरी पूछते है और उसके हिसाब से नंबर देते है। गंजा होने पर या दाढ़ी बिल्कुल क्लीन ना होने पर भी फेल कर देते है। शर्ट बटन बंद, रोल no. Badge लगाना, बाजू फोल्ड नहीं होनी चाहिए। आपको लगता है ये अनुशासन सिखाते है पर कैसे जब वही शिक्षक लड़कियों के पास gf बनने का प्रपोजल भेजते है, दारु सिगरेट पीते है, viva में हरयाणवी बोलते है कई बार गाली भी दे देते है।

जब मन करे तब डीन हॉस्टल में घुस जाते है बच्चो को हॉस्टल से भगा देते है, सामान जप्त कर लेते है और वापिस लेने के पैसे मांगते है।
टीचर बीमार होने पर छुट्टी ले सकता है पर स्टुडेंट्स केे लिए ऐसा कुछ नहीं है, उसकी बीमारी उसके बहाने है, अगर एग्जाम में बीमार हो जायें तो हालत बहुत बदतर हो जाती है, 1 तरफ बीमारी से लड़ो और दूसरी तरफ एग्जाम से, ज्यादातर फेल हो जाते है और साल बर्बाद हो जाती है।

मैंने अबतक सबसे ज्यादा पढ़ाई लॉकडाउन में कि है, पर उसमे भी ऑनलाइन क्लास ने नाक में दम कर रखा है, साथ में कोरोना में होमटाउन में ड्यूटी लगा दी। ऑनलाइन क्लास में कनेक्शन टूट जाता है गावों में ऐसा ही नेटवर्क आता है, 599rs/84 दिन खर्च करने पड़ रहे है, उसके बाद भी absent लगा देते है। कई बार सवाल पूछते है, बुक हॉस्टल में है फिर absent लगा देते है। छोटा सा घर है शोर तो होगा ही फिर absent लगा देते है। बहुत से स्कूल के बच्चो के पास फोन नहीं था, स्कूल वालो ने दबाव दिया बेचारो को लाना पड़ा, पहले ही लॉकडाउन में पैसे नहीं है, नौकरी चली गई है।

अब भी आपको ऐसा लगता है कि हमारे प्रोफेसर अच्छा पढ़ाते है, हां हो सकता है बहुत अच्छा पढ़ाते हो परन्तु फिर भी आपका टेस्ट पास नहीं होगा। क्योंकि टेस्ट पास करने के लिए अच्छा पढ़ाना+रोज पढ़ाना+काम की चीज पढ़ाना+ खुद से घण्टों पढ़ना जो अटेंडेंस के कारण सम्भव नहीं+ डाउट सॉल्व करना+ टेस्ट लेना,। इन सब के बावजूद भी बच्चे रह जाते है। और क्या ये सब 1 सरकारी कॉलेज में सम्भव है, इतनी मेहनत कोचिंग संस्थान वाले ही कर सकते है बेशक वो 1 व्यापार है, पर शिक्षा 1 व्यापार ही है। इसलिए कॉलेज के ज्ञान से आप टेस्ट, इंटरव्यू कुछ भी पास नहीं कर सकते, वो खुद की पढ़ाई या कोचिंग से होता है। ज्यादातर बच्चे यही सोचते हैं काश! कॉलेज में अटेंडेंस ना लगानी पड़ती तो हम आराम से सेल्फ स्टडी करते और कोचिंग करते, कॉलेज सिर्फ 1 बोझ है और कुछ भी नही जहां पैसे और समय दोनों बर्बाद होते है। पर डिग्री बिना कुछ करने की अनुमति नहीं। कॉलेज से ज्यादा खर्चा सरकार को कोचिंग सेन्टर पर करना चाहिए, और कॉलेज प्रोफेसर्स की सैलरी आधी कर देनी चाहिए, मेरे कॉलेज के कुछ प्रोफेसर्स महीने में 7 घंटे काम करते है, सारा दिन चाय कॉफी पीते है और उनकी सैलरी 1-2 लाख/महीने हैं।

आप सोचते होंगे कि अच्छे टॉप कॉलेज के बच्चे कोचिंग नहीं करते वहां अच्छी पढ़ाई होती है, तो ऐसा बिलकुल भी नहीं है, आप 1 बार AIIMS दिल्ली के बच्चो के फोन चैक करिए, उसमें MBBS की कोचिंग वाली ऐप मिल जायेंगी, नाम है Marrow, Prepladder इत्यादि। या फिर आप “DAMS” दिल्ली जो एकेडमी है जो एमबीबीएस के छात्रों को पीजी की कोचिंग करवाती है वहां जाकर सर्वे कर लीजिए, कितने बच्चे AIIMS, MAMC, UCMS, LHMC कॉलेज के हैं। वहां स्पेशल बैच चलते है इन्हीं कॉलेजों के लिए और सारे बच्चे वही होते है, मतलब पूरा का पूरा AIIMS कॉलेज मिलेगा आपको वहां कोचिंग करते हुए NEET PG की जो MBBS केे बाद होती है जिसके बिना खाली MBBS तो आजकल बैठकर सिर्फ पर्ची बनाते है यकीन नहीं तो मेडिकल कॉलेज में जाकर देख लीजिए। यानि बच्चे जो कोटा में NEET UG वाले सोचते है की इस कॉलेज में ही जाना है, आखिर में जाना तो कोचिंग में ही है, जहां की फीस 50000 से 1 लाख के बीच है। इसी वजह से MBBS स्टूडेंट्स को स्किल नहीं होती क्योंकि उनका सारा फोकस NEET PG पर होता है, इसलिए जो भी सीखते है, वो सब PG के बाद।
अब अगर MBBS की सीट बढ़ती है देश में, तो खुश होने जरूरत नही है, क्योंकि इलाज तो मरीजों का स्पेशलिस्ट ही करते है, और वो इतनी बढ़ नहीं रही है, और आम जनता को पता नहीं चल रहा की अस्पताल के इतनी भीड़ क्यों है? क्यों अस्पताल की सीढ़ियों पर ही महिलाएं बच्चों को जन्म दे रही है?

भारत में सरकार सारा खर्चा प्रोफेसर्स पर करती है, उन्हें मोटी सैलेरी देती है, बड़ा सा ऑफिस देती है, जिसमे RO मशीन, AC लगी होती है, प्रोफेसर्स वहां पर दिन में कुछ घंटे रुकते है फिर ताला लगाकर चले जाते है, वो अब रात में कोई काम का कहीं, साथ में क्वार्टर देती है, क्वार्टर में ना रहे तो किराया देती है, 1 कमरे में 1 ही रहता है।
पर स्टूडेंट्स के लिए तो कुछ भी नहीं, उन्हें तो किताब भी अपने पैसे से खरीदनी पड़ती है, लाइब्रेरी में सारी किताबें होती नहीं, अगर होती हैं तो हर बच्चा ले नहीं सकता इतनी संख्या नहीं होती, बुक issue करवाना भी टाइम वेस्ट और झंझट है, कई बार छुट्टी होकर बच्चे घर चले जाते है, आने के बाद लेट सबमिट करवाते हैं तो जितने कि बुक नहीं उतना फाइन ठोक देते है, और आगे से बुक भी नही देते।
मैं MBBS 3rd ईयर govt कॉलेज में हूं, हम 1 रूम में 3 लोग रहते है साइड वाले रूम में भी 3 लोग, यानी 6 लोग 1 बाथरूम प्रयोग करते है, सुबह 8 बजे क्लास में कभी नही पहुंच पाते, 1 मिनट लेट होते ही वही अटेंडेंस का रोना धोना। तो हमारी अटेंडेंस कम ही रहती है। पढ़ना भी बहुत मुश्किल है इतनी भीड़ में।
कई बार पानी नहीं होता, सर्दियों में कभी गर्म पानी नहीं होता, खुद कि rod लगाने पर फाइन ठोक देते है, फिर क्या फाइन भरते रहते है, या फिर ठंडे में नहाते है बहुत बार, नानी याद आ जाती है।
सारा पैसा प्रोफेसर्स पर खर्च हो रहा है स्टूडेंट्स पर नहीं, उसके अलावा अरबों का बजट आता है, जो भ्रष्टाचार की खाई में चला जाता है इन्हीं प्रोफेसर्स केे हाथों साथ में कुछ administrative केे लोग भी होते हैं।

नोट: पैसों से ज्ञान नहीं खरीदा जा सकता पर किताबें और शिक्षक खरीदे जा सकते हैं जिनके बिना ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता।

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