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मीडिया :पक्षपाती था या बनाया गया ?क्या जनता ज़िम्मेदार नहीं लोकतंत्र की हत्या की ?

आज बात करते है भारतीय मीडिया की जिसके लेख बहुत लोगों ने लिखा है और कई सालों से लिखे जा रहे है परन्तु मैं आज यह सवाल सभी से पूछना चाहता हूँ के इस मीडिया को पक्षपाती बनाया किसने ? क्या देश की जनता नहीं चाहती थी नफ़रत फैलाने वाला भी कोई हो ? क्या जनता ने इसी मीडिया को देखकर वोट नहीं बेचा? क्या आज देश की जनता नफरत नहीं चाहती है और अगर नहीं चाहती तो इसका बहिष्कार क्यों नहीं? कितने लोग इस मीडिया के खिलाफ उच्च न्यायालय के सामने धरना किये ?

किसी को पक्षपाती बोलने से पहले खुद का आंकलन करे और अपने मन को टटोले के यह मुसीबत किसकी खड़ी की गयी है और इसका निवारण कौन करेगा ? जीडीपी,नौकरियां,अर्थव्यवस्था की बात भी करूँगा लेकिन पहले लोकतंत्र की निरंतर हत्या की बात देखते हैं।

आज भारत के हालात जो हैं उसके ज़िम्मेदार न केवल मीडिया है बल्कि वह जनता है जो अभी लोकतंत्र की हत्या की दुहाई दे रही है।

आज जिन्हे लोकतंत्र याद आ रहा है वह अगर अपने दिल पर हाथ रखे और पूंछे के उन्होंने लोकतंत्र को कभी समझा या जाना ?
कभी लोकतंत्र को पढ़ा ? क्या भारतीय संविधान को उठया और देखा के एक महानायक जो ज्ञान का प्रतीक कहा जाता है उसने क्या क्या दिया है आज़ाद भारत को ? नहीं पढ़ा? क्यों?

भारत के संविधान की पूरी की पूरी बहस ही ख़त्म हो जाती है आरक्षण और धर्मनिरपेक्षता पर और इस बात पर के बाबा साहब एक अछूत थे और उन्होंने भारत को यह दिया,वो दिया,फलाना,ढिमका और बैठ जाते है मूर्खों की तरह बहस में और यहीं कर देते है अंत और लोकतंत्र की हत्या। बल्कि संविधान को अगर समझना है तो पहले भारत के इतिहास और विविधता को समझना चाहिए फिर भारत के संविधान को पढ़े तब पता चलेगा के आखिर लोकतंत्र और राज तंत्र ने उनको दिया क्या।

 

अब आते हैं भारतीय मीडिया पर तोह उन् महानुभावो से पूछो के भारत की मीडिया बीते सालों मैं पक्षपाती नहीं हुआ बल्कि इतिहास काल और संविधान के बाद से भी इसकी हत्या हुई। उदहारण के तौर पर मैं व्याख्या करता हूँ :-

मान लीजिये समाज में चार वारदात हुई ,एक वारदात हुई उच्च जाति वाले के साथ,एक हुई मुसलमान के साथ, एक हुई दलित के साथ , और एक हुई किसी सिख के साथ। अब मीडिया के हालत देखिये वह किस मानसिकता के साथ खबर दिखाएँगे

“उच्च जाति वाले के साथ नृशंस हत्या हुई , पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं हुई।” क्यों? हिन्दू के साथ अन्याय ?
खबर चली ५ घंटे

“एक मुसलमान समुदाय के साथ अत्याचार। संदिग्ध आतंकी।”
खबर चली ४ घंटे वह भी आतंकवाद के खिलाफ

दलित के साथ दबंगई। फरार।
सिर्फ एक मिनट

सिखों के घर हमला।
सिर्फ एक सेकंड

और लोगों ने दुःख व्यक्त किया सिर्फ एक वर्ग की हत्या पर बाकी पर चुप रहे ?क्यों ? क्यूंकि वह दुसरे धर्म और जाति के है।
क्या जनता पक्षपाती नहीं है ?क्या उसके लिए दूसरे धर्म और जाति के लोग इंसान नहीं है।

मैंने पहले लेखों में भी कहा था यह नफरत आज की नहीं हैं दोस्तों यह माहौल तो आज़ादी के बाद से ही बनाया गया था ,मुसलमान को पाकिस्तानी और दलितों को अछूत यह घर से ही जन्मा और यह एक बड़े स्तर पर लोकतंत्र की हत्या पर आकर रुका।

क्या यह सच नहीं है के इसी मीडिया के फैलाये मुसलमान और हिन्दू नफरतों पर लोगों ने वोट नहीं बेचे। क्या यह सच नहीं जनता ने अपनी समस्या का समाधान संविधान में ढूंढा ही नहीं। क्या यह सच नहीं जब जेलों में दूसरे वर्गों के लोग जेलों में ठूंसे गए तब सब मौन थे ? क्या जब सिखों की हत्या हुई तब सब क्यों मौन थे ?क्या जब मंदिर मस्जिद पर लड़ाई हुई तो लोगों ने शिक्षा ,रोज़गार,व्यापार आदि पर वोट नहीं बल्कि धर्म पर वोट दिए।
अरे जब मूर्खों को अपने अधिकार ही नहीं पता होंगे तो छीन तो जाएंगे ही और फिर कहेंगे लोकतंत्र की हत्या है।

अब आते हैं जीडीपी ,अर्थव्यवस्था पर तो जनाब मेरा एक आग्रह है ,जाइये और घर से निकल कर पूछियेगा पढ़े लिखे और अनपढ़ दोनों से मेरे तीन सवाल :

जीडीपी होती क्या है ?
भारत की अर्थव्यवस्था मिक्स्ड है ये पूंजीवादी है?
उनसे पूछियेगा बैंक का क्या भूमिका होती है ?

मेरे यह पूर्ण विश्वास है सत्तर प्रतिशत जनसंख्या यह नहीं बता पाएगी की यह तीनो सवाल हैं क्या,उत्तर क्या है और उनकी गलती नहीं क्यूंकि उनको यह नहीं पता के इन् चीज़ों का उनकी ज़िन्दगी में क्या महत्व है।

एक अनपढ़ सिर्फ इतना बताएगा के उसके यहाँ दाल २०० रूपया किलो है जो उसकी जीवन जीने की जरूरत है।
और पढ़ा लिखा बताएगा के उसका फ़ोन महंगा हो गया है क्यूंकि उसने अपना जीवन मोबाइल में व्यस्त कर रखा है।

लोकतंत्र की हत्या दो वर्गों के संघर्ष की कहानी है।

एक मिडिल क्लास के लिए संघर्ष है एक अच्छी नौकरी और एक रिक्शेवाला का संघर्ष है उसके दो वक़्त की रोटी। पढ़ा लिखा विदेश भागने की सोच रहा है और अनपढ़ व्यक्ति शहर आने का इक्षुक है। इस बीच वो लोकतंत्र को नहीं समझता,इतिहास नहीं समझता।

पढ़ा लिखा व्यक्ति पैसा कमाना चाहता है जो गरीबों को लूट सके और अनपढ़ व्यक्ति शहर आकर उस पैसे से सपने पूरा करना चाहता।

अब इसमें लोकतंत्र कहाँ बचा ? पैसा कमाए या सच को देखे ? उसके लिए वोट डालना ही एक बोझ है और उसका महत्व क्या है पहले वो समझे तब जाकर लोकतंत्र की परिभाषा समझे या उसकी हत्या बचाये।

दोनों के लिए एक चीज़ सामान हैं वह हैं धर्म की अफीम जिसके स्टार पर वोट देता है।

अब आये नौकरियों की बात पर तो सब कहने लगे नौकरियां हुनर पर मिलती है ,काम बड़ा छोटा नहीं होता वगैरह वगैरह लेकिन उन्ही मूर्खों से पूछो नौकरियां हैं कहा तो वह कहेगा ढूंढो देखो पता चलेगा और फिर गिनायेगा वीपीओ,सेल्स,मारेक्टिंग आदि और फिर उनसे पूछना सरकारी तो कहेंगे सरकारी मैं आरक्षण है इसीलिए हम लोग पहुँच नहीं पाते और यही होती एक बार फिर लोकतंत्र की हत्या।

अब उनसे पूछना आरक्षण पढ़ा है ? किस तरह दिया है ?क्यों दिया गया है ?इसका कितने आर्टिकल है ? इसका पैमाना क्या है ?

तो वह कहेगा नहीं लेकिन उनको इतना पता है उनके नंबर काम आये और फीस कम है आदि। यह है लोकतंत्र की हत्या।

अच्छा उनसे पूछना प्राइवेट में इतने कम मुसलमान क्यों है तो वो कहेंगे यह पाकिस्तानी है। यह है लोकतंत्र की हत्या।

उनसे पूछना दलित लड़की का बालत्कार हुआ तो कहेंगे सही है भिखारी या आरक्षणखोर इसी लायक है। यह है लोकतंत्र की हत्या।

उनसे पूछना हिन्दू राष्ट या मुस्लिम राष्ट्र क्या है तो कहेंगे भगाओ मुल्लो को ,कटुओ को आदि। यह है लोकतंत्र की हत्या।

हमने खुद को बाँटा ,धर्म,जाति ,रंग,शक्ल,सूरत,काम आदि। यह है लोकतंत्र की हत्या।

मीडिया पक्षपाती नहीं है उसने वो दिखाया है जो आपने चुना।
उसने वो दिखाया जो हर व्यक्ति के दिमाग में है।
उसने वो दिखाया जो जनता के रगो में दौड़ता है। पूरी दुनिया में लड़ाई लड़ी गयी तानशाही भागने के लिए लेकिन भारत की जनता ने लड़ाई लड़ी है तानाशाही लाने के लिए।

आने वाले समय में भारत के ऐसी स्थिति से गुजरेगा जिसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है।
आने वाली लड़ाई दो वर्गों में बाँट दी जायेगी अमीर वर्ग अथवा गरीब वर्ग।
आने वाला समय में भारत भी खंडित हो जाएगा दक्षिण भाग अथवा उत्तर भाग क्यूंकि दोनों दिशा के भारत एक दुसरे से नफरत करते हैं।
लोकतंत्र का अंत करके यहाँ फिर से धर्म गुलामी आएगी और फिर से वर्ण व्यवस्था देखेंगे परन्तु इस बार यह मॉडर्न सिस्टम होगा।
लोकतंत्र की हत्या के जिम्मेदार जनता है क्युकी उसने संविधान को न कभी दिल से अपनाया और न ही मूलभूत अधिकारों को पढ़ा।

आने वाले समय में भारत में एक क्रांति होगी और इस देश से किसी एक वर्ग को निष्काषित किया जाएगा और उनके लिए अलग देश का निर्माण होगा। लोकतंत्र का अंत करके प्रेसेडेंसी रूल जो अमेरिका में चलता है वह अपनाया जाएगा और जनता के वोट देने के अधिकारों को ख़तम कर दिया जाएगा और वोट देने के अधिकार को सिर्फ जनता द्वारा खत्म कराया जाएगा षड़यंत्र रचकर। आने वाले समय में गाँव और शहरों को घेर लिया जाएगा और महिलाओं की निर्मम हत्याएं और बालत्कार करके उसी नरक में धकेला जाएगा। दलित अपना धर्म परिवर्तन कर लेंगे और आने वाले समय में भारत में एक युद्ध छिड़ेगा जो ब्राह्मणवाद अथवा बुद्धिस्म में होगा। भारत में एक अलग निर्वाचन आयोग का गठन भी होगा और संयुक्त राष्ट्र में लोकतंत्र की हत्या रोकने के लिए पूरे विश्व में एक संधि हस्ताछर की जायेगी। न्यायपालिका में कॉलेजियम सिस्टम हटाकर आरक्षण या अलग न्यायपालिका स्थापित होगी जो सिर्फ दलितों,वंचितों का न्याय करेगी।
इस तरह मीडिया लोकतंत्र को दो हिस्सों में बाँट देगा एक हिस्सा जो उच्च वर्ग के संविधान पर चलेगा और एक हिंसा जो बुद्धवाद के संविधान पर चलेगा।

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