हम भारत के वासी हैं..वोट मंदिर- मस्जिद के नाम पर देते हैं।
लेकिन उम्मीद स्कूल व अस्पताल की करते हैं।
विकास के नाम पर तूती बोलती है… जाति औऱ धर्म की हैं।
लेकिन बात 5 ट्रिलियन इकनॉमी की करते हैं।
देश का अन्नदाता… कर्ज में डूबा रह जाता है
गरीब दो वक्त की रोटी के लिए मारा-मारा फिरता है।
लेकिन हमारा प्रधान सेवक मोर को
दाना डालने में गौरवान्वित महसूस करता है।
देश नहीं बिकने दूंगा के जाल में
हर क्षेत्र में अंबानी और अडानी का ही बोल बाला है।
जीडीपी है माइनस में
लेकिन आत्मनिर्भर भारत ही हमारा अगला नारा है।
हम भारत के वासी
जुमले को विकास
पढ़े-लिखें को देशद्रोही
औऱ तड़ी -पार को गृहमंत्री
के रूप में पूजते हैं।
न्यू इंडिया के इस बंवडर में भी
मंदिर- मस्जिद का खेल सारा है।