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हिंदी दिवस की बात

सम्मान कोई वस्तु नहीं है।कि उठाया और दे दिया. सम्मान वर्चस्व की तरह होता है जिसे खुद अर्जित करना पड़ता है।

किसी भाषा को बोलने वालों की छवि उस भाषा की छवि से अलग नहीं हो सकती. हिंदी भाषा मुख्य रूप से गंगा के मैदानों की भाषा है. ये क्षेत्र आज की तारीख में देश को सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर मुहैया कराता है।

जाहिर है कि जैसी छवि यहां के लोगों की होगी, वैसी ही छवि उनकी भाषा की होगी इतिहास गवाह है कि विजेताओं की भाषा ने हमेशा सम्मान ही पाया है. चाहे वैदिक काल में आर्यों की संस्कृति रही हो चाहे मुगल काल में फारसी, और चाहे आज की तारीख में हिंदी हो. सम्मान उसी का होगा, जो विजेताओं की भाषा होगी.

भारत में पंजाबी का उदाहरण इसका प्रमाण है।कि पंजाबी बोलने वाले सिख समुदाय के लोग स्वभाव से योद्धा और आर्थिक रूप से सम्पन्न होते हैं। ऐसे में उनकी पंजाबी का डंका विदेशों में भी बज रहा है।

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि डिग्री पाने के लिए हिंदी विषय छात्रों की पहली पसंद है।पर इसे उनका हिंदी भाषा से लगाव समझना बचकानी बात होगी, विषय के रूप में हिंदी. छात्रों की पहली पसंद इसलिए है क्योंकि उन्हें कम समय और कम मेहनत में परीक्षा पास करने की उम्मीद दिलाती है। उन्हें ये लगता है कि अक्षरग्यान और बोलचाल में मामूली वाचालता की बदौलत वो परीक्षा पास कर ही लेगें।पर एक भाषा के रूप में वो हिंदी से उतना ही दुर हैं. जितना एक साम्प्रदायिक आदमी धर्म से दुर होता है।और सच तो ये है कि हिंदी भाषा उनकी इस दुरी के जिम्मेदार वो लोग स्वयं हैं भी नहीं,

अगर अध्यापन और लेखन को छोड़ दिया जाय.तो हिंदी भाषा के पास अपने प्रेमियों को दाल-रोटी मुहैया कराने का तीसरा विकल्प नहीं है।

और हिंदी में अध्यापन या लेखन औसत जीवन की गारंटी चाहे हो पर वैसा उच्चस्तरीय जीवन कभी नहीं दिला सकते, जैसे जीवन का ख्वाब आज की तारीख में युवा देख रहे हैं।तो अगर हिंदी भाषा का विकास करना है उसे सम्मान दिलाना है तो सबसे पहले हिंदी भाषी क्षेत्रों का आर्थिक विकास करना होगा, अगले चरण में इन क्षेत्रों की विद्या लयी शिक्षा को दुरूस्त करना होगा, और हिंदी में मौलिक शोध को प्रोत्साहन देना होगा।

तीसरे चरण में हमें हिंदी को रोजगार से जोड़ना होगा.

सरकार को नौकरी के लिए ली जाने वाली परीक्षाओं के प्रश्न पत्र को हिंदी भाषा में भी तैयार करवाने होगें. और अंक देने मे भाषा के आधार पर भेदभाव को भी खत्म करना होगा.

साथ ही न्यायपालिका को अपने फैसले हिंदी में सुनाने होंगे और सिविल सेवकों के चयन मे हिंदी माध्यम के छात्रों के विरुद्ध भेदभाव बंद करना होगा.

हमें समझना होगा कि अंग्रेजी महज एक भाषा है।योग्यता का प्रमाण नहीं.

अपने अंदर की हीनभावना को खत्म किये बिना ये संभव नहीं है।

जब तक हम इतना नहीं करते, तब तक हिंदी दिवस मनाने की तमाम बातें, महज बातें ही रहेंगी।

धन्यवाद

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