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क्या था केशवानंद भारती का मशहूर केस, जिसे आज भी मिसाल के तौर पेश किया जाता है?

24 अप्रैल 1973 को एकता में पिरोने वाले और भारतीय जनमानस को सर्वाधिक प्रभावित करने वाली दो घटनाओं के रूप में याद किया जाता चाहिए। इस ‘सर्वाधिक प्रभावित’ शब्द को ध्यान में रखते हुए इस लेख को पढ़िएगा। मैंने इस शब्द को ना तो वाक्य में शब्द सौष्ठव की दृष्टि से लिखा है और ना ही तुक्के से।

वास्तव में ये दोनों घटनाएं इस शब्द को सार्थक करती हैं। पहली घटना है भारतीय क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर का इसी दिन जन्म होना जिन्होंने आगे चलकर भारत के विभिन्न प्रांतों, विभिन्न धर्मों , विभिन्न मान्यताओं, विभिन्न भाषाओं वाले लोगों को एक सूत्र में बंध जाने का अवसर प्रदान किया।

जब क्रिकेट एक धर्म बन गया

हज़ारों की भीड़ से भरे स्टेडियम, टीवी से चिपके करोड़ों क्रिकेट प्रेमी उनकी बैटिंग के समय एक समान भाव और लक्ष्य को ध्यान में रखते थे और पूरा स्टेडियम सचिन, सचिन की ध्वनि से गुंजायमान रहता था। फिर उन्हीं की बदौलत कबड्डी, गिल्ली डंडा खेलने वाले देश में क्रिकेट एक धर्म के रूप में परिवर्तित हुआ जिसके गॉड सचिन हुए।

आगे चलकर क्रिकेट भारतीय जन मानस का हिस्सा बनता चला गया हर विविध प्रकार के आम से खास लोग क्रिकेट से प्रेम करने लगे और एक एकता में बंध गए।

केशवानंद भारती: एक परिचय

दूसरी बड़ी घटना जिसने आम लोग को प्रभावित किया, वह थी इसी दिन यानी 24 अप्रैल 1973 को आने वाला भारतीय सर्वोच्च न्यायालय का वह फैसला जिसके तहत ‘संविधान के मूल ढांचे’ में परिवर्तन को अवैध घोषित कर दिया गया। इस फैसले ने आगे चलकर भारतीय संविधान की रक्षा में काफी मदद की। यह फैसला जिस व्यक्ति के वाद पर आया था उनका नाम था केशवानन्द भारती।

हाल ही में ‘केरल के शंकराचार्य’ और ‘संविधान के रक्षक’ के नाम से मशहूर इस महान संत आत्मा का निधन हो गया। भारतीय इतिहास में शायद ही कोई ऐसा हुआ होगा जो वादी होते हुए भी इतना प्रसिद्ध हुआ होगा। केशवानन्द भारती केरल के इडनीर आश्रम के प्रमुख थे। केरल सरकार नें भूमि सुधारों के तहत इस मठ की 400 एकड़ जमीन में से 300 एकड़ जमीन खेती करने वालों को पट्टे पर दे दी थी।

केरल सरकार के इस फैसले के साथ-साथ उन्होंने 29वें संविधान संशोधन जिसमें केरल भूमि सुधार अधिनियम था, उसको उन्होंने चुनौती दी। यद्यपि इस वाद की प्रकृति कुछ और थी लेकिन आगे चलकर इसी वाद में सुप्रीम कोर्ट के सामने यह प्रश्न पैदा हुआ कि क्या संसद संविधान की मूल प्रस्तावना को बदलने का अधिकार रखती है?

एक निर्णय जिसने संसद के संविधान संशोधन की शक्तियों को सीमित कर दिया

68 दिनों तक एस.एम. सीकरी की अध्यक्षता में 13 जजों की पीठ नें इस मामले को सुनने के बाद जो निर्णय दिया उससे ‘भारती’ या मठ को कोई फायदा नहीं हुआ लेकिन इस फैसले ने संसद के संविधान संशोधन की शक्तियों को सीमित कर दिया। जिसके तहत न्यायिक समीक्षा, पंथ निरपेक्षता, लोकतंत्र जैसे आदि संविधान के मूल ढांचे को परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

सोचिए अगर यह फैसला इसके विपरीत आया होता, तो संसद किसी भी हद तक संविधान संशोधन कर सकती थी। हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था, मौलिक अधिकार आदि खोने का डर बना रहता।

इस फैसले के कुछ समय बाद आपातकाल के समय इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री काल में संविधान में अनेक परिवर्तन उसकी मूल भावना के विपरीत किए गए। आगे चलकर इसी केशवानन्द भारती के मामले के फैसले के आधार पर ही संविधान को मूल स्वरूप में लाया गया।

मिसाल के रूप में पेश किया जाता है यह फैसला

आज भी विभिन्न वादों में यह फैसला मिसाल के रूप में पेश होता रहता है। इस फैसले ने संविधान की सर्वोच्चता को स्थापित करने और लोगों में संविधान के प्रति विश्वास पैदा करने में अहम भूमिका निभाई। इस निर्णय की महत्ता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि आगे चलकर कई अन्य देशों जैसे बांग्लादेश, अफ्रीका महाद्वीप के देश आदि ने इस फैसले के महत्व को तवज्जो दी।

कुल मिलाकर इस फैसले ने संविधान की बुनायदी सरंचना की जो लक्ष्मण रेखा निर्धारित की उसने आगे चलकर लोगों में संविधान की सर्वोच्चता में विश्वास के साथ विभिन्न विविधताओं के बाद भी एकजुटता की भावना भरी। ठीक वैसे ही जैसे सचिन ने क्रिकेट के माध्यम से विविध प्रकार के भारतीयों में एकजुटता की भावना पैदा की।

दोनों ही घटनाएं सचिन का जन्म लेना और इस फैसले का एक ही दिन आना भले ही संयोग रहा हो लेकिन दोनों ही घटनाओं ने भारत की वैश्विक छवि और उसकी महत्ता को बढ़ाने और स्थापित करने में शानदार योगदान दिया है।

इस फैसले का माध्यम बने वादी केशवानन्द भारती जी का निधन हो जाना एक अपूर्णीय क्षति है। संविधान के रक्षक के रूप में निश्चित ही वे आम जन मानस के स्मृतियों का हिस्सा बनें रहेंगे।

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