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आंदोलन कर रहे देश के किसानों के नाम एक आम नागरिक का खत

किसान भाइयों और बहनों,

विरोध करना और विरोध के शांतिपूर्ण तरीके का चुनाव करना आपका लोकतांत्रिक अधिकार है। मेरा काम सरकार के अलावा आपकी गलतियां भी बताना है। आपने 25 सितंबर को भारत बंद का दिन गलत चुना है। 25 सितंबर के दिन फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण बुलाई गई हैं। उनसे नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो नशा-सेवन के एक अतिगंभीर मामले में लंबी पूछताछ करेगा।

तमाम न्यूज़ चैनल्स अब आपको छोड़कर दीपिका के आने-जाने से लेकर खाने-पीने का कवरेज करेंगे। ज़्यादा-से-ज़्यादा आप उन चैनलों से आग्रह कर सकते हैं कि दीपिका से ही पूछ लें कि क्या वो भारत के किसानों का उगाया हुआ अनाज खाती हैं या यूरोप के किसानों का उगाया हुआ अनाज खाती है। बस यही एक सवाल है जिसके बहाने 25 सितंबर को किसानों के कवरेज़ की गुज़ाइश बनती है।

आप भारत बंद कर रहे हैं। आपके भारत बंद से पहले ही आपको न्यूज़ चैनलों ने भारत में बंद कर दिया है। चैनलों के बनाए भारत में बेरोज़गारी का मुद्दा गायब है। जिनकी नौकरियां चली गई हैं, मीडिया के लिए वह भी कोई मुद्दा नहीं है। आप किसानों के लिए भी मीडिया का यही रवैया होगा।

आपकी थोड़ी सी जगह अखबारों के ज़िला संस्करणों में बची है, जहां आपसे जुड़ी अनाप-शनाप खबरें भरी होंगी मगर उन खबरों का कोई मतलब नहींं होगा। उन खबरों में गाँव का नाम होगा, आपमें से दो चार का नाम होगा, ट्रैक्टर की फोटो होगी, एक बूढ़ी महिला पर सिंगल कॉलम खबर होगी बस।

ज़िला संस्करण का ज़िक्र इसलिए किया क्योंकि आप किसान अब राष्ट्रीय संस्करण के लायक नहीं बचे हैं। न्यूज़ चैनलों में आप सभी के भारत बंद को स्पीड न्यूज़ में जगह मिल जाए तो आप इस खुशी में अपने गाँव में भी एक छोटा सा गाँव-बंद कर लेना।

अब ये तो आपने भी देखा कि मीडिया ने 25 सितंबर को पूरी तरह से दीपिका पर ही फोकस किया। जब वो घर से निकलीं तो रास्ते में ट्रैफिक पुलिस की जगह रिपोर्टर्स खड़े थे।

2017 का साल याद कीजिए। संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत आने वाली थी। उसे लेकर एक जाति विशेष के लोगों ने बवाल कर दिया। कई हफ्ते तक उस फिल्म को लेकर टीवी में डिबेट होती थी। तब आप भी इन कवरेज में खोए थे। हरियाणा, मध्यप्रदेश और गुजरात सहित कई राज्यों में इस फिल्म के प्रदर्शन को रोकने के लिए हिंसा हुई थी।

दीपिका के सर काट लाने वालों के लिए 5 करोड़ के इनाम की राशि का ऐलान हुआ था। वही दीपिका अब नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो गईं तो चैनलों के कैमरे उनके कदमों को चूम रहे थे। उनकी रेटिंग आसमान चूमने लगी। किसानों से चैनलों को कुछ नहीं मिलता है। बहुत से एंकर तो खाना भी कम खाते हैं। उनकी फिटनेस बताती है उन्हें आपके अनाज की मुट्ठी भर ही ज़रूरत है।

खेतों में टिड्डी दलों का हमला हो तो इन एंकरों को बुला लेना। एक एंकर तो इतना चिल्लाता है कि उसकी आवाज़ से ही सारी टिड्डियां पाकिस्तान लौट जाएंगी। आपको थाली बजाने और डीजे बुलाने की ज़रूरत नहीं होगी।

2014 से आप किसान भाई भी तो यही सब न्यूज़ चैनलों पर देखते आ रहे थे। जब एंकर गौ-रक्षा को लेकर लगातार भड़काऊ कवरेज करते थे, तब आपका भी तो खून गरम होता था। आपको लगा कि आप कब तक खेती-किसानी करेंगे, कुछ धर्म की रक्षा-वक्षा भी की जाए। धर्म के नाम पर नफरत की अफीम आपको थमा दी गई।

विचार की जगह तलवार भांजने का जोश भरा गया। आप रोज़ न्यूज़ चैनलों के सामने बैठकर वीडियो गेम खेल रहे थे। आपको लगा कि आपकी ताकत बढ़ गई है। आपके ही बीच के नौजवान व्हाट्सएप्प से जोड़कर भीड़ में बदल दिए गए। जैसे ही गौ-रक्षा का मुद्दा उतरा कि आपके खेतों में सांडों का हमला हो गया। आप सांडों से फसल को बचाने के लिए रात भर जागने लगे।

गिनकर तो नहीं बता सकता कि आपमें से कितने सांप्रदायिक हुए थे मगर जितने भी हुए थे, उसकी कीमत सबको चुकानी पड़ेगी। यह पत्र इसलिए लिख रहा हूं ताकि 25 सितंबर के कवरेज से आपको शिकायत ना हो। आपने इस गोदी मीडिया में कब जनता को देखा है?

17 सितंबर को बेरोज़गारों ने आंदोलन किया, वे भी तो आपके ही बच्चे थे। क्या उनका कवरेज हुआ? क्या उनके सवालों को लेकर बहस आपने देखी?

याद कीजिए जब मुज़फ्फरनगर में दंगे हुए थे। एक घटना को लेकर आपके भीतर किस तरह से कुप्रचारों से नफरत भरी गई। आपके खेतों में दरार पड़ गई। जब आप सांप्रदायिक बनाए जाते हैं तभी आप गुलाम बनाए जाते हैं। जिस किसी से यह गलती हुई है, उसे अब अकेलेपन की सज़ा भुगतनी होगी।

आज भी दो-चार अफवाहों से आपको भीड़ में बदला जा सकता है। व्हाट्सएप्प के नंबरों को जोड़कर एक समूह बनाया गया। फिर आपके फोन में आने लगे तरह-तरह के झूठे मैसेज। आपके फोन में कितने मैसेज आए होंगे कि नेहरू मुसलमान थे। जो लोग ऐसा कर रहे थे उन्हें पता है कि आपको सांप्रदायिक बनाने का काम पूरा हो चुका है। आप जितने आंदोलन कर लो, सांप्रदायिकता का एक बटन दबेगा और गाँव का गाँव भीड़ में बदल जाएगा।

भारत वाकई प्यारा देश है। इसके अंदर बहुत कमियां हैं। इसके लोकतंत्र में भी बहुत कमियां हैं मगर इसके लोकतंत्र के माहौल में कोई कमी नहीं थी। मीडिया के चक्कर में आकर इसे जिन तबकों ने खत्म किया है, उनमें से आप किसान भाई भी हैं।

आप एक को वोट देते थे तो दूसरे को भी बगल में बिठाते थे। अब आप ऐसा नहीं करते हैं। आपके दिमाग से विकल्प मिटा दिया गया है। आप एक को वोट देते हैं और दूसरे को लाठी मार कर भगा देते हैं। आप ही नहीं, ऐसा बहुत से लोग करने लगे हैं। जैसे ही आपकी बातों से विकल्प की जगह खत्म हो जाती है, विपक्ष खत्म होने लगता है। विपक्ष के खत्म होते ही जनता खत्म होने लगती है। विपक्ष जनता खड़ा करती है। विपक्ष को मारकर जनता कभी खड़ी नहीं हो सकती है। मेरी इस बात को गाढ़े रंग से अपने गाँवों की दीवारों पर लिख देना और बच्चों से कहना कि आपसे गलती हो गई, वो गलती ना करें।

किसानों के पास कभी भी कोई ताकत नहीं थी। एक ही ताकत थी कि वे किसान हैं। किसान का मतलब जनता हैं। किसान सड़कों पर उतरेगा, यह एक दौर की सख्त चेतावनी हुआ करती थी, हेडलाइन होती थी। अखबार से लेकर न्यूज़ चैनल कांप जाते थे।

अब आप जनता नहीं हैं। जैसे ही जनता बनने की कोशिश करेंगे चैनलों पर दीपिका का कवरेज़ बढ़ जाएगा और आपकी पीठ पर पुलिस की लाठियां चलने लगेंगी। मुकदमे दर्ज़ होने लगेंगे। भारत बंद के दौरान आपको कैमरे वाले खूब दिखेंगे मगर कवरेज दिखाई नहीं देगा। लोकल चैनलों पर बहुत कुछ दिख जाएगा मगर राष्ट्रीय चैनलों पर कुछ से ज़्यादा नहीं दिखेगा। अपने भारत बंद के आंदोलन का वीडियो बना लीजिएगा ताकि गाँव में वायरल हो सके।

आपको इन चैनलों ने एक सस्ती भीड़ में बदल दिया है। आप आसानी से इस भीड़ से बाहर नहीं आ सकते। मेरी बात पर यकीन ना हो तो कोशिश कर लें। मोदी जी कहते हैं कि खेती के तीन कानून आपकी आज़ादी के लिए लाए गए हैं। इस पर पक्ष-विपक्ष में बहस हो सकती है। बड़े-बड़े पत्रकार जिन्होंने आपके खेत से फ्री का गन्नातोड़ कर खाते हुए फोटो खींचाई थी, वे भी सरकार की तारीफ कर रहे हैं। मैं तो कहता हूं कि क्यों भारत बंद करते हैं, आप इन्हीं एंकरों से खेती सीख लीजिए। उन्हीं से समझ लीजिए।

शास्त्री जी के एक आह्वान पर आपने जान लगा दी। उन्होंने एक नारा दिया जय जवान-जय किसान, उनके बाद से जब भी यह नारा लगता है कि किसान की जेब कट जाती है। नेताओं को पता चल गया कि हमारा किसान भोला है। भावुकता में आ जाता है।

देश के लिए बेटा और अनाज सब दे देगा। आपका यह भोलापन वाकई बहुत सुंदर है। आप ऐसे ही भोले बने रहिए। सब न्यूज़ चैनलों के बनाए प्यादों की तरह हो जाएंगे तो कैसे काम चलेगा। बस जब भी कोई नेता जय जवान-जय किसान का नारा लगाए, अपने हाथों से जेब को भींच लीजिए।

आप तो कई दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं। न्यूज़ चैनल चाहते तो तभी बहस कर सकते थे। बाकी किसानों को पता होता कि क्या कानून आ रहा है, क्या होगा या क्या नहीं होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जो गुलाम मीडिया का खरीदार होता है, वह भी गुलाम ही समझा जाता है। वैसे मई 2015 में प्रधानमंत्री जी ने आपके लिए किसान चैनल लॉन्च किया है। उम्मीद है आप वहां दिख रहे होंगे।

पत्र लंबा है। आपके बारे में कुछ छपेगा-दिखेगा तो नहीं इसलिए भी लंबा लिख दिया। मेरा यह पत्र खेती के कानूनों के बारे में नहीं है। मेरा पत्र उस मीडिया संस्कृति के बारे में हैं, जहां एक फिल्म अभिनेता की मौत के बहाने बालीवुड को निशाने बनाने का तीन महीने से कार्यक्रम चल रहा है। आप सब भी वही देख रहे हैं। आप सिर्फ यह नहीं देख रहे हैं कि निशाने पर आप हैं।

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