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कृषि विधेयक 2020: क्या किसानों के शोषण की नई शुरुआत है?

हम सब भारत के लोग इस बात को बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि पिछले एक दशक से किसानों की हालत इतनी दयनीय हो गई है जिसकी कोई सीमा नहीं है। कई किसान आत्महत्या कर चुके हैं। यह हालात आज़ादी से पहले के भारत की तरह दिखते हैं जब भारत में नील की खेती करवाकर किसानों का शोषण किया जाता था और अंत में वे आत्महत्या कर लेते थे। आज भी वही स्तिथि है।

दूसरी ओर देखें तो सरकार नई योजनाओं को लागू कर रही है। उदाहरण के तौर पर नई शिक्षा नीति ने सभी को ऊंचे ख्वाब देखने का आग्रह किया, जब नीति के एक-एक शब्दों के पीछे गौर से देखा तो पता लगा कि ये ऊंचे ख्वाब दिखाने वाली नीति वास्तव में ज़मीन के बाशिंदों को पाताल में पहुंचाने की तैयारी कर रही है और जो इस समय हवाओं में हैं, उनको और ऊंचाइयों तक पहुंचाने का एक रास्ता खोल दिया है।

बहरहाल, ये तो शिक्षा नीति की बात हुई। बात अगर किसानों की करें तो लोकसभा के मानसून सत्र ने तीन कृषि क्षेत्र बिल पारित किए जो राज्य सभा से पारित होकर मौजूदा अध्यादेशों की जगह लेंगे।

प्रतीकात्मक तस्वीर

कृषि विभाग के लिए पारित किए गए नए बिल पर लोगों के विविध मत हैं। कोई इसके नुकसान को बता रहा है और कोई इससे होने वाले फायदे। इसी बीच शिरोमणि अकाली दल की नेत्री हरसिमरत कौर बादल ने उन बिलों के विरोध में केंद्रीय मंत्रिपरिषद से इस्तीफा दे दिया। उनका मानना है कि यह बिल किसान विरोधी हैं और पंजाब में कृषि की स्तिथि को नष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

गहराई से जांच करने के बाद तीनों बिलों से सम्बंधित कुछ तथ्य सामने आए, जिसका विश्लेषण नीचे किया जा रहा है।

कृषि बाज़ार, व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में विकास और सुविधाओं को लागू करना

नए बिल के मुताबिक एक समान तंत्र बनाने में मदद मिलेगी और APMCs. के तहत आने वाले राज्यों के किसान और व्यपारियों को पंजीकृत मंडियों के अलावा बाहर भी कृषि की उपज को बेचने और खरीदने की स्वतंत्रता दी जाएगी।

इसी बात को आगे बढ़ाते हुए बिल में साफतौर पर कहा गया है कि राज्य और अंतर राज्य व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। विपणन/परिवहन लागत को कम करने और बेहतर मूल्य प्राप्त करने में किसानों की मदद का आश्वासन भी दिया गया।

इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग के लिए एक सुविधाजनक ढांचा प्रदान करने को प्राथमिकता दी जाएगी। यह सभी बातें पढ़ने और सुनने में काफी हद तक अच्छी लगती हैं, मगर बात जब हकीकत पर आती है, तो ये सारी सुविधाएं छू मंतर हो जाती हैं।

वास्तविकता

ऐसी स्थिति में यदि किसान अपनी उपज को पंजीकृत APMc के बाज़ारों के बाहर बेचेंगे तो उनको एक शुल्क में बांध दिया जाएगा। कई किसान मंडी शुल्क देने में असमर्थ होंगे। राज्यों में जो कमीशन एजेंट्स हैं उनका काम पूरी तरह से चौपट हो जाएगा।

जब कृषि व्यापार राज्य की मंडियों से बाहर कि ओर कूच करेंगे। इसमें किसानों का शोषण होगा। इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग जैसे eNAM भौतिक ‘मंडी’ संरचना का उपयोग करता है। यदि व्यापार के अभाव में ‘मंडी’ पूरी तरह नष्ट हो जाती है, तो ऐसे में eNAM का क्या होगा?

मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं का समझौता (सशक्तिकरण और संरक्षण)

छोटे किसानों के लिए खातों का आश्वासन दिया गया है। जिनके पास 5 हेक्टेयर से कम भूमि है। उनके लिए एकत्रीकरण और अनुबन्ध के माध्यम से भविष्य में मदद की जाएगी। भारत में केवल 86% किसानों के पास खातें हैं।

ऐसे में किसानों को बाज़ार और व्यवसाय के जोखिमों को कम करने में मदद मिलेगी। किसानों को आधुनिक तकनीक का उपयोग करने और बेहतर इनपुट प्राप्त करने में सक्षम बनाने को प्राथमिकता दी जाएगी। विपणन की लागत को कम करने और किसानों की आय को बढ़ाने के लिए नीतियां बनाई जाएंगी। किसानों और व्यापारियों के बीच बिचौलियों की मौजूदगी को खत्म किया जा सकेगा।

वास्तविकता

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग व्यवस्था में किसान एक कमज़ोर कड़ी का हिस्सा बन जाएंगे। किसानों की क्षमता उसके काम पर निर्भर करती है। मगर जब बात कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की आएगी, तो यहां बड़े व्यपारियों को अधिक मुनाफा मिलेगा। प्रायोजक छोटे और सीमांत किसानों का आर्थिक शोषण बड़ी ही सफलता से कर सकेंगे।

बड़ी निजी कंपनियों, निर्यातकों, थोक विक्रेताओं के नियमों में बदलाव होने के कारण प्रायोजकों को विवादों में बढ़त मिलेगी। किसान अभी भी अपने हाथ और पैरों को अपना देवता मानते हैं, उनको मेहनत की आदत है। बात जब संरक्षण और विकास की है, तो इसमें भी बड़े निर्यातक, और भूस्वामियों को ही फायदा मिलेगा।

वस्तुओं से संबंधित विधेयक आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020

अनाज, दाल, तिलहन, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रस्ताव है। युद्ध जैसे और आपातकाल के हालातों को छोड़कर इसकी भंडारण सीमा को नियमित कर दिया जाएगा।

यह प्रावधान निजी क्षेत्र/एफडीआई को कृषि के क्षेत्र में आकर्षित करेगा, क्योंकि यह व्यवसाय को चलाने में निजी निवेशकों के हस्तक्षेप को नियंत्रित करेगा। मूल्य स्थिरता लाकर किसानों और उपभोक्ताओं दोनों की मदद करना शामिल होगा।

वास्तविकता

असाधारण परिस्थितियों के लिए मूल्य सीमा इतनी अधिक है कि वह कभी भी साधारण तरीके से लागू नहीं हो सकता। बड़ी कंपनियों को स्टॉक कमोडिटीज की स्वतंत्रता होगी, इसका मतलब है कि वे किसानों के लिए शर्तों को निर्धारित करेंगे, जिससे किसानों को कम कीमत मिल सकती है। प्याज पर निर्यात प्रतिबंध पर हालिया निर्णय इसके कार्यान्वयन पर संदेह पैदा करता है।

कुल मिलाकर यह संशोधन किसानों के लिए नहीं है। कृषि क्षेत्र में सबसे प्रमुख इकाई किसान ही होते हैं। ऐसे में कृषि से सम्बंधित बदलाव में किसानों का महत्वपूर्ण स्थान होना चाहिए। यहां साफतौर पर झलक रहा है कि यह बिल व्यपारियों के लिए जितना सुलभ है किसानों के लिए उतना ही कठिन।

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