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“शिक्षा में मेरे साथ भेदभाव हुआ, क्योंकि मैं एक दलित हूं”

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा कुछ माह पहले मानव विकास सूचकांक 2019 जारी किया गया। इस सूचकांक में भारत ने एक पायदान ऊपर आते हुए 129वां स्थान हासिल किया। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के प्रतिनिधियों ने दावा किया कि यह सुधार जीवन प्रत्याशा, शिक्षा तथा स्वास्थ सेवाओं तक पहुंच में बढ़ोत्तरी होने के कारण आया है।

आइए इसकी पड़ताल करते हैं। पिछले कुछ वर्षों में देखें तो झारखंड में भुखमरी से मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। एक बच्ची, जिसके परिवार का राशन कार्ड आधार से लिंक नहीं था, उसे राशन देने से इंकार कर देने के कारण उसकी मृत्यु ‘भात भात ‘ कहते-कहते हो गई।

स्वास्थ्य सुविधाएं चौपट

दुमका के कमलेश्वर भी राशन कार्ड आधार से लिंक नहीं होने के कारण भूख का शिकार हुए। सितम्बर 2017 से लेकर अब तक 19 लोगों की मृत्यु भूख से हो चुकी है। इन परिवारों के पास जीविकोपार्जन के पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं थे।

मेरे गाँव में स्वास्थ्य संबंधित सुविधाओं का विस्तार कई वर्षों से नहीं हुआ है। गाँव में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र एक किराए के कमरे से संचालित होता है। यहां एक डॉक्टर और एक सहायक की तैनाती है। डॉक्टर हफ्ते में एक या दो दिन ही आते हैं। यहां जो दवाइयां सरकार द्वारा प्रदान की जाती हैं, उन्हें ब्लैक में बेच दिया जाता है।

इस स्वास्थ्य केन्द्र पर अपना इलाज कराने बहुत कम लोग जाते हैं। ग्राम पंचायत में एक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र का भवन कई वर्षों से बना हुआ है लेकिन वहां किसी डॉक्टर की कोई तैनाती आज तक नहीं हुई है।

शिक्षा में भेदभाव

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

मैं एक दलित बहुल गाँव से हूं और ऐसे में मेरे गाँव में यदि शिक्षा और स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधाएं ना हों, फिर यह कहना गलत नहीं होगा कि मेरे साथ-साथ तमाम दलित भी भेदभाव का सामना करते हैं।

शिक्षा का प्रसार गाँव में पिछले कुछ वर्षों में ज़रूर हुआ है। लड़कियों का नामाकंन बढ़ रहा है, जो एक सकारात्मक बात है लेकिन सारी चिंता इस बात की है कि अक्सर 12वीं के बाद ज़्यादातर बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं, जिनमें लड़कियों की संख्या अधिक होती हैं।

इसमें कई कारण होते हैं जैसे-

पिछले कुछ वर्षों में मैंने अनुभव किया तो यह बात सामने आई कि मेरे गाँव के आस-पास निजी विद्यालयों और कॉलेजों का तेज़ी से विस्तार हुआ है। पिछले 6 वर्षों में तीन निजी डिग्री कॉलेज, तीन इंटरमीडिएट कॉलेज और चार प्राथमिक शिक्षा के विद्यालयों का विकास हुआ है।

सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इन शिक्षा केन्द्रों का विकास गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के नाम पर किया गया है लेकिन किसी भी प्रकार की गुणवत्ता यहां नहीं है। विद्यालय लाभ बनाने का केन्द्र बन गए हैं।

सबसे दिलचस्प बात जो मेरे सामने आई, वो यह कि इनमें ज़्यादातर स्कूल नेताओं के हैं और जिन ज़मीनों पर ये स्कूल संचालित हो रहे हैं, उनमें कुछ ज़मीनें विवादास्पद हैं। मेरे गाँव के करीब एक निजी डिग्री कॉलेज है, जिसे उस समय के विधायक जी ने बनवाया था।

जिस विधायक की यह ज़िम्मेदारी थी कि वह सरकार से सिफारिश करके एक सार्वजनिक कॉलेज खुलवाएं, उन्होंने निजी कॉलेज ही खोल दिया। सरकार ने बजट बर्ष- 2018 में शिक्षा पर 83,626 करोड़ रूपये आवंटित किया लेकिन इसमें से 3,411 करोड़ रुपये सरकार द्वारा खर्च ही नहीं किया गया। यह संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की जो रिपोर्ट आई है, उसमें और सरकार के आंकडों में विरोधाभास को दिखाता है।

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