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बिहार विधानसभा चुनावों को देखते हुए कोरोना ने समेट लिया है अपना कहर!

बचपन में बड़े-बुज़ुर्गों से सुना करती थी कि राजनीतिक चुनाव जनहित के मुद्दों, जन-कल्याणकारी योजनाओं, भविष्यगामी नीतियों, दूरदर्शिता और राजनीतिक अनुभव के आधार पर लड़े और जीते जाते हैं लेकिन वर्तमान का सच कुछ और है। आज कल चुनाव झूठे वादों, छल-कपट, आरोप-प्रत्यारोप, वोटों और प्रत्याशियों की खरीद-फरोख्त तथा आंकड़ों की चालबाज़ी के आधार पर लड़े और जीते जाते हैं। जो इस बाज़ीगरी में माहिर हो, फैसला उसी के हक में और सत्ता पर उसका ही वर्चस्व !

‘राजनीतिक मूल्य’ या फिर ‘राजनीतिक नैतिकता’ जैसे शब्द अब बस कानून की मोटी-मोटी किताबों में ही सिमटकर रह गए हैं। असल ज़िन्दगी से इसका कोई वास्ता नहीं है। फिलहाल इस साल नंवबर महीने में बिहार में चुनाव प्रस्तावित है। बिहार को राजनीति का गढ़ माना जाता है। इस राज्य ने केवल देश ही नहीं, बल्कि दुनिया को भी एक-से-बढ़कर एक राजनीतिक और प्रशासनिक दिग्गज दिए हैं।

चाणक्य और आर्यभट्ट जैसे विद्वानों की कर्मभूमि बिहार में करीब साल भर पहले से ही चुनावी सरगर्मियां तेज़ होने लगी थीं। बिहार एक ऐसा राज्य है, जिसके चुनावी परिणाम केवल राज्य की राजनीति को ही नहीं, बल्कि पूरे देश की राजनीति को भी प्रभावित करते हैं। इसी वजह से चाहे केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार, चुनावी बिगुल बजते ही अपने-अपने तरीके से वोटबैंक के जोड़-तोड़ का हिसाब लगाना शुरू कर देते हैं।

कोरोना काल में चुनाव करवाने वाला बिहार देश का पहला राज्य

वर्तमान कोरोना आपदा काल में बिहार देश का पहला ऐसा राज्य होगा, जहां विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव आयोग द्वारा कोविड-19 के मद्देनज़र जारी गाइडलाइंस के तहत पहली बार बिहार में डिजिटल चुनाव लड़ने की तैयारी हो रही है।

अब सवाल यहां यह उठता है कि ‘पिछड़े’ और ‘बीमारु’ राज्य की लिस्ट में शामिल बिहार इस चुनाव के लिए कितना और किस हद तक तैयार है? दूसरा, डिजिटल तरीके से पेश किए गये चुनावी आंकड़े और रैलियां राज्य की जनता को किस तरह से प्रभावित कर पाएगी? इस संदर्भ में कुछ प्रमुख बिंदुओं पर गौर फरमाएं-

  • बिहार सहित पूरी दुनिया पिछले करीब 8 महीने से कोरोना महामारी की गिरफ्त में है। बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था और स्वास्थ्य जागरूकता का हाल किसी से छिपा नहीं है। यहां कोरोना आपदा से लड़ने के लिए लोग दवाईयों पर नहीं, बल्कि ‘कोरोना माई’ की कृपा पर निर्भर हैं। ज़्यादातर लोग मास्क से नाक और मुंह ढंकने के बजाय उसे गले, कान या गर्दन में लटकाना पसंद करते हैं। ऐसे में राज्य सरकार फिलहाल चुनाव आयोग की गाइडलाइंस का कितना और किस हद तक पालन कर पाएगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
  • बिहार सरकार का दावा है कि राज्य में कोरोना रिकवरी रेट 98.96 फीसदी है, जो कि राष्ट्रीय औसत से 14 फीसदी अधिक है। इसे निश्चित रूप से एक भयावह स्थिति नहीं कहा जा सकता है। बिहार सरकार लगातार इस दिशा में प्रयास कर रही है और स्वास्थ्यकर्मियों को घर-घर भेजकर लोगों की टेस्टिंग करवा रही है। वहींं दूसरी ओर, स्वास्थ विशेषज्ञों की मानें तो बिहार में अब तक राज्य सरकार की ओर से जो टेस्टिंग करवाई गई है, वो एंटीजेन टेस्टिंग है, जिसके तहत औपचारिक पूछताछ या आरंभिक लक्षणों के आधार पर जांच की जा रही है। इसमें काफी हद तक गलत परिणाम आने की संभावना है।

बता दें कि बिहार में फिलहाल करीब डेढ़ लाख लोग कोरोना पॉज़िटिव हैं, जिनमें से करीब 900 लोगों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा जिस तेज़ी से मामले बढ़ रहे हैं, उस स्थिति में निश्चिंद नहीं हुआ जा सकता है।

  • बिहार में कोरोना की आड़ में जिस तरीके से आंकड़ों का खेल खेला जा रहा है, उसे भी समझना बेहद जरूरी है। जब बिहार में कोरोना संक्रमण की एंट्री हुई थी, उस वक्त संजय कुमार जी राज्य स्वास्थ्य निदेशक के पद आसीन थे। वह  रोज़ाना राज्य स्वास्थ्य बुलेटिन जारी करके राज्य में कोरोना की वस्तुस्थिति की जानकारी दिया करते थे. साथ ही, सरकारी मेडिकल व्यवस्था की कमियों को भी समय-समय पर उजागर करते थे. सुशासन बाबू को यह सब नागवार गुजरा। आखिर एक चुनावी राज्य में ऐसी किसी वैश्विक विपदा के आंकड़े चुनाव के समय में बढ़ कैसे सकते हैं? इससे उनका वोट बैंक ना घट जाता! नतीजा, संजय कुमार जी को तुरंत ही शिक्षा विभाग की ज़िम्मेदारी सौंप दी गई और प्रत्यय अमृत को नया स्वास्थ्य निदेशक बना दिया गया। उनके आते ही ना केवल कोरोना मरीजों की जांच की संख्या लाखों में पहुंच गई, बल्कि बिहार में कोविड-19 का रिकवरी रेट भी बढ़कर अब तक 98 फीसदी हो गई है। साथ ही, पॉज़िटिव होने वालों की दर में भी कमी देखने को मिल रही है। अब इसे प्रकृति का चमत्कार कहा जाए या फिर नए स्वास्थ्य सचिव महोदय का प्रभाव, यह तो जनता ही तय करे।
  • बिहार में हो रहे कोरोना टेस्टिंग का एक मज़ेदार पहलू यह भी है कि जो लोग पिछले तीन-चार महीनों से बिहार से बाहर हैं या जिन्होंने अभी तक कहीं भी किसी तरह का कोरोना टेस्ट करवाया ही नहीं है, सरकार द्वारा उनकी टेस्ट रिपोर्ट भी जारी की जा रही है। ऐसे कई रोचक उदाहरण पिछले दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हुए हैं। राज्य में कोरोना के रिकवरी रेट को सुधारने का बिहार स्वास्थ्य विभाग का यह तरीका वाकई काबिल-ए-तारीफ है।
  • बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राजनीतिक कार्यों एवं योगदानों की बात की जाए तो वो अपने पहले कार्यकाल की तुलना में अपने दूसरे कार्यकाल में थोड़े सुस्त रहे हैं। फिर भी राज्य के इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, शिक्षा योजनाओं और पिछले कुछ समय से सामाजिक सरोकारों से जुड़े अपने अभियानों को लेकर वो चर्चा में बने हुए हैं। फिलहाल उनके समकक्ष विरोधी पार्टियों का कोई भी उम्मीदवार खड़ा नज़र नहीं आता है, जिसका फायदा निश्चित रूप से उन्हें मिल सकता है।

फिलहाल मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा कर दी है। अक्टूबर से नवंबर माह के बीच बिहार में तीन चरणों में (पहला चरण: 28 अक्टूबर, दूसरा चरण: 3 नवंबर और तीसरा चरण: 7 नवंबर) विधानसभा चुनाव होने हैं।

10 नवंबर को परिणाम जारी होने के बाद पता चल जाएगा कि बिहार में किसकी सरकार बन रही है। इस बीच देखना यह है कि पूरी दुनिया सहित कोरोना वैक्सीन का इंतज़ार कर रही बिहार की जनता किस तरह इन चुनावों में अपनी भागीदारी निभाती है और उनकी इस भागीदारी को सुरक्षित तरीके से सुनिश्चित करने के लिए सरकार की ओर से क्या-क्या तैयारियां की जाती हैं।

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