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कोरोना और लॉकडाउन से परेशान हैं छत्तीसगढ़ के पंडो आदिवासी, नहीं हो पा रही कोई कमाई

कोरोना वायरस की वजह से देश और दुनिया के सभी लोगों को किसी ना किसी प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। लोगों के सेहत के साथ-साथ अर्थव्यवस्था भी खराब हो रही है। कारखाने, कम्पनियां बंद होने के कारण लोगों की नौकरियां भी खतरे में है। मज़दूरों को भी काम नहीं मिल रहा, जिससे गाँव में रहने वाले लोगों की समस्या और भी बढ़ गई है।

छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले के ब्लॉक पोड़ी उपरोड़ा में ऐसे कई गाँव हैं, जहाँ पंडो आदिवासी निवास करते हैं। यह समुदाय जंगलों में या जंगलों के नीचे घर बनाकर रहते हैं। इनके घर मिट्टी और छप्पर से बने होते हैं और कहीं-कहीं पर घास फूस का भी प्रयोग करते है।

यहां तीर खूंटी से लेकर दलदली पारा तक पंडो आदिवासी निवास करते हैं। पंडो आदिवासी ज़्यादातर झाड़ू और सुपा बनाकर पैसे कमाते है लेकिन महामारी के इस दौर में सरकार के द्वारा जो समान मिल रहा है, उसी के सहारे यह अपना जीवन-यापन कर रहे हैं।

दलदली पारा के निवासी शिवप्रसाद पंडो

लॉकडाउन के कारण नहीं हो पा रही है कमाई

दलदली पारा के निवासी शिवप्रसाद पंडो लॉकडाउन से हो रही परेशानियों के बारे में बताते हुए कहते हैं,

इस लॉकडाउन में मुझे बहुत परेशानी हुई। मुझे कहीं जाने की भी छूट नहीं है और काम भी मिल पाना बहुत ही मुश्किल लग रहा है। मैं सुपा बनता हूं और एक सुपा के मुझे 120-130 रुपए मिल जाते हैं। इस लॉकडाउन में मेरी कोई कमाई नहीं हुई है, इससे हमारी आर्थिक स्थिति भी खराब होती जा रही है।

वे आगे बताते हैं, “सरकार जो चावल दे रही है, उसी से हम काम चला रहे है। आजकल जंगल जाने में भी दिक्कत होती है, मैं सुपा के लिए बांस भी इकट्ठा नहीं कर सकता।”

कोरोना वायरस से मृत्यु का दर बढ़ता ही जा रहा है और दूसरी तरफ लोगों की भूख से भी मौत हो रही है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में ज़्यादातर लोग घर पर कुछ चीज़ें बनाकर बेचते हैं, या फिर खेती किसानी या मज़दूरी करके पैसे कमाते हैं। लॉकडाउन के समय ना ही लोग चीज़ें बेच पा रहे हैं, और ना ही मज़दूरों को काम मिल रहा है। किसानों को भी फल-सब्ज़ी बेचने में और बाहर भेजने में तकलीफ हो रही है।

शहर के बहुत सारे लोग जिनके पास पैसा है, वह ऑनलाइन समान खरीदकर खाने का बंदोबस्त कर लेते हैं लेकिन ग्रामीण लोगों का क्या?  खासकर गाँव के गरीब लोगों को सबसे ज़्यादा कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। शासन से थोड़ी-बहुत मदद मिल रही है लेकिन बड़े परिवारों के लिए 35 किलो चावल भी ना के बराबर है। 

पंडो आदिवासी अपनी बाडियों में भुट्टा, खीरा और शकरकंद उगा रहे हैं

आदिवासी भुखमरी से बचने के लिए कर रहे हैं प्रयास

ऐसे समय में जब पैसों की और खाने की कमी है, छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी कोरोना वायरस से हो रही भुखमरी से बचने के लिए अपने घरों की बाडियों में अपने लिए और अपने परिवार के लिए खाने की चीज़ें उगा रहे हैं, जिससे आने वाले कल में उन्हें भुखमरी का सामना ना करना पड़े।

पंडो आदिवासी अपनी बाडियों में भुट्टा, खीरा और शकरकंद उगा रहे हैं। इस खाने को मवेशियों से बचाने के लिए मेहनत करके बाड़ी को बांस के द्वारा रूंधाई कर रहे हैं। कोरोना से आदिवासियों को होने वाली परेशानियों का हल सरकार को जल्द से जल्द निकालना होगा।


यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजैक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, और इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है।

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