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पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती है फीचर फिल्म ‘वनरक्षक’

प्रकृति रक्षति: रक्षिता: यानी जब हम प्रकृति की रक्षा करेंगे तब ही प्रकृति हमारी रक्षा करेगी। जी हां, प्रकृति जिससे एक व्यक्ति जब जन्म लेता है और जब इस दुनिया को छोड़ता है तब तक उससे कुछ-न-कुछ लेता है। वेदों पुराणों में भी प्रकृति का बहुत महत्व बताया गया है। पौराणिक काल से ही पर्यावरण के प्रति सजगता दिखाई पड़ती है।

महाभारत में जब यक्ष ने पहला प्रश्न पांडव जेष्ठ युधिष्ठिर से पूछा कि बताओ धरती से भारी क्या है और आकाश से ऊंचा कौन है? तब युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि धरती से भारी मां है और आकाश से ऊंचा पिता है। 

कहने का तात्पर्य है कि बहुत पहले से ही हमारी धरती को मां का दर्जा दिया गया है। इस धरती पर लगे पेड़ पौधे, वनस्पति, जीव-जंतु में श्रेष्ठ मनुष्य को ही कहा गया है। मनुष्य आपस में एक-दूसरे पर निर्भर हैं। इनमें से किसी एक का भी गायब हो जाना पूरे प्रकृति चक्र को बिगाड़ देगा। प्रकृति की ओर से हमें हमेशा दिया ही गया है लेकिन मैं की भावना रखने वाला मानव हमेशा प्रकृति का दोहन ही करता आया है। 

पिछले 25 सालों में रिपोर्ट के अनुसार, “रिकॉर्ड वृक्षों” का कटान हुआ है और पर्यावरणविदों की मानें तो अगर हमने यह कटान नहीं रोका तो प्रलय निश्चित ही है, ग्लोबल वार्मिंग इसका संकेत है।

प्रकृति का नष्ट होना, मनुष्य का नष्ट होना है

ऐसे में जब प्रकृति नष्ट होती जा रही है तो इसमें कोई दो राय नहीं कि मनुष्य अपने भविष्य को नष्ट कर रहा है। प्रकृति को सहेजना बेहद ज़रूरी है। पर्यावरण का संरक्षण और संवर्धन आज के समय की मांग है। ऐसे में लोगों को जागरुक करना अत्यधिक आवश्यक है। हमारे भारत के साथ-साथ पूरे विश्व में ऐसे कई पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। जो पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक कर रहे हैं और सरकारों को जगा रहे हैं। 

वैसे मुंबई नगरी में बसी हमारी बॉलीवुड इंडस्ट्री भी पर्यावरण संरक्षण जैसे गंभीर मुद्दों पर फिल्में बनाकर लोगों को जागरूक करने का काम शुरू कर चुकी है।

फिल्म के ट्रेलर का एक सीन

हाल हीं में “शीला देवी फिल्म” की ओर से उनकी पहली फिल्म “वनरक्षक” का ट्रेलर लॉन्च किया गया है। जिसमें बिहार, मधुबनी के धीरेंद्र ठाकुर मुख्य भूमिका में हैं और ट्रेलर में यह दर्शाया गया है कि किस तरह से एक आम व्यक्ति वृक्ष यानी प्राकृतिक संपदा के लिए अपना जीवन तक न्योछावर कर देता है। 

ट्रेलर में धीरेंद्र के साथ मशहूर बॉलीवुड एक्टर यशपाल शर्मा और सोनी चैनल पर आने वाले सीआईडी से मशहूर हुए अभिजीत के किरदार वाले आदित्य श्रीवास्तव भी नज़र आ रहे हैं।

ट्रेलर शुरू होते ही हमें यह लाइनें सुनाई देती है,

“हमारे शास्त्रों ने हमारी संस्कृति ने हमें यह सिखाया है कि प्रकृति में ईश्वर वास करते हैं हम यहां वृक्षों की पूजा करते हैं भूमि की पूजा करते हैं पहाड़ों की पूजा करते हैं नदियों की पूजा करते हैं परंतु अफसोस की बात यह है कि ज़रूरत से ज़्यादा मशीनीकरण और आधुनिकीकरण की होड़ में हम पूरी प्रकृति का नाश कर रहे हैं।”

फिल्म के मुख्य कलाकार धीरेंद्र ठाकुर से बातचीत के कुछ मुख्य अंश

प्रश्न- कैसा लग रहा है आपको एक ऐसे संजीदा मुद्दे पर बनी फिल्म में काम करने पर जो हमेशा से ही समाज का अभिन्न अंग रहा है लेकिन लोगों ने इस पर ध्यान नहीं दिया?

धीरेंद्र- लोगों ने इस पर ध्यान नहीं दिया लेकिन यह मुद्दा न कभी दूर था न दूर कभी रहेगा। हमने अपनी आंखें बंद कर लीं, वह हमारी गलती थी। यह तो हम सब को समझना पड़ेगा कि यदि प्रकृति नहीं है तो इंसान का अस्तित्व ही नहीं है। जब मनुष्य ने धरती पर जन्म लिया तो इसके साथ-साथ और जीवों ने भी इस धरती पर जन्म लिया। अत: हमारे कुछ दायित्व हैं। उन सभी जीवों के प्रति उन्हीं दायित्व को आज हम भूल बैठे हैं, हमें उन दायित्वों का निर्वहन करना नहीं आता या हम ठीक से नहीं कर रहे। बहुत अच्छा लग रहा है कि एक ऐसे मुद्दे पर फिल्म में काम किया है जो सभी से जुड़ा हुआ है और दर्शक पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती हमारी इस फिल्म से सीख लें तो यह हमारी सबसे बड़ी सफलता होगी।

प्रश्न- फिल्म की थीम क्या है?

उत्तर- यह फिल्म सत्य घटना से प्रेरित, एक फारेस्ट गार्ड के जीवन पर आधारित है। एक आम आदमी की लड़ाई है उन लोगों से जो प्रकृति को नाश करने में तुलें हुएं हैं। बचपन से ही वह व्यक्ति प्रकृति से जुड़ा होता है, संघर्ष भी करता है और बड़ा होकर अपना व्यवसाय संभालता है। 

कहीं न कहीं वो अपने आसपास हो रहे बदलावों से व्यथित हो रहा होता है, जंगलों में लगी आग, वन माफिया इन सबसे से प्रभावित वह विचलित रहता है। एक दिन अचानक अपने व्यवसाय को बंद कर वह “वन रक्षक” की ड्यूटी ज्वाइन करता है और पेड़ों को अंधाधुन अपने स्वार्थ के लिए काट रहे माफियाओं से लड़ता है। उनसे उलझते और लड़ने के क्रम में एक दिन जंगलों को बचाते-बचाते वह अपने प्राण त्याग देता है। इसी पृष्ठभूमि पर यह फिल्म बनाई गई है।

प्रश्न– फिल्म कहां शूट की गई है, बाकी के किरदारों के साथ आपका कैसा अनुभव रहा ?

उत्तर- हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले के जंजैहली गांव की शूटिंग है। बहुत सुंदर अनुभव रहा, कलाकार के साथ साथ वह एक अच्छे व्यक्ति हैं। जैसे आदित्य श्रीवास्तव, यशपाल शर्मा ये सभी आपको बातों-बातों में ही बहुत कुछ सिखा देते हैं।

फिल्म के ट्रेलर का एक सीन

प्रश्न- विकास की जितनी भी योजनाएं आतीं हैं, उनमें अधिकांश पर्यावरण विरोधी होते हैं। सरकार ऐसा क्या करें कि विकास तो हो लेकिन पर्यावरण का दोहन न हो?

उत्तर- विकास का विरोधी कोई नहीं होता है लेकिन यह हमें चुनना होगा कि हम ऐसा विकास करें जिसका विरोध न हो। विकास के लिए हमें उसकी कीमत क्या चुकानी पड़ रही है, हमें इसपर विचार करने की आवश्यकता है। डेवलपमेंट यानी विकास तो होता ही रहेगा और होना ही है लेकिन यदि हम उस होने वाले डेवलपमेंट से पहले वैचारिक डेवलपमेंट भी कर लें तो वह ज़्यादा अच्छा रहेगा।

प्रश्न- ज़ीरो कार्बन एमिशन के सपने को हम कैसे पूरा कर सकते हैं? क्या केवल समझौते करने ठीक हैं या उन समझौतों का मर्म भी समझना ज़रूरी है। आपके नज़रिए से क्या करना चाहिए ?

उत्तर- ज़ीरो कार्बन एमिशन को हम बिल्कुल पूरा कर सकते हैं। जब मानव ने हर मुश्किलों का सामना करते हुए बड़े-बड़े पहाड़ जैसे सपने पूरे किए हैं तो ज़ीरो कार्बन एमिशन उसके सामने कुछ भी नहीं। हम प्लास्टिक प्रदूषण न करें, ज़्यादा से ज़्यादा वृक्ष लगाएं और उनकी देखरेख करें। जो संसाधन हमें प्रकृति से प्राप्त हो रहे हैं उसका हम सम्मान करें और वह चीजें जो हम बना रहे हैं जो मनुष्य के द्वारा बनाई जा रही हैं जिसका हम अत्यधिक इस्तेमाल कर रहे हैं उनका इस्तेमाल कम से कम किया जाए। 

यदि आप अपने घर से ज़रा सी दूरी पर कहीं जा रहे हैं तो बजाय गाड़ी के आप साइकिल इस्तेमाल करिए। पैदल चलकर जाइए, कहीं न कहीं यह भी हमारा व्यक्तिगत योगदान रहेगा ज़ीरो कार्बन एमिशन को अचीव करने में। 

बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां ऐसे उपकरण इस्तेमाल करें जिससे हमारा पर्यावरण कम प्रदूषित हो और इस पर कड़ी नज़र सरकार भी रखे। क्योंकि कई जगह पर सरकारें ऐसे मामलों में लापरवाही बरतती हैं, तो लापरवाही को न बरता जाए। सख्ती के साथ पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे को लिया जाए। भारत में पराली जलाना एक बड़ी समस्या है, तो उन्हें जलाने के बजाय हम खाद बनाने में उपयोग करें। “जीरो कार्बन एमिशन” के टारगेट को हम केवल तभी पूरा कर सकते हैं जब सरकारी योजनाओं और फैसलों को सफल बनाने में जन भागीदारी बढ़ चढ़कर हो।

प्रश्न- आज हम चाहते हैं कि कोयला फैक्ट्रियों से हम सोलर एनर्जी की ओर बढ़े, लेकिन जब हम इस पर विचार करते हैं तो सामने आता हैं कि बेरोज़गारी की दर भी बढ़ेगी। तो इसे कैसे कम किया जाए या क्या बिंदु हैं जिन्हें हमें अपनाना चाहिए। बैलेंसिग कैसे हो?

उत्तर- आज के बदलते दौर में हमारा कोयले की ओर से रूझान कम हो रहा है और हम अक्षय उर्जा यानी पवन, और सौर ऊर्जा की ओर तेज़ी से बढ़ रहें हैं। बिजली उत्पादन में यह तकनीक बहुत हद तक मददगार सिद्ध हो रही हैं। जहां तक बात बेरोज़गारी की है, तो फिलहाल कोरोना ने सभी को बेरोज़गार किया। लेकिन ज़िंदगी धीरी-धीरे ही सही लेकिन पटरी पर लौट तो रही ही है। 

जब भी कोई बदलाव होता है वह अच्छे के लिए होता है तो पूरा देश आपके साथ खड़ा होता है। बदलाव ने तो नोटबंदी भी झेली थी, समाज बेरोज़गारी का सामना ज़रूर करेगा लेकिन उससे कैसे निपटना है वह अच्छे से जानता है। हां, सरकार की, उच्च अधिकारियों की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि जब भी ऐसी स्थितियां पैदा हों तो वह उसे सामान्य करने के लिए कदम उठाएं। एक साथ तो नहीं हम सारी कोयला फैक्ट्रियां बंद कर देंगे या एकसाथ तो नहीं हम सौर या पवन उर्जा की ओर बढ़ेंगे। यह काम धीरे-धीरे हों तो अच्छा है। एक तरफ हम कोयला पर निर्भरता धीरे-धीरे कम करें और पर्यावरण के अनुकूल साधनों की ओर बढ़ें।

फिल्म के ट्रेलर का एक सीन

प्रश्न- समाज को आप क्या संदेश देंगे?

धीरेंद्र- जो लोग वृक्षों को बचाने के लिए और पर्यावरण संरक्षण में लगे हुए हैं सबसे पहले तो मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं। साथ ही उनसे कहना चाहूंगा कि आप सच में बहुत उत्तम कार्य कर रहे हैं। जीवन बहुत अनमोल है, हमारे साथ-साथ जो अन्य जीव हैं उनका भी उतना ही अनमोल है इसलिए सभी का आदर करिए और यह पृथ्वी किसी एक की नहीं हम सबकी है। इसलिए हम सभी को इस पृथ्वी को सहेजने में योगदान दें।

आशा करता हूं आपको यह खास लेख पसंद आया होगा। यहां “वनरक्षक” फिल्म के ट्रेलर देख सकते हैं।

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