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डॉ. कफील खान की गिरफ्तारी को हाईकोर्ट ने बताया गैर-कानूनी

उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ,
हमें यकीं था हमारा कुसूर निकलेगा।

-अमीर कज़लबाश

इस समय के लिए कितना सार्थक और सटीक लगता है ना यह शेर। क्या ज़माना आ गया है। जिस समय डॉ. कफील खान को अलीगढ़ ज़िला प्रसाशन ने एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) के तहत मामला दर्ज़ किया था और उनको जेल भेज दिया था, उस समय यह बात सामने आती है कि सरकार खुद ही अपराध करती है और जो हक बयानी करता है, उसको अपराधी घोषित कर दिया जाता है।

8 महीने पहले नागरिकता संशोधन कानून के लागू होने के समय सीएए के विरोध में तथाकथित भड़काऊ भाषण देने की वजह से उत्तर प्रदेश सरकार ने इनको गिरफ्तार कर लिया और जेल में डाल दिया।

यहां वही बात याद आती है कि क्या फिर से उसी भारत का उदय हो रहा है, जहां गाँधी जी ने अपनी जूतियां घिसी थीं और अपना बचाव करने के खिलाफ उनको जेल में डाल दिया गया। आठ महीने से हाइकोर्ट को अब समझ आया कि डॉ. काफिल का भाषण दंगों को भड़काने वाला नहीं था, देश की एकता के लिए था। अब उस 8 महीनों का कौन-सा कफ्फारा अदा करेंगे देश के न्याय की नइया को डुबोने वाले?

डॉ. काफिल ने बचाई थी कई बच्चों की जान

वर्ष 2017 अगस्त में डॉ. कफील की ड्यूटी के दौरान अस्पताल में अचानक से ऑक्सीजन की सप्लाई खत्म हो गई थी। उस समय आईसीयू में भर्ती कई नवजात और कई छोटे बच्चों की मौत हो गई थी।

उस वक्त डॉ. कफील ने बाहर से ऑक्सीजन का इंतेज़ाम करवा कर कई बच्चों की जान बचाई थी। उन्होंने बच्चों को बचाने की अपनी पूरी कोशिश की। मगर मीडिया ने इस पक्ष को नज़रअंदाज़ किया और उनका नकरात्मकता पक्ष सबके सामने रख दिया।

प्रशासन ने उनको लापरवाही और भष्टाचार के आरोप के साथ अस्पताल से निलंबित कर दिया गया। जबकि उस रात उनको अपने दोस्त के नरसिंग होम से 12 ऑक्सीजन के सिलिंडर लाने पड़े थे।

इस हॉस्पिटल की बाग़डोर योगी सरकार के हाथों में थी। कई महीनों से भुगतान न करने की वजह से योगी सरकार को इस बात का ज़िम्मेदार ठहराया जाने लगा। बस फिर क्या था योगी सरकार ने डॉ. कफील को अपराधी घोषित कर दिया।

यह सरेआम गुंडाराज है। यहां कोई हक नहीं बोल सकता और अगर प्रसाशन की नीतियों में सवाल खड़े कर दिए, तो आपने किसी गहरे जख्म पर छुरी से वार कर दिया। आपने किसी भूखे भेड़िए को खून की महक सूंघा दी और उसके बाद आप ही सामने नज़र आए, तो आप ही शिकार बनेंगे।

आपको यह भेड़िया रूपी समाज नोच-फाड़कर खा जाएगा। जुलाई 2020 में डॉ कफील ने जेल से पत्र लिखा जिसकी पुष्टि उनकी धर्मपत्नी डॉ. शाबिस्ता खान ने की। डॉ. काफिल ने एक भयानक और दिल को ज़ख्म देने वाले दृश्य से ओतप्रोत करवाया। उन्होंने लिखा के कैसे उन्होंने वहां नरकीय जीवन व्यतीत किया। उन्होंने अपने परिवारजनों के लिए यह पत्र लिखा।

“मिनट-मिनट गिनता हूं”

“सिर्फ एक अटैच्ड टॉयलेट और 125-150 कैदियों के साथ, उनके पसीने और पेशाब की गंध, बिजली की कटौती की वजह से गर्मी बहुत परेशान करती है। जीवन नरक से बदतर लगने लगता है।”

उन्होंने आगे लिखा, “मैं पढ़ने की बहुत कोशिश करता हूं, लेकिन घुटन के कारण ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता। कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं चक्कर आने की वजह से गिर जाऊंगा। पूरा बैरक हर तरह की बदबू से भरा मछली बाजार लगता है। लोग खांस रहे हैं, छींक रहे हैं। किसी को बार-बार पेशाब करना होता है। कुछ लोग खर्राटे लेते हैं, कुछ लोग लड़ते हैं, कुछ खुद को तकलीफें देते हैं।”

डॉक्टर ने अपनी नजरबंदी पर भी सवाल उठाया। “मुझे सज़ा क्यों दी जा रही है? मैं कब अपने बच्चों, अपनी पत्नी, अपनी माँ और अपने भाइयों और बहन को देख पाऊंंगा? जब मैं कोरोनोवायरस के खतरे से लड़ने में एक डॉक्टर के रूप में अपने कर्तव्यों को पूरा कर पाऊंगा?”

यह पत्र पढ़कर कितनी तकलीफ होती होगी। उनके अपनों का तो और भी बुरा हाल होता होगा। हम सोचते थे अच्छा हुआ हम लोग उस ज़माने में नहीं थे, जब हमारी सोने की चिड़िया खाक के बवंडर में गुम हो गयी थी।

लगता नहीं हमारे पास फिर से ब्रिटिश साम्राज्य का असर आने लगा है? क्या हमारा देश भी सिविल वॉर से गुज़र रहा है? जैसे यमन और सीरिया गुज़र रहे हैं।

भारतीय समाज पाताल के एक ऐसे गर्त में जा रहा है जहां से वापस आना नामुमकिन होगा। आज यहां सच का डंका नहीं झूठ की शहनाई बजती है।

आज देश खुशियों के प्यालों को नहीं पीता, बल्कि अकाल के समुद्र की भंवर में डूब रहा है। “अंधेर नगरी चौपट राजा” यह तो बस कहावत ही थी, मगर देश की स्तिथि, तो इस समय बदल गई। “मूर्त राजा चौपट देश” जैसी स्थिति बन गई है।

रिहाई के बाद डॉ. कफील खान

मैं ज्युडिशरी का बहुत शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने इतना अच्छा ऑर्डर दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने एक झूठा बेसलेस केस मेरे ऊपर थोपा। बिना बात के ड्रामा करके केस बनाए गए और 8 महीने तक इस जेल में रखा।

इस जेल में मुझे पांच दिन तक बिना खाना-पानी दिए प्रताड़ित किया गया। मैं उत्तर प्रदेश के एसटीएफ को भी धन्यवाद दूंगा, जिन्होंने मुंबई से मथुरा लाते समय मुझे एनकाउंटर में मारा नहीं।

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