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“डियर टीचर्स, हमने भले ही सपने देखे मगर उन सपनों को उड़ान आपने दिया”

आसान होता है क्या एक शिक्षक होना। सिखाने के लिए खुद बच्चा बन जाना पड़ता है। खुद को बच्चा बना लेने की यह खूबी एक अच्छा शिक्षक होने के साथ-साथ एक अच्छा जिंदादिल इंसान भी बनाए रखती है।

जब एक शिक्षक अपना अस्तित्व स्टूडेंट्स के साथ आत्मियता को बताने लगता है, तो आपको अपने शिक्षक से मुहब्बत हो ही जाती है। अपने ही स्टूडेंट्स से पेशेवर शिक्षक के रूप में क्लास रूम से बाहर निकलकर मानवीय संवेदनाओं और मूल्यों के आधार पर शिक्षक और छात्र से परे एक रिश्ता कायम करता है।

जो आपको किताबी शिक्षा के अलावा ज़िंदगी के उन विषयों पर व्यावहारिक ज्ञान देने लगता है। यह जरूरी है बेहतर संवाद के साथ-साथ रिश्ते कायम रखने और सुखद जीवन जीने के लिए। एक शिक्षक जब अपने कड़े संघर्ष से पहुंची उन सारी ऊंचाइयों को दरकिनार करते हुए अपने आपको आपके साथ होने का विश्वास दिलाने लगता है, तो किसी के साथ होने का आभास होता है।

प्रतीकात्मक तस्वीर।

शिक्षक वर्षों की कड़ी मेहनत से कमाई अपनी ज्ञान और अनुभव की पूंजी को किस्तों में आपसे साझा करने लगता है। किताबें पढ़ाते-पढ़ाते ना जाने कब दुनियादारी के भी पाठ पढ़ाने लगता है। उस दिन हम स्टूडेंट्स को शिक्षक केवल शिक्षक नहीं लगते, बल्कि हमें उनमें अपने माता-पिता और अपने अभिभावक लगने लगते हैं।

एक अच्छा शिक्षक जो ना केवल ज्ञान देता है, बल्कि आपको हौसला भी देता है। आपके साथ हंसी-मज़ाक ठिठोली भी करता है। समाज की मर्यादा भी बताता है और उन पर व्यंग भी करता है। ज़रूरत से ज़्यादा मर्यादा और प्रतिबंधों की वजह से पनप रही आपकी सहमी चुप्पी को तोड़ने के लिए भी कहता है।

जी हां, शिक्षक अपनी विचारधारा और मत को एक तरफ रखकर सच को सच और झूठ को झूठ कह देने की हिम्मत रखता है। अपनी योग्यता और सीमाओं को स्वीकारता है। अपने सर्वज्ञाता होने को खारिज करता है।

अपने आपको स्टूडेंट के नज़रिये से पढ़ने लगता है। अपने ही स्टूडेंट्स से सीखने की कोशिश करने लगता है। सिखाते- सिखाते ना जाने कब स्टूडेंट्स के बीच जीने लगता है।

आपसे सवाल करने के लिए कहता है। संवाद की परंपरा में विश्वास रखता है। सम्मान की संस्कृति को संजोए रखता है लेकिन उसे किसी दबाव और ज़बरदस्ती से नहीं, बल्कि आपसी तालमेल से बनाए रिश्ते को मज़बूत करने और एक-दूसरे का आत्मसम्मान बनाए रखने के लिए।

सपने भले ही स्टूडेंट्स देखते हों लेकिन उनमें सपनों की उड़ान भरने के लिए हौसलों के पंख शिक्षक ही लगाते हैं। धन्य हैं वह शिक्षक जिनसे स्टूडेंट्स सीखते ही नहीं हैं, बल्कि उन्हें जीने भी लगते हैं और महसूस भी करते हैं।

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