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इन चार एक्सपर्ट्स से सुनिए कोविड के बाद कैसा होगा रोज़गार का अवसर

वैश्विक महामारी कोविड-19 ने ना केवल विश्व के कार्यों को प्रभावित किया है, बल्कि विश्व की नई प्रौद्योगिकी और विकास तक उसकी पहुंच और नई प्रणालियों के विषय में पुनः विचार करने के संदर्भ में परिभाषित किया है। इन्हीं चीज़ों को समझने और समाधान पर बात करने के लिए 9 सितंबर 2020 को Youth Ki Awaaz ने कई प्रमुख संस्थाओं की सहभागिता से #UnitedForHope के दूसरे संस्करण का आयोजन किया।

गौरतलब है कि अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ), आईएफएडी, भारत में संयुक्त राष्ट्र, YuWaah  और यूनिसेफ इंडिया की साझेदारी में कार्यक्रम का संचालन किया गया।। ‘फ्यूचर ऑफ वर्क” Future of work के विचारों पर केंद्रित यह सत्र कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा।

भारतीय अर्थव्यवस्था और रोज़गार को कोरोना महामारी के बाद कैसे बेहदर बनाया जाए, यही इस कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य रहा। इंटरनैशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन ILO और एशियन डेवेलपमेंट बैंक की सयुंक्त रिपोर्ट के मुताबिक, विश्व में इस महामारी की वजह से 41 लाख से अधिक नौकरियां खत्म हो चुकी हैं।

परिणामस्वरूप सत्र में इस विषय पर चर्चा हुई कि भविष्य में काम करने वाले लोगों का फ्यूचर क्या होगा? इस सत्र में आवश्यक और लाभकारी तथ्यों को उजागर किया गया। सत्र में व्यवहारिक वार्तालाप का समावेश किया गया जिसमें रोज़गार और उद्यमिता के कुछ महत्वपूर्ण बुनियादी सवालों के जवाब देने के लिए ऐसी पृष्ठभूमि का निर्माण किया गया, जिसमें महत्वपूर्ण चार लोगों को एक साथ मंच प्रदान किया गया।

डगमर वॉल्टर, निदेशक, आईएलओ, डीडब्ल्यूटी/सीओ-नई दिल्ली

डगमर वॉल्टर, निदेशक, आईएलओ, डीडब्ल्यूटी/सीओ-नई दिल्ली

कार्यक्रम में ILO का प्रतिनिधित्व करते हुए डगमर ने प्रतिभागियों को इस चर्चा के विषय से परिचित कराया। COVID-19 की दुनिया के बारे में बात करते हुए डगमर ने कहा कि हम कैसे अपनी पुरानी शैली में वापस जा सकते हैं। वे कौन से मानदंड होंगे जो हमको स्वीकार करने होंगे?

इस महामारी के वक्त में उन्होंने कुछ ज़मीनी स्तर के उपायों को भी साझा किया। जैसे कि हम अपने गुज़रे हुए जीवन के बाद दुनिया को एक सुलभ परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिए किन तथ्यों को स्थापित कर सकते हैं। इसके अलावा उन्होंने मानव समावेशी द्रष्टिकोण की आवश्यकता पर आधारित विचारों पर अपना मत पेश किया। साथ ही यह भी बताया कि सरकार को संस्थानों के साथ मिलकर श्रमिकों और नियोक्ताओं के लिए सहयोगात्मक भागीदारी का भी निर्माण करना होगा। जैसे- ILO और सरकार की मिश्रित भागीदारी।

नील बनर्जी, एडवर्टाइज़िंग प्रॉफेशनल

नील बनर्जी, एडवर्टाइज़िंग प्रॉफेशनल

हाल ही में ग्रैजुएट होने के साथ-साथ एक युवा कर्मचारी के रूप में इस सत्र में नील की उपस्थिति ने चर्चा को युवाओं के दृष्टिकोण से आगे बढ़ाने में मदद की। उन्होंने इस तथ्य को उजागर करते हुए शुरू किया कि भारत के कई महत्वपूर्ण बाज़ारों में आने वाले समय में बड़े तौर पर स्किल्स की आवश्यकता होगी। उससे समय युवाओं के कौशल काम आएंगे।

कौशल की गुणवत्ता को बताते हुए उन्होंने देश की वर्तमान शिक्षा को फिर नए सिरे से शुरू करने के लिए और पारिस्थितिक तंत्र के साथ बदलाव लाने के लिए अपनी बात को आगे की ओर बढ़ाया।

नील के विचारों में जो एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात सामने आई वो यह है कि उद्यमिता में सामाजिक समझ को निखारने के लिए पुनर्गठन की आवश्यकता थी। उन्होंने बताया कि युवाओं के लिए बेहतर समझ का होना बहुत ज़रूरी है। हम देख सकते हैं कि सरकारी नौकरियां लंबे समय तक रहती हैं मगर इससे इतर भारत की अर्थव्यवस्था में युवाओं को स्टार्टअप की दुनिया के लिए भी सोचना चाहिए और इसके विकास के लिए नए नए तरीकों की खोज करनी चाहिए।

सैरी चहल, संस्थापक और सीईओ, SHEROES

सैरी चहल, संस्थापक और सीईओ, SHEROES

सैरी चहल, SHEROES की सीईओ और संस्थापक हैं। सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट की दुनिया में वो एक महत्वपूर्ण चेहरा हैं। सत्र की पैनलिस्ट के तौर पर सैरी ने इस विषय पर खुल कर बात की। एक सफल महिला के रूप में सीईओ के पद पर नियुक्त सैरी एक महिला उद्यमी के रूप में प्रख्यात हैं। उन्होंने महिलाओं के लिए भी कई विचारों को साझा किया। उन्होंने अपना एक अलग नज़रिया पेश किया।

उदाहरण के तौर पर उन्होंने बताया कि इंटरनेट पर सक्रिय रहने वाले लोगों में से 80 प्रतिशत तो पुरुष ही हैं। भारत में तेज़ी से बढ़ता हुआ डिजिटलीकरण और इंटनरेट का उपयोग भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारक है, जिसमें मनुष्य की सफलता भी शामिल है।

उन्होंने कहा कि भारत जैसे पारंपरिक रूप से पितृसत्तात्मक समाज में परिवारों में महिलाओं को आमतौर पर फोन और इंटरनेट तक पहुंचने में खासी मेहनत करनी पड़ती है। इस वजह से आज भी देश में स्त्री-पुरुष साक्षरता दर अभी भी एक समान नहीं है।

इसी विषय को आगे बढाते हुए सैरी ने कहा कि भारतीय बाज़ार में महिला श्रमिकों को एकीकृत करने की ज़रूरत है। इससे देश की अर्थव्यवस्था में सुधार होने की आशंका बनी रहती है।

इसी तरह एक समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता पर विस्तार से बताते हुए उन्होंने बताया कि LGBTQIA समुदायों के व्यक्तियों की भागीदारी भी भारतीय अर्थव्यवस्था में कम है। उन्होंने बताया कि कई MNC ऐसे हैं, जो इस बात पर अपनी राय रखते हैं मगर भारतीय समाज के इतिहास ने कई छोटे व्यवसायों के लिए समावेशी वातावरण के निर्माण को और भी कठिन बना दिया है।

आखिरी में सैरी ने बताया कि भारत को उपभोक्ता आधार पर आदर्श रूप से उद्यमी और स्टार्टअप करने के लिए नए अवसर खोजने चाहिए और उनका विकास करना चाहिए।

श्रद्धा जोशी, प्रबंध निदेशक, महिला आर्थिक विकास महामंडल (MAVIM)

श्रद्धा जोशी, प्रबंध निदेशक, महिला आर्थिक विकास महामंडल (MAVIM)

MAVIM की एमडी श्रद्धा जोशी की उपस्थिति ने चर्चा को और अधिक प्रभावशाली बना दिया। उन्होंने उन प्रभावों को भी इंगित किया जिसके फलस्वरूप महिलाओं की भागीदारी प्रद्योगिकी के क्षेत्र में बहुत कम रही। उन्होंने क्रेडिट और बुनियादी ढांचे जैसे कारकों तक पहुंचने के नज़रिए को भी दर्शकों तक पहुंचाने में मदद की।

श्रद्धा ने बताया कि किस तरह से उद्यमिता के सभी रूप इन तीन कारकों की उपलब्धता पर निर्भर थे और दुर्भाग्यवश ग्रामीण महिलाओं को लिए यह और भी चुनौतीपूर्ण कारक है।

उद्यमिता में भिन्नता की आवश्यकता के बारे में बात करते समय उन्होंने उल्लेख किया कि कितने सिलाई केंद्रों ने पीपीई किट और मास्क बनाने की अपनी क्षमता में महत्वूपर्ण परिवर्तन का निर्माण किया है। इस प्रकार पूरी ताकत के साथ COVID-19 के विकराल रूप के बाद भी वे बाज़ार में बने रहे।

रितुपर्णा चक्रवर्ती, सह-संस्थापक और ईवीपी, TeamLease

रितुपर्णा चक्रवर्ती, सह-संस्थापक और ईवीपी, TeamLease

अंत में कौशल और रोज़गार के पहलुओं पर अधिक प्रकाश डालने के लिए TeamLease की सह-संस्थापक रितुपर्णा चक्रवर्ती ने कई कारकों के बारे में बात की। वर्तमान स्किलिंग इको सिस्टम पर महामारी के प्रभाव की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि डिजिटलीकरण की दिशा में कैसे तेज़ी से बदलाव हुए हैं।

रितुपर्णा ने सरकारों को स्थानीय कौशल प्रशिक्षण और शिक्षा में निवेश करने की आवश्यकता पर भी बल दिया।  भारत जैसे बड़े पैमाने के देश में औद्योगिक और विनिर्माण क्षेत्रों को पुनर्जीवित करने के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने भारत की औपचारिकता पर अपने तर्क को और मजबूत किया।

उदाहरण के लिए उन्होंने बताया कि COVID-19 की बदौलत घर ​​से काम करने के प्रावधान की व्यापक स्वीकार्यता ने बाज़ार को कम-से-कम महिला श्रमिकों को अधिक स्वीकार्यता प्रदान की है।

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