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कोरोना के दौर में कैसे फैलाया जा रहा है मिसइनफॉर्मेशन?

कोविड-19 महामारी के बढ़ते मामलों के साथ ही यह भी साफ हुआ है कि फेक न्यूज़ और अफवाह कोविड की तरह ही बड़े पैमाने पर जारी है। यूं तो फेक न्यूज़ और अफवाहों का होना भारतीय कल्चर में कुछ नया नहीं है, जो कि हमारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से जब-तब मज़बूती से उभरकर सामने आता रहता है।

इनमें हमारे वाट्सएप ग्रुप भी शामिल हैं और ये खबरें सिर्फ नुकसान पहुंचाने वाली खबरें नहीं है, बल्कि कोविड-19 के इलाज के तौर पर प्रचारित की जाने वाली ऐसी कितनी ही खबरें भी हैं जिन्होंने इस मुश्किल समय में बगैर जांच-परख के सूचनाओं को तोड़-मरोड़कर डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी, फ्रंट लाइन वर्कर्स के खिलाफ ऐसे वीडियो प्रचारित किए जिसने भारत में फेक न्यूज़ के सभी चेहरों को सामने ला दिया।

Isse aise kahiye Youth Ki Awaaz in partnership with the United Nations in India as a part of UN75 and the Verified initiative to combat COVID-19 misinformation hosted a Facebook live on “Misinformation and the Pandemic Grapevine.”

Youth Ki Awaaz ने यूनाइटेड नेशन्स के साथ साझेदारी में UN-75 के तहत कोविड-19 से संबंधित फेक न्यूज़ पर बात करते हुए “Misinformation and the Pandemic Grapevine” नामक लाइव सेशन संचालित किया।

मतलब गलत खबर और महामारी का मेल इस फेसबुक लाइव का उद्देश्य सही खबरों का महत्व समझाना था कि एक सही जानकारी जान बचाने के साथ-साथ एक गलत खबर को भी खत्म कर देती है और ये सारी चर्चा यहां पढ़ी जा सकती है।

जसकीरत सिंह बावा- सीनियर एडिटर, न्यूज़, फैक्ट-चेक एंड ऑडियंस ऐंगेजमेंट, द क्विंट

जसकीरत अपने फैक्ट चेक अनुभव पर चर्चा करते हुए कहते हैं कि “फेक न्यूज़” एक तरह से ज़्यादा सत्यापित की गई खबर होती है। वे वाट्सएप का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जब कोई खबर वाट्सएप मैसेज/टैक्स्ट और किसी अन्य सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से फैलाई जाती है तब लोगों तक उसको फैलाव आसान हो जाता है।

दूसरी और फैक्ट चेकिंग या कहें खबर की सच्चाई में वेब पोर्टल, लिंक (जिस माध्यम से खबर आई है) आदि की विश्वसनीयता का भी अपना महत्व होता है। जसकीरत के अनुसार, खबर में ‘पूर्वाग्रह’ का भी अपना महत्व होता है जिसके आधार पर लोग खबर को स्वीकारते या नकारते हैं जिससे स्थिति और मुश्किल हो जाती है।

खबरें दो आयामों में बंट चुकी हैं और दुनिया “पोस्ट फैक्ट” सोसायटी में बदल चुकी है, जहां खबर पहले प्रसारित कर दी जाती है बाद में उसे सत्यापित किया जाता है। जसकीरत आगे जोड़ते हुए कहते हैं, “झूठ पूरी दुनिया में घूम आता है लेकिन सच वहीं का वहीं रहता है।”

फेक न्यूज़ पर अपना अनुभव बांटते हुए फेक न्यूज़ के नुकसान पर ज़ोर देते हुए वे कहते हैं कि इसे और ज़्यादा पारदर्शी बनाया जाना चाहिए। वे आगे कहते हैं कि जब लोग आसानी से गलत जानकारियां बांटने लगते हैं, तब ऐसी खबरों का परिणाम मौत, लिंचिंग जैसी घटनाएं होता है।

इसके साथ ही जसकीरत गलत सूचनाओं के लिए सोशल मीडिया कम्पनियों को भी ज़िम्मेदार बताते हुए कहते हैं कि ये कम्पनियां गलत खबरों को जन्म देने वाली हैं। ऐसी खबरों पर नियंत्रण के लिए ओर साधन होना चाहिए।

सुरभि मलिक, प्रोग्राम डायरेक्टर एंड कंट्री लीड, इंडिया इंटरन्यूज़

सुरभि इंटरनेशनल NGO का हिस्सा हैं जो कि फेक न्यूज़ के खिलाफ लड़ाई और उपभोक्ता के खिलाफ फेक न्यूज़ के प्रसार को रोकने के लिए कार्य कर रही हैं। वे जोड़ती हैं कि “इंफॉर्मेशन हाइज़ीन” को रोकने के लिए सोशल मीडिया फेक खबरों को और भी बिगाड़ देता है।

इसके अलावा वे “मीडिया लिटरेसी” की कमी, जनता में बिगड़ती स्थितियों, अच्छी खबरों के उपभोक्ताओं की कमी, सोशल मीडिया की खबरों पर बढ़ता भरोसा और फैक्ट चेकिंग के साधनों की कमी ये सब फेक न्यूज़ पर बढ़ते भरोसे की खास वजह हैं।

सुरभि का फेक न्यूज़ विश्लेषण कहता है कि ‘फेक न्यूज़’ से बचने के लिए हमें सहयोग और शांति दोनों से काम लेना होगा। कोई भी परिवार फेक न्यूज़ से लड़ने के लिए इस कदम को उठा सकता है। वे अपना तर्क देते हुए कहती हैं हमारे युवाओं को यह समझने की ज़रूरत है कि हमारे बुजुर्गों ने पढ़ने के लिए इंटरनेट एजुकेशन का सहारा कभी नहीं लिया।

वे भावी घटनाओं के परिदृश्य पर ज़ोर देते हुए कहती हैं  दुनिया को बेहतर ढंग से खबरों से जोड़ने के लिए अपने विश्वास पर चलते हुए शांतिपूर्ण ढंग से किसी भी खबर को शेयर करने से पहले उसको फैक्ट चैक करना बेहद ज़रूरी है।

कामना छिब्बर, क्लीनिकल सायकोलॉजिस्ट एंड हेड, मेंटल हेल्थ डिपार्टमेंट, मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंसेज़ (फोर्टीज़ हेल्थकेयर) 

जसकीरत के फैक्ट चेक अनुभव को आगे बढ़ाते हुए कामना उन लिंक और एल्गोरिदम्स पर बात करती हैं जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर काम कर रही हैं और जिनके डोमेन किस तरह हमारे विचारों (व्यू पॉइन्ट) से मेल खा रहे हैं और किस तरह हम खुद को दूसरों से विचारधारा में अलग कर रहे हैं।

इस तरह की खबरें हमारी बुद्धि को स्थिर कर रही हैं, साथ ही भय और विरोधी विचारों को बढ़ा रही हैं। हमारा एजुकेशन सिस्टम  हमें विपरीत परिस्थितियों में सोचने, दूसरों पर भरोसा करना सिखाने में असफ़ल रहा है।

इसका ही नतीजा है जिसकी वजह से ऑनलाइन स्पेस हमें हस्तक्षेप करने देते हैं और हम लगातार खबरों पर अपनी नज़र बनाए रखते हैं लेकिन गम्भीरता से उनपर प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते।

साथ ही वे कहती हैं कि फैक्ट को चेक करने में दिलचस्पी कम होने की वजह से भी लोग फैक्ट चैक करने को कोई खास जद्दोज़हद नहीं करते हैं और झूठी खबरों के प्रसार में अपना योगदान देते चले जाते हैं।

वे कुछ सवालों को सामने रखते हुए कहती हैं कि मेरा मानना है किसी भी खबर को शेयर करने से पहले इन सवालों को खुद से पूछना ज़रूरी है। पहला सोर्स की जांच, खबर और उस खबर के असर का आंकलन कि खबर भेजने लायक है की नहीं? उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा जबसे सोशल मीडिया एक अनिवार्य अंग बना है तभी से हम सबकी व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी है की किसी भी खबर के प्रसार से पहले उसे जांच लें।

डॉ. स्पर्श कुमार, एमबीबीएस, डॉक्टर पाटिल मेडिकल कॉलेज एंड यूट्यूबर

डॉक्टर स्पर्श चर्चा को वापस शुरुआत में ले जाते हुए अपने विमर्श में गलत खबरों का डॉक्टर और फ्रंट लाइन वर्कर्स पर पड़ रहे प्रभाव पर बात करते हैं खासकर इस महामारी के दौर में! अपने अनुभव को बांटते हुए कहते हैं फ़ैक न्यूज़ का ट्रेंड मेडिकल में लम्बे समय से उभर कर सामने आ रहा है। 

स्पर्श के अनुसार, जब किसी एक की नहीं पूरे समुदाय की जान दांव पर हो तब अंतर साफ उभरकर सामने आता है। उदाहारण के तौर पर प्रवासी मज़दूरों को आवाजाही के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट ज़रूरी था यह जानकारी? लेकिन फेक न्यूज़ एक प्रक्रिया, एक हिस्सा बन गया है। ठीक उसी तरह गलत जानकारी ने डॉक्टर्स और हेल्थ केयर वर्कर्स को भी भ्रमित किया जिसके चलते कई डॉक्टर और हेल्थ केयर वर्कर से अपने अपार्टमेंट खाली करने को कहा गया।

एक यूट्यूबर के तौर पर चर्चा करते हुए स्पर्श बताते हैं कि उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा वो वीडियो रहा जिसे ‘मिसइंफॉर्मेशन’ पर दी सही जानकारी के विषय कोशेयर करने के बाद वीडियो को सबसे ज़्यादा पसन्द किया गया।

साथ ही उन्होंने कहा कि कुछ मीडिया मित्रों की सहायता से एक डॉक्टर होने नाते अपनी विशेषज्ञता से लोगों की गलतफहमियों को दूर किया।  डॉक्टर से यूट्बर बने डॉ. स्पर्श कहते हैं कि हमें याद रखना चाहिए कि उनके अपने मौलिक अधिकार उससे जुड़े हैं।

ज़फ्रीन चौधरी, चीफ ऑफ कम्युनिकेशन एडवोकेसी और पार्टनरशिप, यूनिसेफ इंडिया

ज़फ्रीन का कहना है कि हमें सबको एक सूत्र में बांधकर रखना होगा। ज़फ्रीन अपने सार्वजनिक संस्थानों के साथ काम करने के अनुभव के आधार पर इस महामारी में फेक न्यूज़ को उपाय आधारित बताती हैं मतलब जिनको सुलझाया जा सकता है। साथ ही उन्होंने सार्वजनिक सामंजस्य और खबरों के चुनाव के महत्व पर ज़ोर देते हुए कहा कि फेक न्यूज़ सद्भाव को प्रभावित करती है।

महामारी से लड़ने के दो रास्ते हैं ‘विज्ञान और एकजुटता’ इसके साथ ही गलत खबरों से लड़ने के लिए यूनिसेफ, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण मंत्रालय साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

ज़फ्रीन कहती हैं कि यूनिसेफ, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण मंत्रालय और 13 UN एजेंसी भी इसमें हस्तक्षेप कर रही हैं। फेक न्यूज़ के महत्वपूर्ण स्तम्भ हैं क्षमता निर्माण, सामुदायिक व्यस्तता और मीडिया इंगेजमेंट, साथ ही किस तरह कई रूपों में ये खबरें लोगों तक पहुंचती हैं, जिनमें कोविड-19 से प्रभावित लोग, प्रवासी मज़दूर जो कि महामारी में चलने को मज़बूर थे। साथ ही फ्रंट लाइन वर्कर डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मचारी शामिल हैं।

इसलिए कैम्पेन शुरू किया गया “टेक केयर बिफोर यू शेयर” मतलब कुछ भी भेजने से पहले उसकी उसे जांचें ज़रूर। यह कैम्पेन युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए शुरू किया गया कि वे कोई भी खबर भेजने से पहले उसे फैक्ट चैक करें साथ ही मुख्यधारा से लेकर प्रभावशाली क्षेत्रीय व्यक्तियों तक और हर आखिरी व्यक्ति तक सुदृढ़ विचार के रूप में पहुंचाएं।

एक घण्टे के विचार-विमर्श में हमने कई तरह के मुद्दों पर चर्चा की जैसे गलत खबर का कारण, फेक न्यूज़ पर समर्थन, मतलब इन फेक न्यूज़ पर नकेल कसने और इनमें हस्तक्षेप हमारे समाज द्वारा किया जा सकता है ।

साथ ही किसी खबर को भेजने से पहले किस तरह की प्रतिक्रिया अपनाई जाना चाहिए जिससे कोई पीछे ना छूटे और एक ऐसे समाज़ को स्वीकारा जा सके जो एक-दूसरे के सहयोग के साथ सीखे और आगे बढ़ सके।

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