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“टीआरपी के चक्कर में भारत के भविष्य के साथ खेलता मीडिया”

आमतौर पर हमारे और आपके लिए 24 घंटा काफी होता है लेकिन मीडिया के लिए अब 24 घंटा भी कम पड़ने लगा है। टीआरपी की होर ने जन-सरोकर की खबरों को गायब कर दिया है और टीवी बहस ने मीडिया शोध को समाप्त कर दिया है।

जिस मीडिया या न्यूज़ चैनलों को आप देखते हैं, क्या आपको उन मीडिया या न्यूज़ चैनलों का उद्देश्य का पता है? अगर नहीं जानते तो, जानिए क्या होता है मीडिया का तीन उद्देश्य।

अब आप ही तय कीजिए और पता कीजिए कि आप जिस मीडिया या न्यूज़ चैनलों को देखते हैं, वे इन तीनों उद्देश्यों पर खड़ा उतरता है या नहीं?

टीआरपी की नंगा नाच ने मीडिया को बर्बाद और तबाह किया है। सुशांत सिंह राजपूत के नाम लगातार घंटों बहस को देखिए फिर उस बहस में कितना शोध हुआ है, आप समझने की कोशिश कीजिए।

दुनिया के सबसे बड़े लोकत्रांतिक देश की मीडिया का हाल आज दुनिया में सबसे बुरा और घटिया हो चुका है। विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2020 के अनुसार, भारतीय मीडिया का स्थान 142वां हैं। पिछले कुछ सालों में भारतीय मीडिया में शोध की संस्कृति समाप्त हो चुकी है। शोध ही है, जो खबरों को विश्वसनीय बनाता है।

आजकल मीडिया जितना फोकस कंगना पर कर रही है, अगर किसान पर किया होता तो किसान ऐसे लाचार नज़र नहीं आते। बीते दिनों नरेंद्र मोदी सरकार ने तीन कृषि विधेयक पास तो दोनों सदनों से करवा लिया लेकिन उन्हीं की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल ने उनका साथ नहीं दिया।

सिर्फ साथ ही नहीं दिया, बल्कि केंद्र में मंत्री पद से हरसिमरत कौर बादल ने इस्तीफा दे दिया। हालांकि हरसिमरत कौर के इस्तीफा को राजनीतिक विशेषज्ञों ने पॉलिटिकल स्टंट बताया है, क्योंकि 2022 में पंजाब में चुनाव होने वाले हैं, जिसको देखते हुए अकाली दल ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहती है जिससे काँग्रेस को किसानों का समर्थन मिले और पंजाब में चुनाव किसानों को दरकिनार करके नहीं लड़ा जा सकता है।

भारतीय मीडिया पिछले कुछ दिनों से निरंतर सुशांत सिंह राजपूत, कंगना, बॉलीवुड और ड्रग्स का सिलेबस चला रहा है। क्या इस सिलेबस के चक्कर में हमसे कहीं इकोनॉमी, रोज़गार और किसानों का चैप्टर छुपाया तो नहीं जा रहा है?

हर रोज़ हमलोग शाम की डिबेट में सुशांत सिंह राजपूत पर चर्चा तो कर रहे हैं लेकिन क्या इन सारी चर्चाओं से सुशांत को न्याय मिल गया? आप सारे चैनलों की बहस देखिए फिर समझने की कोशिश कीजिए कि मीडिया आपको आपकी काम की खबर आपको देखा रहा है कि नहीं?

या आप भी उसके टीआरपी में शरीक हो चुके हैं। सच तो यह है कि मीडिया हमसे जन सरोकर की बातें छुपा रहा रहा है। मीडिया हमें अंधकार की ओर ले जा रहा है। मीडिया आपकी रोटी और आपके बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है फिर भी मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया के लिए विनियमन की ज़रूरत नहीं है। ज़रूरत है तो डिजिटल मीडिया को नियंत्रित करने की, जो ज़हरीली नफरत और हिंसा फैला रहा है और लोगों की प्रतिष्ठा धूमिल कर रहा है।

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