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रिया चक्रवर्ती के साथ मीडिया का यह व्यवहार क्या कोई नई बात है?

अपने हक का इंसाफ मांगने जब कभी भी कोई महिला अदालत के दहलीज पर किसी भी तरीके से कटघरे में पहुंची है। मीडिया का व्यवहार पितृसत्तात्मक ही रहा है जिसका एक अपना इतिहास है। जैसा आज की मौजूदा मीडिया रिया चक्रवती से कर रही है ऐसा ही व्यवहार वह रूपन देओल बजाज केस में भी कर रहा था।

मीडिया की पुरानी आदत है ‘मीडिया ट्रायल’

मीडिया का इसी तरह का व्यवहार जेसिका लाल मर्डर केस में भी था। यही नहीं देश के आज़ादी के पहले जब पहली बार जब रख्माबाई असाधारण विद्रोह करते हुए उस विवाह को मानने से इंकार कर दिया था जिसने उसे मात्र ग्यारह साल के उम्र में झोक दिया था।

मीडिया का एक धड़ा गुनहगारों को सजा दिलाने के लिए सच की लड़ाई में महिलाओं के पक्ष में भी खड़ा रहा है। मसलन जेसिका लाल मर्डर केस में मीडिया का एक धड़ा आखिरी तक जेसिका के बहन के सबरीना के साथ खड़ा रहा लेकिन सवाल जेसिका पर भी खड़े किए गए थे कि वह इतनी रात में किसी रेस्तरा में शराब क्यों सर्व क्या कर रही थी?

रूपन देओल बजाज केस के समय टीवी मीडिया इतना अधिक प्रभावी नहीं था लेकिन अखबारों और पत्रिकाओं में यह सवाल खड़े किए जा रहे थे कि वह उस पार्टी में मौजूद ही क्यों थी? रख्माबाई के मामले में तो उस समय जहां एक अखबार “द हिंदू लेडी” के नाम से कॉलम चला रहा था, कुछ अखबार रख्माबाई के अधिकार के मांग को ही हिंदू सभ्यता संस्कृति के विरुद्ध मान रहे थे।

बहुत सारे लोगों का यह मानना है कि हमारे देश में पत्रकारिता का चरित्र औपनिवेशिक देशकाल से अबतक के सफर में काफी बदला है। बदलाव के नाम पर इतना ज़रूर हुआ है कि आज सोशल मीडिया के साथ मुख्यधारा मीडिया भी तथ्यपरक कम और उन्मादी अधिक हो गया है।

टीआरपी और मुनाफे की होड़ में मुख्यधारा की मीडिया का यह रवैय्या कितना ठीक?

सोशल मीडिया तो अपनी ज़िम्मेदारी का ठिकरा सोशल मीडिया पर ही डालकर निकल लेगा लेकिन लोकतंत्र का चौथा प्रहरी अपनी ज़िम्मेदारी का ठीकरा किसपर फोड़ेगा? हकीकत यह है मुख्यधारा का मीडिया आज के समय में ज़िम्मेदारी नहीं लेता है, वह बस अपने व्यवसाय के लिए टीआरपी और मुनाफा कमाने की होड़ में है।

यह करते हुए वह एक तीर से कई शिकार कर रहा है और इस शिकार से घायल हमारा समाज सबसे अधिक हो रहा है। उसे ना तो एक महिला को डायन कहने से परहेज है ना ही कुलटा। उसे यहां तक की उसपर अश्लील गाने बनाने वालों से भी कोई परहेज नहीं है, वह इन अश्लील गानों पर बस चटकारे ले रहा है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

लेकिन जब आप मीडिया के चरित्र के कसौटी में महिलाओं के अस्मिता के सवालों को रखकर देखते हैं, तो उसके व्यवहार में पितॄसत्तात्मक दोहरापन साफ दिखता है। महिलाओं के समस्याओं के मूल्यांकन में तो उसके चरित्र में कोई बदलाव नहीं आया है। मीडिया ट्रायल के घेरे में जब कोई महिला आती है तब उसके चरित्र के दोहरेपन के छिलके एक-एक करके उतरने लगते हैं।

रिया चक्रवर्ती अगर गुनहगार साबित नहीं हुई तो मीडिया क्या करेगा?

अगर रिया चक्रवर्ती के मामले में ही रिया अगर गुनहगार साबित नहीं होती है, तो क्या मीडिया उनका चरित्र-चित्रण करके जो टीआरपी और मुनाफा कमाया है, उनसे माफी मांगेगा। एक नहीं हज़ार मामलों में हमने देखा है मीडिया ने यह नहीं किया है।

कई लोगों का मानना रहा है कि मीडिया में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से इसमें बदलाव देखने को मिलेगा। यह बात सही है कि मुख्यधारा मीडिया में महिलाओं की भागीदारी अधिक नहीं है वर्गीय, जातीय और धार्मिक आधार पर भागीदारी की खाई इतनी बड़ी है कि महिलाओं के समस्या का एकरूपीय मूल्यांकन देखने को मिलता है।

जबकि कई शोध यह साबित कर चुके हैं कि भारतीय समाज में महिलाओं के सवाल वर्गीय, धार्मिक, जातीय और आर्थिक आधार पर अलग-अलग तरह हैं, इसमें बहुत अधिक विविधता और विषमता मौजूद है।

रिया चक्रवर्ती गुनहगार हो और उनपर लग रहे इल्जाम और कांन्सपिरेसी थ्योरीज़ सही हों। उस सूरत में उन्हें सज़ा ज़रूर मिलनी चाहिए। यह फैसला देना कानून का काम है। तमाम जांच एजेंसी अपना काम कर रही है और न्यायालय अपना फैसला जांच एजेन्सी के तथ्यों की पड़ताल करके ही देगा लेकिन जिस तरह के चैट स्क्रीनशाट्स, सोशल मीडिया हेट्स सामने आ रहे हैं उससे समाज अपना छिछोरा चरित्र ही दिख रहा है।

कई लोगों का कहना है जो चैट स्क्रीनशाट्स और सोशल मीडिया कमेंट्स में आ रहे है कि सुशांत के बहनों को क्या न्याय नहीं मिलना चाहिए। कितने भोले हैं आप इतनी सारी एजेंन्सी कर क्या रही हैं? क्या आपको इन एजेंन्सीयों पर भरोसा नहीं है कि वो उनकी बहनों को इंसाफ दिला सकेंगे। एजेंसियां अपना काम ईमानदारी से करें और कानून न्याय करें।

हर हफ्ते एक नया एंगल खड़ा करके सोशल मीडिया और मुख्यधारा मीडिया का एक बड़ा वर्ग जो कर रहा है, वह रिया चक्रवर्ती ही नहीं, समाज के साथ भी किसी अपराध से कम नहीं है। इसके कारण मीडिया उन विषयों से अपनी दूरी बना रहा है जो एक बड़े समाज के हितों से जुड़ा हुआ है।

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