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क्या देश की मौजूदा सरकार ब्रिटिश राज के दमनकारी इतिहास को दोहरा रही है?

PM Narendra Modi

आज परिस्थिति ऐसी बन गई है कि देश की सरकार और देश में रहने वाले लोग दो अलग-अलग ताकतों के रूप में प्रतीत हो रहे हैं। हालांकि होना तो यह चाहिए कि देश की सरकार कल्याणकारी नीतियों से देश में रहने वाले लोगों का कल्याण करते रहें, मगर मौजूदा सरकार इसके विपरीत ब्रिटिश राज जैसा व्यवहार देशवासियों से कर रही है।

सरकार को आम जनता की कितनी है परवाह?

देश में रहने वाले लोगों का मौजूदा सरकार को तनिक भी परवाह नहीं है, अगर कुछ परवाह है तो बस देश के संसाधनों को लूट कर अंग्रेज़ी शासकों के नुमाइंदों यानी चंद पूंजीपतियों के हवाले करने में लगी है, इस काम को अंजाम देने में सरकार कोई भी कसर नहीं छोड़ रही है।

सड़क से लेकर संसद तक सरकार के विरुद्ध आवाजें गूंज रही हैं। किसानों में भय का माहौल है किसान अपने अस्तित्व को लेकर व्याकुल है, मगर सरकार अपनी दमनकारी नीतियों से बाज नहीं आ रही है।

सड़क पर छात्रों को दौड़ा-दौड़ा कर मारना हो, बुद्धिजीवियों को जेल के काल कोठरी में बंद करना हो, सरकार के विरुद्ध बोलने वाले को देशद्रोह का काला कानून लगाकर देशद्रोही घोषित करना हो या फिर सीमा पर देश की रक्षा कर रहे जवान और खेत खलिहान में अपने खून पसीने से हमारे लिए अन्न ऊपजाने वाले किसानो को छलना और धोखा देना हो।

प्रतीकात्मक तस्वीर

सड़क से लेकर संसद तक मौजूदा सरकार अपने विरुद्ध बोलने वालों को देश के विरुद्ध बोलने वाला साबित करने में तनिक भी देर नहीं करती है। हालांकि सरकार के विरुद्ध बोलना, आवाज बुलंद करना और सरकार की नीतियों की आलोचना करना एक जनतांत्रिक देश को मजबूत ही नहीं करता है, बल्कि लोकतंत्र की खूबसूरती को भी बढ़ाता है।

किसानों के प्रदर्शन को अनदेखा क्यों कर रही है सरकार?

लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाते हुए पूरे देश में किसानों की आवाज़ को अनदेखा करके संसद में किसानों के विरुद्ध तीनों बिलों को पास करते हुए अपने आपको अब तक की सबसे अलोकतांत्रिक सरकार घोषित कर चुकी है।

इन तीनों बिलों के विरुद्ध सिर्फ विपक्ष ही नहीं, बल्कि सरकार की सहयोगी पार्टियां भी हैं। यहां तक कि उन्हीं के सरकार की एक केंद्रीय मंत्री ने इस्तीफा तक दे दिया।

किसानों के हित को अनदेखा करते हुए तीनों बिल को पास कराने का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि चंद पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाया जाए, न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली को कमज़ोर करके पूंजीपतियों के हाथ में कृषि की बागडोर दी जाए जिसकी इंतज़ार पूंजीपतियों को बहुत पहले से था।

तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

एक तरफ सरकार दावा कर रही है कि इन तीनों बिलों के पास होने से किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी हो जाएगी और दूसरी ओर किसानों द्वारा यह पूछने पर कि कैसे दोगुनी होगी किसानों पर लाठियां बरसाई जा रही हैं।

अब सवाल यह उठता है कि अगर यह बिल किसानों के लिए इतना ही लाभकारी है, तो किसानों से चर्चा करने से गुरेज क्यों? या फिर कोई भी किसान संगठन इस बिल के पक्ष में क्यों नहीं है? सिर्फ आर. एस. एस. समर्थक संगठनों को छोड़कर, सच्चाई तो यह है कि इस बिल के पास होने से किसानों की आमदनी भी नहीं बचेगी दोगुनी होने की तो बात दूर की है।

इसमें कोई शक नहीं कि मोदी सरकार के कथनी और करनी में हमेशा भेद रहा है, जैसे 15 लाख का वादा, हर वर्ष दो करोड़ नौकरियां, अच्छे दिन के वादे, काला धन को वापस लाना इत्यादि यह सारे चुनावी जुमले मात्र है और कुछ भी नहीं। वास्तविकता से इन वादों का दूर-दूर तक नाता रिश्ता नहीं है, फिर कैसे किसान यह विश्वास कर ले कि इन तीनों बिल के पास हो जाने से उनकी आमदनी दुगनी हो जाएगी।

हाल ही में देश के युवाओं ने दो करोड़ नौकरी के झूठे वादे के विरूद्ध प्रधानमंत्री के जन्मदिवस को बेरोजगार दिवस के रूप में मनाया। देश के युवा जिनको मोदी सरकार से बहुत ही उम्मीदें थीं, अब वह भी निराश होकर अन्य विकल्प की तलाश में हैं।

अन्नदाताओं के साथ क्यों हो रही है धोखेबाज़ी?

किसान तो मोदी सरकार द्वारा बहुत पहले से ही प्रताड़ित होता रहा है। कहीं किसानों को उसके ज़मीन से बेदखल करके पूंजीपतियों के हवाले कर दिया गया, तो कहीं सिंचाई के प्रयोग में आने वाले नदियों पर बड़े-बड़े बांध बनाकर किसानों को परेशान किया गया, तो कहीं सुखार और बांध की परिस्थिति में किसानों को तिल-तिल बिलखता हुआ छोड़ दिया गया।

फिर भी किसानों ने इस धरती को ना सिर्फ हरा-भरा रखा हुआ है, बल्कि हमारे लिए रोटी का बंदोबस्त भी करते हैं। क्षण भर के लिए आप यह सोच लें, अगर देश में किसान खेती करना छोड़ दें तो कैसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाएगी? चारों ओर कोलाहल मच जाएगा, हम और आप भूखे मर जाएंगे, बड़े-बड़े पांच सितारा होटलों में चमकती हुई प्लेटें खाली हो जाएंगी। संसद भवन में सस्ते दामों में नाश्ता और भोजन का प्रबंध भी रुक जाएगा और न जाने क्या-क्या हो जाएगा?

प्रतीकात्मक तस्वीर, Credit: Flickr

जिस किसान ने देश को अन्न देने की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर उठा रखी है, उसके साथ ही मोदी सरकार हमेशा से छल करती रही है। हम सबको अन्नदाता “किसान” के साथ खड़ा होना चाहिए और किसान विरोधी सरकार को सबक सिखाना चाहिए। अगर देश में किसान सुखी नहीं, तो हम सब कैसे सुखी रह सकते हैं।

हम सब ने किसानों का नमक खाया है और हमारे शास्त्रों में धोखा करने वालों को बहुत ही बुरी निगाह से देखा जाता है और ना ही हमारी संस्कृति धोखेबाज़ी को अच्छा मानती है। किसानों का नमक खाकर हमारे देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी अपने कामयाबी के शिखर पर पहुंचकर उनके नमक को भूल गए किसान कभी भी इन्हें माफ नहीं करेगा।

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