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झारखंड: बच्चों के पास नहीं था स्मार्टफोन तो टीचर ने ढूंढ निकाला यह नायाब तरीका

लॉकडाउन की भयावह स्थिति से गुज़रते हुए पिछले छह महीने से विश्व के तकरीबन सभी छोटे-बड़े देश मैराथन बंदी का अभिशाप झेलने पर मजबूर हैं। इस दौरान पूरी दुनिया में जन-जीवन पूरी तरह ठहर सा गया है।

इस वैश्विक संकट में ना तो स्कूल-काॅलेजों में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को काॅपी-किताब के साथ सड़कों पर देखा जा रहा है और ना ही सरकारी-गैर सरकारी शैक्षणिक संस्थाओं, संगठनों सहित सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, आध्यात्मिक व राजनीतिक संस्थाओं की गतिविधियां नज़र आ रही हैं।

135 करोड़ की आबादी वाला भारत भी रोज़ाना कोरोना संक्रमण के उसी खौफ से गुज़र रहा है, जिससे सारी दुनिया भयभीत है। बावजूद इसके कहीं-कहीं कुछ अच्छी खबरें शून्यता में संवेदनशीलता का संचार कर डालती हैं, जिससे जीवन जीने की उम्मीदों में चार चांद लग जाता है।

कौन हैं श्याम किशारे सिंह गाँधी?

हम बात कर रहे हैं झारखंड के संथाल आदिवासी बहुल क्षेत्र दुमका ज़िला स्थित ग्राम बनकाठी के एक ऐसे स्कूल की, जहां शिक्षा का अलख जगाए रखने की जद्दोजहद आज भी जारी है।

लाॅकडाउन की स्थिति में इसके बेहतर परिणाम भी सामने आ रहे हैं, जो अन्य राज्यों के लिए एक माॅडल का रुप साबित हो सकता है। इस स्कूल में बच्चे सोशल डिस्टेंसिंग का पूरी तरह से पालन करते हुए पेड़ की छांव तले पढ़ाई कर रहे हैं।

शिक्षा के प्रति बच्चों का लगन देखकर गाँव के कई शिक्षित युवा भी इन्हें मुफ्त पढ़ाने के लिए आगे आए हैं। पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी बढ़ाने हुए इस अलख को जगाने का श्रेय स्कूल के प्रधानाध्यापक श्याम किशारे सिंह गाँधी को जाता है, जिन्होंने प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में एक नई तकनीक से पढ़ाई का बीड़ा उठा रखा है।

पढ़ाई के प्रति छोटे-छोटे बच्चों की उत्सुकता देखनी हो या फिर शिक्षा के प्रति शिक्षकों की प्रतिबद्धता और समर्पण, बिना किसी हिचकिचाहट के सीधे पहुंच सकते हैं आप जंगल, पहाड़ और हरे-भरे खेतों के बीच अवस्थित ग्राम बनकाठी।

ठंडी-ठंडी बहती हवाओं और झूमते-इठलाते पेड़ों के नीचे बैठकर पढ़ रहे बच्चों की मासूमियत बरबस ही आपका ध्यान अपनी ओर खींच लेंगी। कई अलग-अलग टोलों-स्कूल पाड़ा, काशीपाड़ा, बेरियापाड़ा, केन्दवाद, खजूरी, मोतीपुर और शेरघाटी के बीचोंबीच अवस्थित गाँव बनकाठी अब शिक्षा के क्षेत्र में एक नई पहचान के लिए तैयार है।

पूरे राज्य में बनकाठी मॉडल नज़ीर पेश कर रहा है

बच्चों के संग श्याम किशोर सिंह गाँधी। फोटो साभार- अमरेन्द्र सुमन।

ज़िला मुख्यालय दुमका से महज़ 12 से 15 कि.मी. की दूरी पर स्थित इस स्कूल के प्रधानाध्यापक श्याम किशोर सिंह गाँधी बच्चों के बीच खासे लोकप्रिय हैं। उनके आने से पहले बच्चे पढ़ाई के लिए इकठ्ठा हो जाते हैं। श्याम किशोर सिंह गाँधी के अनुसार, कक्षा 1 से 8 तक कुल 250 बच्चों को पेड़ों की छांव में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए शिक्षा दी जाती है।

उनके अनुसार, पेड़ो के नीचे पढ़ाने का यह नायाब तरीका अचानक उनके मन में आया। पहले तो एक प्रयोग के तौर पर उन्होंने इसे लिया मगर पढ़ाई के प्रति बच्चों का लगन देखकर इसे नियमित कर दिया। यह तकनीक अपने आप में बेजोड़ होने के साथ-साथ पूरे राज्य के लिए एक माॅडल एजुकेशन का रुप भी लेता जा रहा है।

इस कार्य में कम्यूनिटी शिक्षिका सरिता मुर्मू और मर्शिला टुडू सहित कई अन्य ऐसे सामुदायिक सोच रखने वाले युवा शिक्षकों का सहयोग मिल रहा है, जो पढ़-लिखकर बेराज़गार हैं और जिनमें गाँव की तस्वीर बदलने की चाहत भी है। बिना किसी आर्थिक स्वार्थ के इनका सहयोग विद्यालय के शैक्षणिक माहौल को सुदृढ़ कर रहा है। पेड़ों के नीचे श्रृंखलाबद्ध दूर- दूर तक बैठे बच्चों को माईक व  साउंड सिस्टम के ज़रिये पढ़ाया जाता है ताकि शिक्षकों की आवाज़ एक-एक बच्चों तक पहुंच सके।

इस नई शैली की शिक्षा को गाँव वालों का भी मिल रहा है समर्थन

श्याम किशोर सिंह गाँधी के अनुसार, बच्चों को पढ़ाना शिक्षकों का धर्म है। सेवा भाव से पढ़ाने की मुझमें शुरू से ही लगन रही है। इस महाबंदी की स्थिति में घर पर बैठकर रहना मेरे लिए असहज हो गया था। कुछ दिनों तक यूं ही घर पर पड़ा रहा मगर बच्चों को पढ़ाने की बैचेनी हमेशा मन को व्यथित करती रही।

ऐसी परिस्थिति में लीक से हटकर कुछ करने की जिज्ञासा बढ़ी। कुछ अलग करने की सोचता रहा, वह भी ऐसे आदिवासी गाँव में जहां पढ़ने की आदत छूटने के बाद बच्चे दुबारा स्कूल लौटना पसंद नहीं करते हैं। इस संबंध में अभिभावक नयन मुर्मू, संजय मुर्मू, राजेन्द्र राणा व ग्राम प्रधान समीर मरांडी का कहना है कि आर्थिक व सामाजिक पिछड़ेपन का दंश झेल रहे इस गाँव में खेती-बाड़ी व दिहाड़ी पर ही अधिकांश ग्रामीणों का गुजर-बसर चलता है।

लंबी छुट्टी के समय अभिभावक अपने बच्चों को जानवरों को चराने और मज़दूरी के लिए बाहर भेज देते हैं मगर जब से गाँव में पेड़ों के नीचे सामुदायिक शिक्षा की शुरुआत हुई है, इस अनूठी पढ़ाई से उन्हें भी आनंद प्राप्त हो रहा है और उनके बच्चे भी मन लगाकर पढ़ रहे हैं।

पढ़ने के प्रति बच्चों में अभूतपूर्व जिज्ञासाएं बढ़ी हैं। पढ़ाने की प्रक्रिया के तहत नियमों के पालन के संबंध में बताते हुए प्रधानाध्यापक श्याम किशोर सिंह गाँधी कहते हैं, “सोशल डिस्टेंसिंग के साथ पेड़ों के नीचे बैठे बच्चों के लिए सेनेटाइज़र व मास्क पहनना अनिवार्य है। एक-एक मीटर की दूरी पर सड़क के दोनों किनारे बच्चों को बैठाया जाता है। इस काम में ग्रामवासियों का भी पूरा समर्थन मुझे प्राप्त हो रहा है।”

दुमका की ज़िलाधिकारी राजेश्वरी बी ने विद्यालय के प्रधानाध्यपक की सराहना करते हुए उनके द्वारा उठाए गए इस कदम को प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में एक अभूतपूर्व कदम कहा।

वरिष्ठ अधिकारी मसूदी टुडू ने बच्चों के बीच जारी इस तरह की शिक्षा को बहु उद्देश्यीय कहा। श्री टुडू के अनुसार, सामाजिक दूरी के साथ-साथ पेड़ों के नीचे माईक व साउंड सिस्टम से बच्चों के बीच इस तरह की शिक्षा मील का पत्थर साबित हो सकता है। ऐसी शिक्षा बच्चों के मानसिक विकास को परिपक्व करता है। यह व्यवस्था एक माॅडल के रुप में अपनाने की योजना है।

हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध कवि दुष्यंत कुमार की पंक्ति “’सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए, मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।”

शिक्षा की सूरत बदलने के लिs उत्क्रमित मध्य विद्यालय, बनकाठी के प्राध्यापक श्याम किशोर गाँधी लिए उपरोक्त पंक्तियां बिल्कुल सटीक बैठती हैं। उनका यह अनूठा प्रयोग ग्रामीण भारत में शिक्षा की लौ को जलाए रखने में मील का पत्थर साबित होगा।


नोट: यह आलेख अमरेंद्र सुमन, दुमका, झारखंड ने चरखा फीचर के लिए लिखा है।

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