बिहार सरकार ने लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। जैसे- साइकिल योजना से लेकर बच्चियों को मिलने वाली प्रोत्साहन राशि तक। यहां तक कि महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार के कारण शराब बंदी जैसे फैसलों के ज़रिये सरकार ने समाज और हर तबके में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए हर प्रयास किए हैं, ताकि उनकी सक्रियता बढ़े। वे भी समाज के हर मोर्चे में शामिल हो सकें।
मौजूदा बिहार सरकार ने भी महिलाओं के जीवन को समावेशी विकास देने और लड़कियों के साथ-साथ महिलाओं के जीवन को नया अर्थ देने के लिए कई नई नीतियां भी बनाई हैं। जिसे सरकार की उपलब्धियों के तौर पर हम देख सकते हैं।
लड़कियां भी सरकार के फैसलों को देखते हुए सोचती हैं कि उन्हें अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जीने के लिए मिलेगी क्योंकि उन्हें अपने अधिकारों से दोस्ती होने लगती है, जिससे लड़कियां अंजान होती हैं।
लड़कियों के हौसलों पर समाज का ग्रहण
लड़कियां जब अपना आसमान बना रही होती हैं, तभी उनके सपनों को समाज का ग्रहण लग जाता है। हमारा समाज लड़कियों की तरक्की को पचा नहीं पाता है, क्योंकि वे जागरुक नहीं हैं।
लड़कियों को सामाजिक सुरक्षा देने के मामले में प्रशासनिक नज़रिया आज भी उसी परंपरागत सोच के सांचे में ही रचा-बसा हुआ है, जहां लड़कियों का घर से निकलना प्रेम-प्रसंग ही कहा जाता है।
प्रशासन के लिए ऐसी हर घटना प्रेम प्रसंग ही क्यों?
इसका ताज़ा उदाहरण बिहार के मुज़फ्फरपुर ज़िले में हुए डकैती के मामले में देखने को मिलता है। हालांकि ऐसी घटनाएं आम बात हो गईं हैं मगर हर घटना को प्रेम-प्रसंग से जोड़ देना सरासर गलत है।
4 सितंबर को मुज़फ्फरपुर के दिघरा गाँव में डकैती के दौरान बदमाशों ने किशोरी का अपहरण कर लिया था। 4 सितंबर की रात पांच बदमाश गाँव के किराना व्यवसायी शंभू नाथ पांडे के घर में घुस आए और डकैती की घटना को अंजाम दिया।
उस दौरान बदमाशों ने घर में रखे महंगे जेवरात और सामान लूट लिया और साथ ही व्यवसायी शंभू नाथ पांडे की बेटी का अपहरण भी कर लिया। इस दौरान जब शंभू नाथ ने विरोध किया तो बदमाशों ने उनकी भी पिटाई कर दी।
प्रशासन को जब घटना की जानकारी दी गई, तब प्रशासन ने बिना पुष्टि घटना को प्रेम-प्रसंग से जोड़ दिया। यह केवल पहली बार नहीं है, अगर आपके ज़हन में नवरुणा की यादें बची होंगी तो आपको याद होगा कि प्रशासन ने उसे भी सबसे पहले प्रेम-प्रसंग से जोड़ा था। जिसके ज़रिये प्रशासन ने अपहरण को प्रेम का जामा पहना कर ढंकने का प्रयास किया। लड़की अगर प्रेम करती, तो भी प्रशासन की ही ज़िम्मेदारी बनती है कि वह उसके अधिकारों का संरक्षण करे।
सरकार के जागरुकता अभियान प्रशासन को नहीं आते समझ
सरकार भले ही लाखों जागरुकता अभियान चला दे मगर प्रशासन की नींद नहीं खुलती है, क्योंकि प्रशासन के लिए लड़कियों का घर से निकलना ही प्रेम-प्रसंग को आमंत्रित कर देता है, बल्कि हकीकत इससे परे है।
हालांकि लड़की के गुरुग्राम से मिलने की खबर मीडिया में आ गई है मगर प्रशासन के रवैये से एक बात साफ झलकती है कि उसकी नज़र में लड़कियों का बाहर जाना एक प्रसंग है, जिसमें प्रेम को सामने ले आना बिल्कुल सही है।
डॉ. शिव प्रिय का अनशन
इस घटना को संज्ञान में लेते हुए शहर के रहबादी डॉ. शिव प्रिय, शहीद खुदीराम बोस स्टेडियम में आमरण अनशन पर रहे, क्योंकि उन्हें प्रशासन का रवैया सहन नहीं हुआ। उन्होंने इसे गंभीरता से लिया, क्योंकि लड़कियों पर हर बार प्रेम का मामला लगा देना गलत है।
वह भी तब तक जब तक तफ्दीश पूरी नहीं हुई हो। शिव प्रिय का उद्देशय लड़कियों के अपहरण को हमेशा प्रेम-प्रसंग से जोड़ देने के खिलाफ है क्योंकि इससे उन सभी लड़कियों के लिए तरक्की के दरवाज़े बंद हो जाते हैं।
प्रशासन कर रहा है बंदिशों का निर्माण
प्रशासन के इस रवैये के कारण ही परिवार के साथ-साथ समाज भी लड़कियों के बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगा देगा, क्योंकि लड़कियां बाहर जाएंगी और अगर उनके साथ कोई अनहोनी होगी, तो प्रशासन उसे प्रेम का मामला बना देगा।
ऐसे भी हमारे समाज में प्रेम को लेकर लोगों का नज़रिया कितना प्रेममय है, यह हम सब जानते हैं। दिघरा से अपरहीत लड़की भले ही मिल गई है मगर प्रशासन ने जिस तरह से इसे लोगों के सामने पेश करने का प्रयास किया है, उससे प्रशासन का नज़रिया सामने आता है, जो आज भी जागरुकता से कोसों दूर है।
प्रशासन द्वारा लड़की के मिलने की पुष्टि के बाद अब शिव प्रिय अपना अनशन खत्म कर सकते हैं मगर प्रशासन का रवैया बिल्कुल भी सराहनीय नहीं है, क्योंकि अगर वह हर मामले को प्रेम से जोड़ेगी, तो लड़कियों की आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं बचेगा।