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NRC की वो बड़ी बड़ी बातें …………एक नजर

आज जब देश की जीडीपी धडाम गर्तं में पड़ी है , करोड़ो करोड़ो लोगो के रोजगार छीन गए है , लघु उद्योग कर्ज के बोझ से बंद हो रहे है , देश की आधी से ज्यादा जनसँख्या की जीविका पर संकट में है,पडोसी देश “लाल आखें” दिखा रहा है और न जाने कितने हजारों लोग स्वास्थ्य सुविधों के अभाव में दम तोड़ रहे हैI इस घोर मानवीय विपदा के समय ऐसा अहसाह हो रहा है कि क्यों न इस समय कुछ अतीत की घटनाएँ याद की जाएँ …….

“इस बिल को NRC  से जोड़ने की जरूरत नहीं है ,NRC करंगे, स्पस्ट रूप से करेंगे, इसी प्रकार से ,इसी सदन में करेंगे”  I       10 दिसम्बर 2019  को भारत देश के गृहमंत्री जी ने नागरिकता संसोधन कानून पर सदन में चर्चा करते समय कुछ ऐसे शब्दों के साथ पुष्टि की थी कि देश में जल्द ही NRC लागू होने वाला है , जिसकी cronology वो भाजपा की रैलियों में काफी समय से समझाते आ रहे हैI यह समय था, जब बात कि जा रही थी कि कौन अपना होगा?, कौन अपना नहीं होगा? किसको भारत में रहने का हक मिलने वाला है किसको नहीं मिलने वाला है ? असम में मुंह की खाने के बाद और लगभग आपके टैक्स का 1500 करोड़ रुपया खर्च करने के बाद, ऐसे बड़े बड़े बयां देश के सदन में दिए जा रहे थेI

       असम NRC के कुछ खास वर्ग या समुदाय के लोगों की धड़कन बढ़ा तो दी ही थी, परन्तु उनके पेट पर लात मारने का काम जब किया गया जब नागरिकता संसोधन बिल के लिए उनके वर्ग को एक तरह से अयोग्य ठहरा कर, उन्हें एक परम्परागत तरीके से नागरिकता लेने की बात कही गयीI यह कुछ ऐसा ही था कि देश में एक खास वर्ग ही समानता नहीं रखता है, जिसको नए कानून का फायदा नही मिलेगा, परन्तु उसके अलावा लगभग सभी वर्ग को उसका फायदा मिलने वाला हैI भीतर की बात समझाई जाए तो इसमें एक तरह से लोगों की उम्मीद को मारने  का प्रयास किया गया था , कि दशकों से देश में रह रहे लोगों को , कामगारों को मजदूरों को कुछ ऐसा बोल दिया जाना था की अपने कागज़ ले आओ
( इतिहास में भारत देश में कोई भी सर्टिफिकेट बनवाना शायद ही  अनिवार्य  रहा हो  ) वरना भारत की नागरिकता से हाथ धोना तय है, अगर उनकी चुनावी रैली के भाषण को सुना जाए तो नागरिकता साबित न करने वाले घुसपैठयों को चुन चुन के बाहर निकलने की बात कहीं भी सुनी जा सकती थी I यह वो अहसास था जब एक वर्ग से वोट पाने एव सिंघासन पर विराज होने के बाद  उन्हें यह साबित करना था कि वो इस देश में  वोट देने योग्य है या नहीं I

एक वर्ग को लात  मार कर खदेड़ने की साजिश रची जा रही थी , उसे प्रताड़ित कर अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने की पूरी तैयारी थीI जब देश सड़कों पर उतर रहा था , देश का युवा तबका (जिन्हें बाद में “देशद्रोही” नाम से संबोधित किया जाने वाला था) छोटे छोटे रूप से प्रदर्शन रुपी “चिंगारी” को व्यापक रूप देने में जुट गया थाI देश का समाज तथाकथित देशभग्त एवं देश द्रोहियों के बीच बंट गया था I दिल्ली के शाहीन बाग़ को लेकर छोटे से छोटे नेता से लेकर सर्वोतम नेता नीचता की हद पार कर चुके थे , बड़े बड़े नेता हनुमान चालीसा गाकर खुद को सबसे बड़ा हिन्दू साबित करने में तुले थेI इस भयंकर ह्रदय विदारकः समय में सबसे सकारात्मक चीज देश की महिलाओं की एक जुटता थी , जहाँ सभी वर्ग की महिलाएं एक दुसरे की मदद के सामने आ रही थीI

लेकिन सत्ता के नशे में चूर देश के “आम आदमी” से लेकर  तथाकथित “फ़कीर” को एक खतरे को अहसास भी नहीं था, जो जल्द ही उन्हें सांस भुलाने वाला थाI इसको कोई घटना बोलिए या दुर्घटना जहाँ  लोगों के असल हमदर्द की पहचान होने वाली थी, वो समय कोरोना रुपी महामारी लेकर भारत में पहुंच रहा थाI जिस  समय खूब दब दब के रैली चल रही थी एक धर्म या जाती के लोगों को चुन चुन के देशद्रोही करार किया जा रहा था , ज्यादातर न्यूज़ चैनल द्वारा लाइव  “चीर हरण” किया जा रहा था , दुनिका के सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों में शुमार व्यक्ति देश में खरबों रूपए का समान बेचने आया था , और  राजधानी दंगो का शिकार थीI तब कोरोना ने अपने पैर पसारने शुरू किये थे, पहले ज्यादा ध्यान सरकार के द्वारा नहीं दिया गया, जब विदेशो में बंदी की बात चल रही थी तब भारत देश में एअरपोर्ट पर स्क्रीनिंग भी शुरू नहीं हुई थी, कोई एक आध विडियो ट्विटर के जरिये आने लगी थी कि किस प्रकार चीनी सरकार  भारतीय छात्रों के साथ इलाज के नाम पर भेदभाव कर रही है , छात्र उस समय अपनी समस्यां बताना शुरू कर रहे थे परन्तु भारतीय सरकार , दिल्ली चुनाव को लेकर व्यस्त नजर आ रही थी (ज्यादातर नेता चुनावी रैली में व्यस्थ थे )I परन्तु उनकी इसी व्यस्थ समय में कोरोना पहले एक राज्य में पहुँचा,फिर दुसरे में और फिर धीरे धीरे दिन प्रतिदिन केस बढ़ने लगे, एवं लम्बे समय से इस विषय पर गंभीर रुख अपनाने वाली   इंटरनेशनल मीडिया की बातों को लोगों ने गंभीरता से ले लेना शुरू किया, जब विश्व के एक बड़े हिस्से में यह बीमारी फ़ैल रही थी तब भी ऐसा प्रतीत हो रहा था की भारत सरकार  या तो इसे गंभीरता से ले नहीं रही है या भारत सरकार  अंदाजा लगा रही है कि क्या यह बीमारी सच में ही इतनी विकत है जितनी इसको प्रसत्तुत किया जा रहा है ?

फिर अचानक से एक दिन ताली और थाली बजाने की बात की गयी और फिर एक दिन  अचानक से  “लक्ष्मण रेखा” चक्करव्यू जैसे शब्द बता कर 4 घंटे के भीतर भीतर पुरे देश को बाँध के रख दियाI  “ आप इस समय जहाँ भी है, अभी के हालत को देखते हुए देश में यह लॉकडाउन  21 दिन का  होगा”,“मै आपसे कुछ हफ्ते मांगने आया हूँ”, “हेल्थ एक्सपर्ट”, “वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन”,  के नाम पर  और “परिवार 21 साल पीछे चले जाने का भय दिखाकर ”  21 दिन सबको इस तरह बाँध दिया जैसे अब से लोगों के पेट में भूख का लॉक डाउन हो जाएगा,रोज की रोजीरोटी कमाकर खाने वाले मजदूर को अब से भूख लगनी बंद हो जाएगी ,पानी सबके घर आने लगेगा, जो सामूहिक शोचालय बनवाए है उनकी अब से जरूरत नहीं होगी,बिजली 24 घंटे दी जाएगी,और मेडिकल सुविधाएँ घर घर तक पहुचाई जाएगीI उस समय एक वर्ग के सामने इतनी ज्यादा समस्याएँ थी, जीविका पर संकट था तो दूसरी तरफ मुख्यधारा मीडिया “कठिन समय में बड़े फैसले” “56 इंच” का गुणगान करने लगी थी  (यह इन्ही दिनों के दौरान ही एक प्रदेश में सरकार गिरा,खरीद फरोक्त,होटल बुकिंग जैसे खेल भी चल रहे थे जिसे मिडिया चाणक्य के नाम पर चोर डाकुओं का गुणगान कर रहा था)  

वह  समय था जब मीडिया में दुसरे चैनल से ज्यादा चटुकारिता करने की होड़ लगी थी और न जाने क्या क्या फायदे गिनाने की कोशिश की गई थीI एक तरह देश का गरीब आदमी चुप चुप के रोटी का इंतजाम करने की फ़िराक में था तो दूसरी ओर देश को बड़ो फैसलों के माध्यम से विश्वगुरु बनाने की बाते चल रही थी, एक तरफ किसान की गेहूं की फसल कट गयी थी जिसे आधे दामों पर  बेचने के लिए वो मजबूर था, तो दूसरी और नेताओं की छवि गढ़ने का काम किया जा रहा था, जैसे तैसे करके 5 ,7 दिन निकल गए परन्तु फिर कुछ लोग सड़कों पर दिखाई देने लगे कोई काम की तलाश में था तो कोई रोटी की में I बड़े पैमाने पर बसे चलना तो पहले ही  बंद हो चुकी थी , मजदूरी करने वाले लोग बाज़ार में घूम फिर कर जान चुके थे,कि  उन्हें यहाँ कोई काम नहीं मिलने वाला तो वो रातों रात अपने रहने की जगह से गायब होने की फ़िराक में थे परन्तु भारतीय पुलिस की “रहमदिली” जो उस समय टीवी पर छाई थी उससे डर भी तो लगता था, परन्तु जैसे जैसे दिन बीतते गये, पैसे खत्म होते गये और पेट की आग पर काबू पाना बंद हो गया तब शुरू हुआ भारत के इतिहास का सबसे दुखद समयI जब एक ओर विदेशों से भारतीय लोगों  को “नीलामी के लिए खड़े” जहाजों से भारत वापिस लाया जा रहा था, तो दूसरी ओर भारत का मजदूर अपने फटेहाल को जैसे तैसे समेटकर रोड के किनारे किनारे चलने लगाI अब उसके मन में डर तो था पर भुखमरी की मौत से थोडा कम थाI जब कुछ मजदूर चलने लगे तो उन्हें देख कर कुछ और चलने लगे परन्तु जैसे ही दोबारा लॉक डाउन को बढ़ाने की सुचना दी गयी तो सभी प्रवासी मजदूरों ने अपने झोले बाँध लिए,बड़ी बड़ी इमारतें बना कर इन शहर को बसाने वाले यह लोग  कोई कन्धों पर बच्चों को बिठा, तो कोई साईकिल पर, तो कोई रिक्शा में , तो कोई कंधे पर बाँध अपने परिवार को निकल दिएI वो निकले से भूख की मौत से बचने के लिए , अपने गाँव के लिए अपने परिवार के  लिए परन्तु किसको पता था उनको बसों के नाम पर लूटा जाने वाला है , उनसे 10 गुना किराया वसूलकर  भी उन्हें पैदल जाना होगाI पैदल भी इतना कि जहाँ आम आदमी 2 किलोमीटर के लिए ऑटो रिक्शा ढूंढता है वही वो लोग कोई 500 किलोमीटर के लिए ,कोई 1000 किलोमीटर के लिए, कोई 1500 किलोमीटर के लिए निकल लिएI यह समय एक तरफ सामान्य लोगो को अंदर से कचोट रहा था तो दूसरी ओर भारतीय मीडिया को मरकज के नाम पर अलग मुद्दा मिला हुआ था जिससे वो अपनी चाटुकारिता को पुख्ता करना चाहते थेI एक वर्ग के खिलाफ मिडिया ट्रायल चल रहा था (जिसे बाद में कोर्ट में गलत ठराया गया ) दूसरी ओर सड़कों पर नंगे पाँव चल रहे गरीबो की सुध लेने के लिए कुछ ही लोग दिखाई दे रहे थे , यह लोग मर रहे थे ,कोई भूख से कोई दिल के दौरे से कोई रोड एक्सीडेंट से, कोई गर्भवती महिला न जाने कितने दिनों से लगातार चल रही थी , तो कोई महिला रोड पर बच्चों को जन्म दे रही थी ,बच्चे भूक से बिलक रहे थे और रस्ते में खाने की व्यस्था बस भारत के कुछ एक “इंसानों” के कंधो पर थी I शिवर समितियां दिन रात काम कर रही थी (लेकिन काफी कम संख्या में  ), ज्यादा शिविर समितियां या तो गायब थी या तो मौत से डर के बैठी थी या हो सकता है किसी के आह्वान का इन्तजार भी कर रही हो I इन दिनों  कोई 4 दिन से चल रहा था कोई 8 दिन से कोई 800 किलोमीटर चल चूका था कोई 1200 परन्तु सबकी मजिल अभी दूर थी I

दिन रात चलने के बाद जब गाँव के निकट पहुंचे तो  उन्हें कहाँ पता था उनके गाँव में अब उन्हें गुसने नहीं दिया जाएगा , रस्ते में केमिकल से उनका सुधिकर्ण किया जाना है , कोर्नटाईन  सेंटर में उनको बाहर  से बंद कर  दिया जाएगा दिन में एक बार रोटी दी जाएगी, या उनके साथ जानवरों जैसे सलूक किया जाएगाI इन दिनों में एक कहावत बड़ी जोरों पर थी “खता पासपोर्ट वालों की थी ,दर बदर राशन कार्ड वालें हो गए” इस समय ने जितनी पीड़ा लोगो को दी है जितना मानसिक आघात उन्हें  पहुचाया है उसे कभी नहीं उभरा जा सकता I

बड़ी बात यह है कि इसी देश में कुछ दिन पहले तक बाहरी लोगों को नागरिकता देने की बड़ी बड़ी बाते हो रही थी , NRC पर लाखों करोडो खर्च करने की बाते थी ,गरीबों के हितकारी और सचे देश भगत होने के सबूत दिए जाते थे ,उसी समय देश के लाखों करोड़ों लोग अपने घरों से बेगाने हो गये , भूखे मरर गये , उनके पैरों के छाले कितनी बार हो होकर फूट गये परन्तु उस समय मिडिया के एक बड़े हिस्से ने सच्चाई को छिपाया रखा, उस समय इन विषयों पर कभी चर्चा नहीं की गयी न ही किसी से देशभग्ति का सर्टिफिकेट माँगा गया I लोग बस चलते गए चलते गये और बस चलते गए I

जीडीपी धडाधड गिर रही है,नौकरियां जा रही है , उद्योग बंद हो रहे है , क्या  देश में अब असल NRC की जरूरत है? क्या यह समय ठीक नहीं होगा न्यूज़ चैनल द्वारा NRC  पर हल्ला गुल्ला करने का? क्या लोग अब भी उतने ही जोश से ऐसे बिल के बारे में चर्चा करेंगे जब उनके खुद के घर में अनाज नहीं है ? जब उनके बच्चो के स्कूल से रोज रोज फीस के फ़ोन आ रहे है, जब उनका वेतन हाफ हो चूका है ? पैकज के नाम पर नमकीन पानी पिलाया जा रहा है I नौकरी के नाम पर ताली थाली बजाई जा रहीI क्या पता यही सही समय हो ……………बड़ा सवाल है

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