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‘रोजगार गारंटी कानून’ बनवाने में कैसे रघुवंश प्रसाद ने निभाई थी एक अहम भूमिका

देश के करोड़ों लोगों की ज़िंदगी में बहार लाने वाली योजना ‘मनरेगा’ में रघुवंश प्रसाद सिंह का विशेष योगदान रहा था. जिनका निधन हो गया। 2009 में कांग्रेस ने जिस मनरेगा रथ पर सवार होकर अपनी डूबती नैया को पार लगाया, उस महत्वाकांक्षी योजना के शिल्पकार रघुवंश प्रसाद सिंह ही थे।

कभी नहीं लिया ‘मनरेगा’ का श्रेय

अपने संपूर्ण राजनीतिक जीवन में उन्होंने कभी भी मनरेगा का श्रेय नहीं लिया लेकिन जब भी गरीब मज़दूर, गाँव और किसानों पर बनी योजनाओं का ज़िक्र किया जाएगा उनको ज़रूर याद किया जाएगा।

अक्सर मनरेगा को लेकर कांग्रेस और भाजपा में जंग छिड़ी रहती है। एकतरफ कांग्रेस अपनी पीठ थपथपाती है लेकिन आजतक कांग्रेस के किसी नेता ने यह नहीं बताया कि मनरेगा किसकी देन है। दूसरी तरफ उस वक्त के गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना को विफल करार देते हुए कहा था कि यह कांग्रेस की विफलताओं का स्मारक है।

प्रतीकात्मक तस्वीर, तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

दरअसल, कांग्रेस शासन काल में यह स्कीम भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया था, जहां सही मायने में इसका लाभ पहुंचना था, वहां तक इसका लाभ नहीं पहुंच पाया। 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने इस योजना की महत्ता को समझते हुए हूबहू दोगुनी ताकत से इसे लागू किया।

लॉकडाउन में मनरेगा ही बना प्रवासी मज़दूरों का सहारा

कोरोना लॉकडाउन के दौरान जब प्रवासी श्रमिक अपने घरों को लौट रहे थे, तो उन्हें रोज़गार देने के विकल्प के तौर पर केंद्र सरकार को मनरेगा ही उपयुक्त लगा। मनरेगा की वजह से लाखों प्रवासी मज़दूरों को रोज़गार मिला।

मनरेगा को लेकर रघुवंश बाबू की प्रतिबद्धता को इस बात से समझा जा सकता है कि उन्होंने कुछ दिनों पहले एम्स से अपने इलाज के दौरान ही प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इस योजना का दायरा बढ़ाने का अनुरोध किया था।

2004 से 2009 मनमोहन सिंह की सरकार में संभाला ग्रामीण विकास मंत्री का पद

2004 से 2009 तक रघुवंश प्रसाद सिंह ने मनमोहन सिंह की सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री का पद संभाला। सोनिया गांधी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय सलाहकार समिति का गठन किया गया।

इस समिति ने अपनी पहली बैठक में रोज़गार गारंटी कानून बनाने का प्रस्ताव पारित किया। कानून बनाने की ज़िम्मेदारी श्रम मंत्रालय को सौंपी गई। श्रम मंत्रालय ने छह महीने में हाथ खड़े कर दिए। बाद में ग्रामीण विकास मंत्रालय को यह कानून बनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।

गणित के प्रोफेसर रह चुके रघुवंश प्रसाद सिंह ने इस कानून को पास कराने में भी अहम भूमिका निभाई। उस दौरान मनमोहन सिंह कैबिनेट के कई मंत्री इस कानून पर सवाल खड़े कर रहे थे, तब रघुवंश बाबू ने इस कानून को लेकर सोनिया गांधी से बातचीत की और इसकी महत्ता को समझाया।

बाद में कैबिनेट में इस कानून पर बारीकी से बातचीत की और सभी को राजी किया। कैबिनेट की हरी झंडी मिलने के बाद रघुवंश बाबू ने सबका शुक्रिया अदा किया। 2 फरवरी 2006 को देश के 200 पिछड़े ज़िलों में महात्मा गांधी रोज़गार गारंटी योजना लागू की गई। 2008 तक देश के सभी ज़िलों में यह योजना लागू की जा चुकी थी।

इस योजना के तहत ग्रामीण परिवार के एक सदस्य को साल में 100 दिन की न्यूनतम रोज़गार की गारंटी दी गई थी। इस कानून ने भारत के ग्रामीण ढांचे को बदल दिया। केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस कानून के लागू होने से देश के अंदर पलायन में कमी आई। इसने किसानों और मज़दूरों के जीवन को एक नया आयाम दिया।

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