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लॉकडाउन और कोरोना में गरीबी से जूझ रही रामावती देवी ने ऐसे खोजा अपनी जीविका का साधन

जहां एक ओर कोरोना ने कई लोगों को बेरोज़गार किया है, वहीं ‘जीविका समूह’ गरीबों की जीविका का साधन भी बन रहा है। रामावती देवी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।

जीविका समूह से जुड़ने से पहले वे बहुत गरीब और असहाय थीं। उनके पास रोज़गार का ना तो कोई साधन था और ना ही ज्ञान। परिवार में एक दिव्यांग पति और चार बच्चे हैं। ऐसे में, जीविका ने ना सिर्फ उन्हें जीने का ज़रिया दिया, बल्कि लोगों की मदद के लिए भी प्रेरित किया।

पूर्वी चंपारण अरेराज प्रखंड क्षेत्र के बहादुरपुर पंचायत के खजूरिया तिवारी टोला निवासी रामावती अपने परिवार का भरन-पोषण करने के लिए मज़दूरी किया करती थीं। कोरोना के दौरान हुए लॉकडाउन में उनकी आजीविका का यह साधन भी बंद हो गया। घर में आर्थिक तंगी की वजह से उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा।

उस वक्त उनकी मुलाकात जीविका की कम्यूनिटी मोबिलाइजर(सीएम) दीदी से हुई, उन्होंने उसे जीविका समूह से जुड़ी जानकारी देते हुए इससे जुड़ने की सलाह दी। उन्होंने पहले अपने पति से बात की और वहां के चमेली जीविका स्वयं सहायता समूह से साल 2015 में जुड़ गईं। अभी वे इस समूह की सचिव हैं और आकाश महिला जीविका ग्राम संगठन की सदस्य हैं।

रामावती और उनके पति अपने ई-रिक्शे के साथ

रामावती बताती हैं कि जब वे जीविका से जुड़ीं, तो उन्हें रोज़गार से जुड़ी बातों की जानकारी दी गई। उस वक्त उन्होंने स्वयं सहायता समूह से कर्ज़ लिया और ई-रिक्शा खरीदा। ई-रिक्शा चलाने की ज़िम्मेदारी उनके पति राजेंद्र प्रसाद चौरसिया ने संभाली। ऑटो से अच्छी कमाई हो रही थी लेकिन लॉकडाउन होते ही ई-रिक्शा चलना बंद हो गया और राजेंद्र बेरोज़गार हो गए और उनके आजीविका पर ब्रेक लग गया।

लोन लेकर शुरू की खेती, अब पहुंचा रहे घर-घर सब्जी

रामावती आगे बताती हैं कि आजीविका और घर की तंगी से परेशान होकर उन्होंने समूह से बात की। उस वक्त प्रखंड परियोजना प्रबंधक राकेश कुमार ने चलंत सब्जी और फल का ‍व्यापार करने की सलाह दी। इससे उत्साहित होकर मैं और मेरे पति इसके लिए खुशी-खुशी राजी हो गए। इससे जहां एक तरफ हमारी आमदनी शुरु होगी, वहीं दूसरी तरफ हमारे इस कदम से लोगों की मदद भी होगी।

रामावती ने फिर से समूह से लोन लेकर सब्ज़ी की खेती शुरू की। ई-रिक्शा पहले से ही था, ऐसे में वे रोज़ाना ताजा हरी सब्ज़ियां खेतों से तोड़कर घर-घर पहुंचाने लगे।

लोगों को घर पर ताजी हरी सब्ज़ियां मिलने लगीं, तो वे बाहर ना जाकर उनसे ही सब्ज़ियां लेने लगे। अब रामावती और उनके पति सुबह से ही घर-घर फल और सब्जी देते हैं और दस बजे के बाद ई-रिक्शा से सवारी लेकर गाड़ी चलाते हैं। इससे इनकी आर्थिक स्थिति में काफी सुधार हुआ है और वे महीने का लगभग आठ हज़ार कमा रहे हैं, जिसका श्रेय वे जीविका को देते हैं।

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