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“सुदर्शन न्यूज़ पर SC का फैसला नफरत फैलाने वाली मीडिया के मुंह पर तमाचा है”

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की बेंच ने सुदर्शन न्यूज़ के कार्यक्रम बिंदास बोल के तहत UPSC Jihad नाम से शुरू होने वाली सीरीज़ पर रोक लगा दी। हालांकि इसके 4 एपिसोड हो चुके हैं, जिसके झूठ का कच्चा चिट्ठा द क्विंट की एक रिपोर्ट में खुल चुका है।

गौरतलब है कि पहले हाईकोर्ट भी इस कार्यक्रम पर रोक लगा चुकी है। जब UPSC में एग्ज़ाम और इंटरव्यू एक सामान हैं, तो यह कहना कि मुसलमान घुसपैठ कर रहे हैं, एकदम बकवास है। हालांकि इस फैसले के बाद सुरेश चौहान के का एक वीडियो इंटरनेट पर है, जिसमें सुरेश कह रहे हैं कि यह मीडिया की आज़ादी के खिलाफ है।

इसलिए इस फैसले को हम सहमति नहीं देंगे। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि मीडिया की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की आज़ादी है और अभिव्यक्ति की आज़ादी में यह नहीं आता है। हालांकि यह भी सच है कि इसी सुदर्शन चैनल और सुरेश चौहान के पर कई बार फेक न्यूज़ फैलाने के आरोप लगे हैं।

खुद ऑल्ट न्यूज़ ने 10 से ज़्यादा फेक न्यूज़ और नकली खबरों का ज़िक्र अपनी रिपोर्ट में किया है, जो सुदर्शन न्यूज़ और सुरेश चौहान के ने फैलाई थी। इसके अलावा पिछले साल 2019 में कालीकट, केरल की अदालत ने इस न्यूज़ चैनल पर फेेक खबरें चलाने के लिए 50 लाख रुपये का फाइन ठोका था।

अदालत के इस फैसले के मायने क्या हैं

अमर उजाला में इसी फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के उस बयान का ज़िक्र किया जिसमें कहा गया था कि एक समुदाय को निशाना बनाना ठीक नहीं  है। यह राष्ट्र को कमज़ोर कर सकती है। नवभारत टाइम्स लिखता है, “सनसनी फैलती है जब कुछ डिबेट्स के एंकर्स बोलने नहीं देते किसी को।”

सुप्रीम कोर्ट के जज ने तुषार मेहता से पूछा क्या विचार की अभिव्यक्ति को बचाने के लिए मीडिया की सेल्फ रेगुलेशन नहीं होनी चाहिए? जब तुषार मेहता ने यह दलील दी कि फेसबुक पर भी बहूत कुछ लिखा जाता है, तो चंद्रचूड़ साहब ने पूछा कि क्या हम एक को रेग्युलेट इसलिए ना करें कि सभी रेग्लेयुट नहीं हो सकते?

जस्टिस जोसफ ने कहा कि जिस तरह भारत के नागरिकों को अभिव्यक्ति की आज़ादी है, ठीक उसी तरह प्रेस को भी है। उन्हें अलग से कोई आज़ादी नहीं मिली है। उन्होंने आगे कहा कि कोई भी आज़ादी पूर्णतः नहीं मिलती है और केबल टीवी का रूल 6 कहता है कि कोई ऐसा कार्यक्रम नहीं दिखया जा सकता है, जो किसी धर्म या समुदाय को टारगेट कर सके, जैसा कि इस शो में हो रहा था।

NBA यानि न्यूज़ ब्रॉडकास्ट अथॉरिटी के वकील से कोर्ट ने पूछा कि क्या आप अपने लेटर हेड से इतर भी मौजूद होते हैं? साथ यह भी पूछा कि जब मीडिया के चंद लोग, लोगों की इमेज को तार-तार करते हैं तब आप कहां होते हैं?

डिबेट्स के एंकर द्वारा प्रयोग किए जाने वाले आपत्तिजनक शब्दों का भी ज़िक्र

अदालत ने आपत्तिजनक शब्दों के इस्तेमाल पर सवाल उठाए। अदालत ने कहा कि भाषा की मर्यादा खत्म कर दी गई है, इन चंद न्यूज़ चैनलों ने चिल्लम-चिल्ली के अलावा कुछ हित नहीं किया है। मुझे उन एंकरों के नाम बताने की ज़रूरत नहीं है, जो या तो भद्दी भाषा का इस्तेमाल करते हैं या किसी को बोलने नहीं देते हैं।

जस्टिस जोसफ ने कहा कि यह देखना ज़रूरी है कि एंकर की भूमिका क्या है और यह देखना चाहिए कि एंकर ने कितना फीसदी समय लिया। एंकर का निष्पक्ष होना ज़रूरी है, कोर्ट ने इसके अलावा 5 सदस्य समिति बनाने के भी आदेश दिए हैं।

शायद सबको याद होगा कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने तब्लीगी जमात मामले में मीडिया हाउस को लताड़ते हुए कहा था, “ऐसा लगता है कि मीडिया ने इन तब्लीगियों को बली का बकरा बनाया है।” यह भी कहा कि क्या हम सब अपने सिद्धान्त और संस्कार भूल गए हैं क्या?

अगर कोई मुसलमान अपनी मेहनत से UPSC जैसा एक कड़ा इम्तेहान पास कर सिविल सेवाओं में जाता है, तो सुरेश चौहान के साहब जैसे लोगों को परेशानी क्यों होती है? मेरा एक सवाल है चौहान के साहब और तुषार जी से कि अगर मीडिया की स्वतंत्रता की चिंता है, तो जब अजीत अंजुम, पुण्य प्रसून वाजपेई और अभिसार शर्मा जैसे कई पत्रकारों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी, तब क्यों नहीं बोले? आपके लिए मीडिया की स्वन्त्रता मतलब अपने मीडिया चैनल की स्वतन्त्रता है?

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