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सवर्णों ने कहा, “तुम दलितों को बोलने का हक किसने दिया?”

फोटो साभार- pexels

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समाज को बदलने में स्कूल, कॉलेज की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। जिन शैक्षणिक संस्थानों में जात-पात जैसी दकियानूसी मानसकिता के खिलाफ पढ़ाया जाता है, आज वर्तमान में उन्हीं संस्थानों की दीवारों पर सबसे ज़्यादा जातिगत पूर्वाग्रह समाहित हैं।

जिस तरह भ्रष्टाचार देश के पुर्ज़-पुर्जे़ में बसा हुआ है। वैसे ही जातिगत पूर्वाग्रह भी समाज की हर संस्था में व्याप्त है। भ्रष्टाचार और जातिवाद दोनों देश के विकास की रफ्तार में बाधा डालते हैं।

आंखों में नमी लेकर शिवम ने क्या कहा?

वाराणसी के यूपी कॉलेज से पढ़ाई कर चुके मेरे दोस्त शिवम निषाद (बदला हुआ नाम) बताते हैं, “जातिवाद तो मेरे साथ शुरू से ही होता आ रहा है। गाँव से लेकर सोसाइटी, कॉलेज या मेरे काम करने की जगह भारतीय रेलवे तक में मैंने करीब से जातिवाद को महसूस किया है।”

आंखों में नमी लिए शिवम आगे कहते हैं कि यूपी कॉलेज में पढ़ाई के दौरान मैंने जातिवाद की पीड़ा को बहुत ही करीब से अनुभव किया है। जातिवाद जैसी घृणित मानसकिता के बारे में स्कूल में पढ़ाई के दौरान मुझे नहीं लगा था कि मैं कभी जातिगत टिप्पणी जैसे कटु अनुभवों से गुज़रुंगा।

हिन्दू समाज में वर्ण व्यवस्था जातीय उत्पीड़न की मुख्य वजह 

शिवम जब स्कूल में था तो उसने कभी जातीय पीड़ा नहीं देखी थी। स्कूल जैसा मौहाल सोचकर यूपी कॉलेज में एडमिशन लिया। उसकी नज़र में यूपी कॉलेज ऐसा आधुनिक शैक्षणिक संस्थान था जहां लोग जाति से ऊपर उठकर लोगों के साथ समानता का व्यवहार करते हैं।

जब शिवम के साथ जातीय टिप्पणी जैसा कटु अनुभव हुआ तो उसे गहरा दुःख पहुंचा। उसका मानना है कि हिन्दू समाज में वर्ण व्यवस्था जातीय उत्पीड़न की वजह है।

शिवम को जब कॉलेज में ज़लील किया गया

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- pexels

यूपी कॉलेज में स्नातक के दूसरे वर्ष में शिवम के साथ एक जातीय भेदभाव की घटना हुई। क्लास में शिवम के दो सहपाठी अनुराग सिंह और पवन पांडेय (बदला हुआ नाम) कॉलेज में होने वाले छात्रसंघ चुनाव के बारे में चर्चा कर रहे थे।

शिवम भी अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए चर्चा में हिस्सा लिया तभी पवन पांडेय बोल पड़ा,‌

तुम क्यों बोल रहे हो, तुम तो मल्लाह हो ना, यहां ठाकुरवाद और पंडितवाद चल रहा है तो तुमको किसने हक दिया बोलने को?

शैक्षणिक संस्थानों में ऐसी घटनाएं सामंती मानसकिता को दर्शाती हैं

सोचिए, इस प्रसंग के बाद शिवम पर क्या गुज़र रही होगी? एक छात्र जो पिछड़ी जाति का है, उसके सवर्ण सहपाठी उसे अपना विचार नहीं रखने देते हैं। चुनाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया का वह हिस्सा होता है जहां हर वर्ग को अपने विचार रखने का अधिकार होता है।

ऐसे में अगर मल्लाह समाज से आने वाले छात्र को सार्वजनिक जगह पर जातीय टिप्पणी का सामना करना पड़ता है, तो यह बहुत ही दुःखद और अमानवीय है। शैक्षणिक संस्थानों में ऐसी घटनाएं सामंती मानसकिता को दर्शाती हैं।

क्या युवा पीढ़ी ने भी इस जातिवादी व्यवस्था को आत्मसात कर लिया है?

शिवम बताते हैं कि स्कूल में कभी भी जातिवाद से मेरा सामना नहीं हुआ था। जब मैं स्कूल से कॉलेज पहुंचा तो जातिवाद का वीभत्स चेहरा देखा। वैसे मैंने यूपी कॉलेज के बारे में सुना था कि यहां जातिवादी व्यवस्था हावी है।

जब मैंने फॉर्म भरा तो मुझे उम्मीद थी कि अब वह सब नहीं होगा। अब नई युवा पीढ़ी आ रही है जो इस व्यवस्था के खिलाफ होगी।

अपनी आवाज़ उठाने पर गोली मार देने की धमकियां भी दी जाती हैं

यूपी कॉलेज में पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व छात्रसंघ चुनाव में ना के बराबर है। अगर एससी, एसटी या ओबीसी कैटेगरी का कोई स्टूडेंट हिम्मत करके छात्रसंघ चुनाव लड़ता है तो उच्च जाति और सामंती मानसिकता के लोग हाथ-पैर तोड़ने से लेकर गोली मारने का दुस्साहस तक कर देते हैं।

एससी, एसटी या ओबीसी वर्ग के छात्र दूसरे साल में जातीय उत्पीड़न की वजह से कॉलेज की पढ़ाई बीच में छोड़ देते हैं। नतीजतन उन वर्गों की सीटें खाली रह जाती हैं। शिवम बताते है कि आमतौर पर एससी या एसटी स्टूडेंट्स छात्रसंघ चुनाव में दिलचस्पी नहीं लेते हैं, क्योंकि उनके वर्ग का कोई छात्र चुनाव नहीं लड़ता है।

जातिवाद की वीभत्स तस्वीरें शैक्षणिक संस्थानों को खोखला कर रही हैं

जातिवाद की ऐसी वीभत्स तस्वीरें पूर्वांचल के कई बड़े कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में दिखाई देती हैं। ऐसे मामलों में कॉलेज प्रशासन मौन होकर जातिवादी मानसिकता को बढ़ावा देते हैं।

सोशल मीडिया के दौर में हर मुद्दों पर राय लिखने वाली जनता, इस मुद्दे पर अक्सर मौन साध लेती है। ऐसा लगता है कि यह समाज जातिवाद को मौन समर्थन देता है। समाज जातिवादी मानसकिता से ग्रसित होकर एक कुशल शख्स का बलिदान करता आ रहा है।

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