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कोरोना काल में मास्क बनाकर आत्मनिर्भर बन रही हैं बिहार की ममता

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जहां चाह होती है, वहां राह बनते देर नहीं लगती है। यह कहानी 24 वर्षीय ममता कुमारी की है। साल 2017 में पति की मौत के बाद तीन बच्चों की ज़िम्मेदारी जब उसके कंधे पर आई तो वो जीविका से जुड़ी। अब वह कम्यूनिटी मोबिलाइज़र का काम कर रही है।

आज उसकी आर्थिक स्थिति काफी बेहतर हो गई है। यही नहीं, जीविका के प्रखंड परियोजना प्रबंधक द्वारा मोटिवेट करने पर पढ़ाई छोड़ चुकी ममता ने इसी साल अपनी इंटर की परीक्षा पास की है।

बचपन से ही कुछ करने का था जुनून

मास्क बनाती ममता।

पूर्वी चंपारण के अरेराज प्रखंड के जोगियारा गाँव निवासी दिनेश मिश्रा के दो संतान थे जिनमें ममता इकलौती पुत्री थी। ममता को बचपन से ही कुछ करने का जुनून था लेकिन पिता की माली हालत ठीक नहीं होने के कारण वो किसी तरह 2010 में पार्वती कन्या उच्च विद्यालय से मैट्रिक पास की।

घर की आर्थिक स्थिति ठीक जब ज़्यादा बिगड़ गई तो उनके पिता ने उसकी शादी 2012 में अरेराज के नवादा गाँव के निवासी अजीत कुमार चौबे से कर दी।

ममता यही अरमान के साथ ससुराल गई कि वहां जाकर अपने सपने को साकार करेंगी लेकिन घर-परिवार की ज़िम्मेदारियों में ऐसी उलझी कि सारे अरमानों को भूल गई। इस दौरान उसे तीन बच्चे भी हो गए। गाँव के बच्चों को स्कूल जाते देख उसका भी  मन अपनी आगे की पढ़ाई करने का करता है।

एक दिन उसने अपने पति से अपनी आगे की पढ़ाई करने की इच्छा बताई जिस पर उन्होंने हामी भर दी। मई 2015 में पति ने इंटर की पढ़ाई के लिए के उसका नाम आर इंटर वीमेंस कॉलेज अरेरराज में दाखिला करवा दिया और उसने पढ़ाई भी शुरू कर दी।

ममता को लगा जैसे उसने अपने सपनों के लिए पहला कदम ले लिया है लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। साल 2017 में एक रोड एक्सीडेंट में पति का मौत हो गई। पति के जाने के बाद घर की सारी ज़िम्मेदारी ममता पर आ गई।

ससुराल वालों ने उसके परिवार की जिम्मेदारी उठाने से मना कर दिया। पारिवारिक कारणों की वजह से उसे अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इसी बीच उसे गाँव की कुछ महिलाओं ने जीविका समूह के बारे में बताया। घर वालों के मना करने के बावजूद 2017 में श्याम जीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ी।

इसी साल पास की इंटर की परीक्षा

सामुदायिक समन्वयक ने ममता की योग्यता को देखते हुए कम्यूनिटी मोबिलाइज़र (सीएम) के रूप में  कार्य करने के लिए प्रेरित किया और 2017 से सीएम के रूप में वो काम रही है। ममता बताती है कि प्रखंड परियोजना प्रबंधक राकेश सर को पता चला कि मैंने अपनी इंटर की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी, तो उन्होंने मुझे आगे अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए प्रेरित किया।

कई लोगों ने मज़ाक भी उड़ाया लेकिन मैंने आगे पढ़ने की ठानी और साल 2018 में इंटर की पढ़ाई  फिर से शुरू की।  इसी वर्ष  मैंने इंटर सेकेंड डिविजन से पास कर लिया है। वो अपने ग्रेजुएशन के नामांकन की तैयारी में है।

कोरोना के दौरान जीविका के सामुदायिक समन्वयक ने उन्हें मास्क बनाने के लिए प्रेरित किया। ममता को सिलाई करनी आती थी लेकिन उनके पास सिलाई मशीन नहीं थी। इसी बीच उसने समूह की महिला से बात की और वो सिलाई मशीन पर काम करने की अनुमित दे दी।

शुरुआत में ममता ने जीविका समूह से एक हज़ार रुपये कर्ज़ लेकर मास्क तैयार कर अपने आस-पास बेचने लगी। इससे उसकी आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आया। ममता को धीरे-धीरे मास्क बनाना काफी भाने लगा। उसने श्याम जीविका समूह से 11000 रुपये कर्ज़ लेकर खुद की सिलाई मशीन ली और मास्क निर्माण में जुट गई। उसी पंचायत के मुखिया ने उसे 2000 मास्क का ऑर्डर 15 रुपये प्रति पीस के दर पर दिया।

गाँव में कई ऐसी महिलाएं थीं जिन्हें सिलाई आती थी लेकिन अपने इस हूनर को कैसे इस्तेमाल करें, यह नहीं पता था। ममता ने धीरे-धीरे उन महिलाओं को मास्क निर्माण बनाने के लिए प्रेरित किया। जिसके बाद मास्क निर्माण का कार्य उन महिलाओं के साथ आगे बढ़ाने लगीं। इसी दौरान उन्हें दूसरे पंचायतों से भी ऑर्डर आने लगे। अभी तक ममता मास्क तैयार कर लगभग 45000 रुपये की आमदनी कर चुकी है।

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