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“अनेकता में एकता होती यहां काश, ना कोई जाति, ना कोई रंग, ना ही कोई लिंग का होता अभिमान”

अनेकता में एकता होती यहां काश
ना कभी कोई करता अपने आप की तलाश,
कर पाते सब हर इंसान को प्रणाम
होते सभी लोग, सभी के लिए समान।

ना कोई जाति, ना कोई रंग, ना ही कोई लिंग का होता अभिमान
करते सब सभी का आदर,
अहम, राग, द्वेष रखने वालों का होता अनादर
ना हो अहम कभी अपने धर्म का
ना कभी हो अनादर किसी और के धर्म का।
सिखाते हैं सभी धर्म एक ही सिद्धान्त,

सादा जीवन, उच्च विचार, जीवन उपरांत
हो गीता, क़ुरान, बाइबिल या कोई भी धर्म की किताब,
लिखी है सभी में एक ही बात
अच्छे सोच और अच्छे कर्म ही रहते हैं साथ।

होता कितना सुंदर अगर समझ पाते यह सब
ना होती मुश्किलें जो है यहां अब,
काश होता हम सब के नाम के आगे India, भारत, Human या इंसान
तो ना करता कोई भी जाति या धर्म से अपनी पहचान।

पहचाने जाते हम अपने देश से
अपनी इंसानियत से,
जहां भी जाते, सभी होते अपने
देख पाते हम हर जगह।

समझ पाते सभी धर्म, सभी लोगों को
कर पाते पूरे सारे सपने,
होती पहचान स्वयं से
ना कोई जाति, ना कोई धर्म से।

होती अलग कितनी यह दुनिया
होती हर जगह भरपूर खुशियां,
हर इंसान, हर धर्म, हर रंग
हर जाति, हर लिंग को है आदर मेरा।

बस एक आशा है, ना हो इन सबका अहंकार कहीं
देख पाए अगर हम एक देश, एक इंसानियत सभी में
दुनिया होगी विकसित, रहेगी कोई बुराई नहीं।

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