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भगत सिंह की जेल डायरी और उनके लेख आज भी भर देते हैं युवाओं में नई ऊर्जा

27 सितंबर, 1907 को जन्मे भगत सिंह ने सिर्फ 23 साल की उम्र में उस समय के तानाशाही ब्रिटिश सरकार को चुनौती देते हुए हंसते-हंसते शहादत को गले लगा लिया था। हर भारतीय के दिल में भगत सिंह के लिए खास जगह है, क्योंकि 23 साल की छोटी-सी उम्र में जो कुछ भगत सिंह ने कर दिखाया वो लोगों को उनके विचारों पर सोचने को मजूबर करता है।

भगत सिंह ने सिर्फ देश के लिए जान ही नहीं दी, बल्कि उन्होंने भारतीयों को क्रांतिकारी विचारों की विरासत भी दी है। भगत सिंह के पास बराबरी वाले समाज के निर्माण का सपने के साथ ही रास्ता भी था। भगत सिंह ने जवान उम्र में ही अपने लेखों से भारतीय समाज को नई दिशा की ओर मोड़ा।

भगत सिंह के लेख बताते हैं उनके सपने और उसको साकार करने का रास्ता

भगत सिंह की जेल डायरी और बाकी लेख आज भी भारतीयों को नई ऊर्जा देते हैं। भारत में अछूत समस्या, सांप्रदायिकता और उसका इलाज, युवक, मैं नास्तिक क्यों हूं, उनके इन तमाम लेखों से हम यह जान सकते हैं कि भगत सिंह का सपना और रास्ता क्या था।

भगत सिंह ने अपनी जेल डायरी में एक पन्ने पर लिखा है,

“कोई भी व्यक्ति इतना धनी नहीं होना चाहिए कि वह किसी को खरीद सके और ना ही कोई व्यक्ति इतना गरीब होना चाहिए कि वह खुद को बेचने पर मजबूर हो जाए। भारी असमानाताएं निरकुंशता का रास्ता तैयार करती हैं।”

भगत सिंह की यह बात मौजूदा समय पर बिल्कुल सटीक बैठती है। आज के हमारे दौर में भारी असमानताएं हैं और ऐसे समय में आई कोरोना महामारी ने आमजन का जीवन और भी मुश्किल कर दिया है।

क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ऑक्सफैम रिपोर्ट के अनुसार, भारत के अरबपतियों की संपत्ति कुल भारत के बजट से ज़्यादा है। भारत के एक प्रतिशत अमीरों के पास देश की 58% दौलत है और कुल 57 अरबपतियों के पास 70% भारतीयों के बराबर धन है।

वहीं, अक्टूबर 2019 में जारी हुई ग्लोबल हंगर इंडेक्स रैंकिंग के मुताबिक, भारत 117 देशों में 102वें स्थान पर रहा। भारत की सरकारें भूखमरी से लड़ने में नाकाम रहीं हैं।

सरकार के दमनकारी फैसलों के खिलाफ उठानी होगी आवाज़

केंद्र की मोदी सरकार की ओर से की गई नोटबंदी, जीएसटी और महामारी के दौरान बिना तैयारी के लगाए गए लॉकडाउन ने देश को और अधिक गहरे संकट की ओर धकेल दिया है।

केंद्र की ओर से नागरिकता कानून संशोधन के खिलाफ देश भर में आंदोलन हुआ और इसके बाद दिल्ली में हुए दंगों में दिल्ली पुलिस की जांच पर भी सवाल उठ रहे हैं। महामारी के दौरान कई समाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षकों और स्टूडेंट्स को जबरन जेलों में डाला गया है। महामारी के दौरान सरकार का तानाशाही रवैय्या खुलकर सामने आया है।

वहीं, लॉकडाउन के दौरान सैकड़ों मज़दूर शहर से कई मीलों दूर घर लौटने को मजबूर हुए। जम्मू कश्मीर से भी कई मज़दूर पैदल ही यूपी, राजस्थान और अन्य राज्यों के लिए रवाना हुए और यह सब हमारे सामने हुआ और हम चाह कर भी कुछ ना कर पाए।

दूसरी ओर, द वायर की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय रेल ने आरटीआई में बताया कि श्रमिक ट्रेनों में कम से कम 80 मज़दूरों ने अपनी जान गवांई है लेकिन केंद्र सरकार का कहना है कि उनके पास आंकड़ा तक नहीं है। उधर, सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार इसी साल अप्रैल से जून के बीच विकास दर में 23.9 फीसदी की गिरावट आई है।

लुभाने वाले शब्दों से बनाई गई नेशनल ऐजुकेशन पॉलिसी 2020 असल में जनविरोधी है जिसके खिलाफ भी लोगों का विरोध देखने को मिल रहा है। अभी हाल ही में केंद्र सरकार की ओर से खेती के लिए लाए गए दो अध्यादेशों पर भी किसान आंदोलित हो रहे हैं।

उधर, 17 सिंतबर को देशभर में राष्ट्रीय बेरोज़गार दिवस मनाते हुए केंद्र सरकार के विरोध में युवाओं ने हल्ला बोला है। रियासत जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 और 35 ए हटा कर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया है और इसके बाद यहां मौजूदा हालात बद से बदतर होते जा रहें हैं। 4जी इंटरनेट बंद कर दिया गया है। इन हालातों में महामारी ने लोगों के जख्मों को और गहरा कर दिया है।

इस तरह हम देखते हैं कि देश की जनता इस समय महामारी और निरंकुशता दोनों से टकरा रही है। कोरोना वायरस के मामलों के साथ ही सरकार का जनता पर दमन भी बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे समय में भगत सिंह और उनके साथियों को याद करना और भी प्रासांगिक बन जाता है।

आज ज़रूरत है भगत सिंह के विचारों से प्ररेणा लेते हुए लोक संघर्ष को आगे बढ़ाया जाए ताकि महामारी और निरंकुशता दोनों को हराया जा सके।

हम लोगों से अपील करते हैं कि वे कोविड-19 के बचाव के नियमों का पालन करें। शारीरिक दूरी बनाएं लेकिन समाजिक एकता कायम कर संघर्ष को आगे बढ़ाए।

इन हालातों में हमें एक दूसरे की परेशानियों और समस्याओं को समझना होगा। हमें एक-दूसरे की मदद करनी होगी, आपसी भाईचारे को बढ़ाना होगा और क्रांतिकारी आदर्श के साथ एकजुट होकर लोकतांत्रिक और वैज्ञानिक तरीके से समस्याओं का हल ढूंढना होगा।

“…बरखुर्दार, हिम्मत से शिक्षा प्राप्त करना और सेहत का ख्याल रखना, हौसला रखना…”

-भगत सिंह द्वारा छोटे भाई कुलतार को लिखे खत से

“हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली
ये मुश्ते-खाक है फानी,  रहे न रहे”

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