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लड़कों ने मेरी दोस्त को कहा, “तुम्हारा सीना बहुत उभरा है”

जहां एक और हमारे समाज में घरों में लड़कियों के सर संस्कार और अच्छी परवरिश की पोटली बांध दी जाती है, वहीं दूसरी ओर सड़क चलती किसी लड़की को देखकर अभद्रता करने, उनपर छींटाकशी करने से भी यह समाज नहीं चूकता है।

यह कोई कही-सुनी बात नहीं है, बल्कि यदि आप एक लड़की हैं तो इस तरह की घटना से आपको दो-चार होना ही पड़ जाता है। वो लोग जो घरों में बाप, भाई के नाम पर अपनी बहन, बेटियों के पैरों की जंजीर हो जाते हैं, वही किसी चौक चौराहे पर फब्तियां कसने से नहीं चूकते हैं।

ऐसा अनुभव घर से लेकर कार्यस्थल तक हर तरफ किसी ना किसी का होगा ही लेकिन दुखद यह है कि अक्सर इन घटनाओं पर लड़कियां चुप्पी ओढ़ लेती हैं। ये लिखते वक्त एक घटना मेरे दिमाग में बार-बार आ रही है।

बात कुछ पुरानी है, तब मेरी एक दोस्त हॉस्टल में रहा करती थी। एक रोज़ जब मैं उसके ही साथ उसके हॉस्टल की तरफ जा रही थी तब बाइक से चलते दो लोगों ने उसके ऊपर बेहद बुरी तरह से थूकते (पान जैसा कुछ) हुए कहा तुम्हारा सीना बहुत उभरा है, हम बस ढंक रहे हैं और वे लोग बहुत तेज़ी से वहां से निकल गए।

प्रतीकात्मक तस्वीर

यह घटना मेरे लिए इतनी अप्रत्याशित थी कि मैं समझ ही नहीं पाई उसके साथ हुआ क्या? लेकिन मैं कुछ कर नहीं सकती थी क्योंकि ना ही मैंने उन लड़कों के चेहरे देखे थे और ना ही बाइक नम्बर। कई हफ्तों तक यह घटना मेरे दिमाग से नहीं निकली और मेरी दोस्त अपने कमरे से! जैसे उससे कोई बहुत बड़ा अपराध हुआ हो।

इस घटना से भी ज़्यादा अज़ीब था मेरी दोस्त की हॉस्टल वॉर्डन का यह कहना कि ऐसा सिर्फ इसलिए हुआ, क्योंकि तुम लोग उस रास्ते पर थे, जहां लाइट नहीं थी और ऐसा तो यहां होता ही रहता है, इसीलिए हम रौशनी में ही आना-जाना पसन्द करते हैं और तुम्हें भी इसका ध्यान रखना चाहिए था। उस घटना से कहीं ज़्यादा स्तब्द्ध मुझे वॉर्डन के शब्द कर गए।

क्यों छेड़छोड़ होने पर समाज उल्टा लड़कियों को ही डांटने लगता है?

क्या वाकई अंधेरा होने पर ऐसा होता रहना चाहिए? क्या एक लड़की इस डर से अपनी आवाज़ भी नहीं उठा सकती कि अगर घरवालों को पता चला, तो उसे घर वापस बुला लिया जा सकता है? किसी और के अपराध को कोई और कैसे सह सकता है?

मैं इन सारे ही सवालों के जवाब नहीं जानती लेकिन इतना जानती हूं कि हमारे समाज में सदियों से यही चलता चला आ रहा है और इसे खत्म करने के लिए आवाज़ उठाना बहुत ज़्यादा ज़रूरी है।

छेड़खानी एक छोटी मानसिकता और पुरुष की अदम्य प्रवृत्ति का प्रमाण है और कुछ भी नहीं! होने को यह एक छोटा शब्द है लेकिन इसका असर किसी के भी मन पर बहुत गहरा पड़ता है। कई बार उम्रभर को उसके निशान नहीं जाते।

छेड़छाड़ अब बहुत ही आम-सी घटना बन चुकी है जो जब-तब बस-ट्रेन, ऑफिस घर सब तरफ छोटे-बड़े रूप में रोज़ ही घटती रहती है। कई बार डर, तो कभी आदत के तौर पर लड़कियां इसे सहती चली जाती है। इसके खिलाफ हमें अपनी आवाज़ बुलंद करनी होगी।

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