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“धार्मिक भावुकता के बीच दंगे से आखिर किसका नुकसान होता है?”

स्वीडन और नोर्वे दोनों जगह दक्षिणपंथी व्यक्तियों ने कुरान जला दी और कुरान पर अति आस्था रखने वाले मुस्लिम भड़क गए। वहां दंगे शुरू हो गए। आप सोचिए अगर किसी सिक्ख इलाके में गुरुग्रन्थ साहिब, हिन्दू इलाके में गीता, ईसाई इलाके में बाईबल जला दी जाती, तो क्या उस धर्म के लोगों की भावनाएं नहीं भड़कती? और दंगे नहीं होते?

दंगों और धार्मिक भावुकता के बीच के सम्बन्ध को समझने की है ज़रूरत

मैं यहां दंगे भड़कने को जायज़ ठहराने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं कर रहा, बल्कि दंगों और धार्मिक भावुकता के बीच के सम्बन्ध को बताने की कोशिश कर रहा हूं। किसी भी किताब को जला देने से या किसी भी सही या गलत घटना से पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाना, जनहानि करना कभी जायज़ नहीं हो सकता। दूसरी बात कि किताब जला देने वाला विरोध मेरे हिसाब से अपने आप में बेवकूफाना है, चाहे वह अम्बेडकर ने ही क्यों ना किया हो।

अभी हाल ही में बैंगलोर में भी इसी तरह की एक घटना हुई थी। चूंकि स्वीडन और नोर्वे की घटना में भी मुस्लिम एंगल था इसलिए वर्तमान सरकार के अंधसमर्थक और हिन्दुत्ववादी दुष्प्रचार में कूंद गए। भारत में नोर्वे और स्वीडन ट्रेंड करने लगा।

प्रतीकात्मक तस्वीर

ऐसा शायद पहली बार हुआ होगा। भारत में प्रजा बन चुके नागरिकों को देश से बाहर देखने का मौका मिला लेकिन वे सिर्फ वही देख पाए जो उनकी चुनी हुई सरकार उन्हें दिखाना चाह रही थी।

केलिफेट, लैला, सेक्रेड गेम्स्, आश्रम, फैमिली ये सारी वेब सीरीज़ नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध हैं। हर धर्म का कट्टरपंथ लगभग एक जैसा है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बढ़ते चलन के कारण सभी धर्मों का कट्टरपंथ अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है और आपको हिंसक बनाने के प्रयास में लगा हुआ है।

हिटलर ने जो असली आर्यन रक्त होने के नाम पर किया था, वही आज असली मुस्लिम और असली हिन्दू होने के नाम पर देखने को मिल रहा है।

दंगों से किसका फायदा किसका नुकसान?

क्या स्वीडन और नोर्वे  में कुरान जला देने वाले व्यक्ति को फायदा हुआ? शायद हां! वह व्यक्ति दक्षिणपंथी संगठन से सम्बन्ध रखता था अब शायद वह दक्षिणपंथी संघठन का मसीहा बन जाए, बिलकुल वैसे जैसे 2002 नरसंहार के बाद मोदी कट्टरपंथी हिन्दुओं के मसीहा बन गए लेकिन वह स्वीडन और नोर्वे है भारत नहीं। वहां ऐसे व्यक्तियों को तुरंत जेल के सुपुर्द कर दिया जाता है।

क्या दंगे करने वाले उन भावुक मुस्लिमों को फायदा हुआ? बिलकुल भी नहीं! बल्कि लोगों के सामने यह एक बार फिर उजागर हो गया कि धार्मिक किताबों पर आस्था रखने वाले लोगों को बड़ी आसानी से हिंसा के लिए उकसाया जा सकता है। सभी धर्मों के कट्टरपंथियों को इन घटनाओं से फायदा हुआ। अब वे प्रोपेगेंडा और शक्ति से यह फैलाएंगे कि उनका धर्म खतरे में है।

प्रतीकात्मक तस्वीर, तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

इससे सिर्फ धार्मिक राजनीति को बढ़ावा मिलेगा और दुनिया के हथियार बेचने वाले देशों को आर्थिक लाभ होगा। आप दिल्ली दंगों को देख लें या लिंचिंग को ही देख लें। आज असली हिन्दू होने के नाम पर हमारे देश के लोग मुस्लिम कट्टरपन्थियों को ही फायदा पंहुचा रहे हैं।

ज़रा आप सोचिए अखलाक का केस हो या नजीब या दादरी या फिर कश्मीर, इन सब घटनाओं का दुरूपयोग मुस्लिम कट्टरपंथी नेता किस तरह करते होंगे और अल्लाह के नाम पर बदला लेने के लिए जिहाद का इस्तेमाल करते होंगे।

यही बात मुस्लिम कट्टरपन्थियों पर भी लागू होती है। जब भी किसी ईसाई, यहूदी या हिन्दू पर धार्मिक अत्याचार होता है, तो इस कदम से उस धर्म के कट्टरपंथियों को ही बढ़ावा मिलता है। राजनेता इससे बदले की राजनीति भड़का कर लोगों का ध्यान शिक्षा, बेरोज़गारी और क्वालिटी ऑफ लाइफ से हटाकर धर्म युद्ध की तरफ मोड़ देते हैं। यही बात ईसाई, यहूदी या किसी भी धर्म के कट्टरपंथियों पर भी लागू होती है।

नुकसान किसका होते है? जनहित में काम करने वाले लोगों का। लोग बड़ी मेहनत से अपना घर बनाते हैं, गाड़ी खरीदते हैं, सरकारें पब्लिक प्रॉपर्टी का निर्माण करती हैं लेकिन दंगा होने से यह सब एक झटके में तबाह हो जाते हैं। देशों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।

जहां-जहां कट्टरपंथ बढ़ता है उन देशों में धंधे चौपट होते हैं और बिज़नेसमैन वहां इन्वेस्ट करने से डरने लगते हैं। भारत में बाहरी बिज़नेस की फेक्ट्रियां लगनी क्यों बंद हो गई? यह इसका जीता जागता उदाहरण है। वैश्विक आर्थिक मंदी और प्रति व्यक्ति आय असमानता के लिए शायद सबसे बड़ा ज़िम्मेदार कट्टरपंथ ही है।

स्वीडन, नोर्वे और भारत का धार्मिक जनसंख्या अनुपात

जनसंख्या के आधार पर देखें तो स्वीडन में चीन के बाद सबसे अधिक 73% नास्तिक या अधार्मिक लोग हैं। नोर्वे में 62%, डेनमार्क में 61%, स्विट्ज़रलैंड में 58%, फिनलैंड में 55% अधार्मिक हैं। भारत और पकिस्तान में क्रमशः 5% और 6% लोग ही अधार्मिक हैं। अगर हम हमारे पड़ोसी बांग्लादेश की बात करें जो कि साउथ एशिया में सबसे तेज़ तरक्की करने वाला देश है, यहां अधार्मिक लोगों की संख्या करीब 19% है।

कहा जाता है कि धर्म शान्ति लाता है लेकिन आंकड़े यही बताते हैं कि जहां-जहां आस्थावादी लोग कम और तर्कवादी बढ़ते हैं, शान्ति उन्हीं देशों में ज़्यादा है। भारत और पाकिस्तान में पिछले कुछ सालों में कट्टरपंथ लगातार बढ़ा है।

ऑइल पॉलिटिक्स के कारण बोको हरम जैसे कट्टरपंथी संगठनों के बढ़ते वर्चस्व के बाद से ही इस्लामिक इमीग्रेशन लगभग सभी देशों में बढ़ा है। इस्लामिक कट्टरपंथ से सताए हुए मुस्लिम अलग-अलग देशों में पहुंच रहे हैं, इसलिए सभी जगह मुस्लिम जनसंख्या अनुपात बढ़ रहा है। इस तथ्य का दुरूपयोग अन्य धर्मों के कट्टरपंथी कर रहे हैं। वे सिर्फ आधा सच बता कर लोगों को भड़का रहे हैं।

कट्टरपंथ से परेशान लोग नास्तिक देशों की तरफ पलायन कर रहे हैं, क्योंकि क्वालिटी ऑफ लाइफ वहां दुनिया के किसी भी धार्मिक देश से बेहतर है लेकिन नास्तिक देश, कट्टरपंथी देशों से आए व्यक्तियों को सही ढंग से अपना नहीं पा रहे हैं। इसे ना अपना पाने के कई अलग-अलग कारण हैं जैसे संस्कृतियों और प्रथाओं का अंतर, वैज्ञानिक विचारधारा का अंतर और सबसे बड़ा धार्मिक प्रॉपेगेंडा।

पिछले सालों से (खास तौर पर 1992 से) भारत में हिन्दू कट्टरपंथ बढ़ा है और अगर भारत ‘हिंदु राष्ट्र’ में तब्दील हो जाता है तो आप कई भारतीयों का इन बेहतर देशों में पलायन देखेंगे लेकिन तब भारतीयों को भी वही परेशानियां देखनी होगी जो इस समय इस्लामिक पलायनवादियों को स्वीडन, नोर्वे या बाकी यूरोपीय देशों में देखनी पड़ रही हैं।

दिल्ली चुनाव के बाद या फिर 2002 में हुए नरसंहार के कारण कई मुस्लिम इलाके पूरी तरह से खाली हो गए। वहां के मुस्लिम लोग पलायन कर गए। वे मुस्लिम सुरक्षित क्षेत्रों में आसरे के लिए निकले। उन सुरक्षित क्षेत्रों को लगने लगा कि अचानक उन सुरक्षित क्षेत्रों में मुस्लिम लोगों की आबादी बढ़ रही है।

इस वजह से पैदा हुई असुरक्षा के कारण उन सुरक्षित क्षेत्रों में कट्टरपंथ की ओर झुकाव बढ़ा। नरसंहार के कारण खाली हुई जगहों को सरकारी संरक्षण प्राप्त उद्योगपति खरीदते हैं और दोतरफा मुनाफा कमाते हैं। ज़मीन की लड़ाई सरकारी उद्योगपति जीत जाता है और जीवन की लड़ाई इंसान हार जाता है।

कौन से देश हैं असली विश्वगुरु?

स्वीडन, डेनमार्क, नॉर्वे, फिनलैंड, आइसलैंड, न्यूज़ीलैंड, नीदरलैंड इन देशों के राजनैतिक, धार्मिक और सामजिक ढांचे को ध्यान से देखें। आपको जेंडर इक्वेलिटी, इनकम इक्वेलिटी, रोज़गार, शिक्षा, सुरक्षा, कम भ्रष्टाचार या क्वालिटी ऑफ लाइफ किसी भी तरह की अच्छाई का आँकड़ा देखें आपको यही देश टॉप 10 में मिलेंगे।

कतर में प्रति व्यक्ति आय 1,38, 910 अमरीकी डॉलर है जबकि भारत में 9027 अमरीकी डॉलर। श्रीलंका में प्रति व्यक्ति आय 14,509 अमरीकी डॉलर है जबकि 2016 से भारत में प्रति व्यक्ति आय तेज़ी से घटी है। इसलिए प्रति व्यक्ति आय शब्द आप कभी आप सरकार या उनकी ‘मीडिया’ से कभी नहीं सुनेंगे।

भारत सरकार मात्र इकोनोमी के साइज़ के आधार पर विश्वगुरु बनने का सपना बेच रही है और ज़बरदस्ती बिना परिणाम सोचे चीन-अमेरिका की नीतियां नागरिकों पर थोपते जा रही है।

भारत सरकार हमेशा खुद की पाकिस्तान और मिडिल ईस्ट के देशों से खुद की तुलना करके दिखाती है (वो भी मात्र उन्हीं आंकड़ों में जहां भारत इन देशों से आगे हैं), क्योंकि वह नहीं चाहती कि भारतीय नागरिक यह देखें कि कौन-से देश असल मायनों में भारत से बेहतर हैं।

भारत विश्वगुरु तभी बन सकता है जब हर भारतीय नागरिक की क्वालिटी ऑफ लाइफ दुनिया के किसी भी नागरिक से बेहतर होगी और इसके लिए हमें अमेरिका चीन के पीछे नहीं, बल्कि ऊपर बताए हुए देशों से नीतिगत तार्किक फैसला लेना सीखना होगा। जब तक हम अतिवादी केपिटलिस्ट देशों का पिछलग्गू होना नहीं छोड़ते भारत जैसे विविधता वाले देश में कभी किसी नागरिक की ज़िन्दगी में कोई बेहतरी लाना संभव नहीं है।

पुरातन आदर्श समाज के छलावे से बचना होगा

जब भी आप धार्मिक अत्याचार की किसी घटना के बारे में सुनेंगे तो आपको दुनिया के सबसे पुराने धर्म इसमें ज़्यादा शामिल दिखेंगे। इसी पुरानेपन का इस्तेमाल कर कट्टरपंथी यह जताने की कोशिश करते हैं कि उनका धर्म जब इसके मूर्त स्वरूप में था तब आदर्श समाज स्थापित था।

आप शायद समझ पा रहे होंगे कि भारत में रामराज्य शब्द का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है। जहां विज्ञान रोज़ नई-नई खोज और अविष्कार से हमें आगे की ओर ले जा रहा है, वहीं यह धार्मिक कट्टरपंथ बार-बार हमें धमकाता रहता है कि मानव पूर्णपतन की ओर जा रहा है। धार्मिक कट्टरपंथ पुरातन कल्पना के आधार पर मात्र हिंसा भड़काने का काम कर रहा है।

हमें धर्मों से मात्र नैतिक बल को छांट लेने की आवश्यकता है। हमारे पूजा करने का तरीका क्या है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जब भी दिमाग में धर्म के कारण हिंसा का ख्याल आए, तो दूरदर्शी होकर यह ज़रूर सोचना है कि इस हिंसा से हम इनडायरेक्टली फायदा किसको पहुंचा रहे हैं? वैश्विक शांति और मानव विकास के लिए हमें पुरातन छलावों से बचकर वैश्विक एकता और रिफ्युजी लॉ को बहुत ही बेहतर ढंग से अपनाना होगा।

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