आज ही के दिन 1989 में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 को तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति के द्वारा पूरे देश में लागू किया गया था। यह अधिनियम हजारों वर्षों से पीड़ित अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज को प्रशासनिक और कानूनी सुरक्षा मुहैया कराती है और उन पर अत्याचार करने वाले लोगों को कठोर से कठोर सज़ा देने का प्रावधान करता है ।
इस अधिनियम के लागू होने के बाद दलितों पर हो रहे अत्याचार के मामलों में गिरावट तो नहीं आई लेकिन इस अधिनियम के आने के बाद अत्याचारियों मे थोड़ा भय ज़रूर व्याप्त हुआ, जिसके कारण कोई भी गैर-अनुसूचित जाति का व्यक्ति एससी-एसटी पर अत्याचार करने से पहले एक बार सोचता है।
लगातार हो रहे हैं दलितों के अधिकार पर हमले
वर्तमान की केंद्र सरकार के दौरान इस अधिनियम पर लगातार हमले किए गए। इसी दौर में हमने देखा कि सुप्रीम कोर्ट ने एक जजमेंट के द्वारा एससी-एसटी एक्ट को कमज़ोर करने का प्रयास भी किया लेकिन दलित और आदिवासियों की एकता और संघर्ष ने सुप्रीम कोर्ट को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने पर मज़बूर किया।
अंततः भारत की संसद और सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि भारत में रहने वाले दलित आदिवासियों पर लगातार जातिगत अत्याचार और उत्पीड़न बढ़ रहे हैं और इसके निदान हेतु अनुसूचित-जाति और अनुसूचित-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम को सशक्त करने की अत्यंत आवश्यकता है और सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2018 के जजमेंट को बदल दिया।
आंकड़े बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार में दलित और आदिवासियों पर अत्याचार के मामलों में भारी बढ़ोतरी हुई है मसलन 2015 में अत्याचार के मामलों की संख्या 38670 थी, 2016 में 40801 और 2017 मे बढ़कर 43200 हो गया।
अत्याचार के मामलों में जो राज्य प्रमुख हैं, उनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश शामिल हैं। सबसे ज़्यादा अत्याचार उत्तर प्रदेश में होता है और उसके बाद कथित सामाजिक न्याय के साथ विकास करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राज्य बिहार में होता है।
- उत्तर प्रदेश-11000
- बिहार-6700
- मध्य प्रदेश-5800
नीतीश कुमार ने हाल ही में मौखिक रूप से कहा कि यदि बिहार में एससी-एसटी की हत्या होती है, तो उनके परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दिया जाएगा लेकिन इस मौखिक आदेश को अमलीजामा पहनाने के लिए किसी भी प्रकार का लिखित आदेश अभी तक सरकार की तरफ से नहीं आ रहा है, इसलिए यह अभी तक चुनावी जुमला है।
सरकार और व्यवस्था की निरंकुशता है अत्याचार का सबसे बढ़ा कारण
दलितों पर हो रहे अत्याचार का सबसे बड़ा कारण है सरकार और व्यवस्था का निरंकुश होना। साथ ही सिविल सोसाइटी के द्वारा इन मामलों में दलित और आदिवासियों को मदद नहीं करना है। मसलन जिन पर अत्याचार होता है न्याय के लिए उनका हौसला नहीं बढ़ाया जाता, बल्कि उन पर दबाव बनाकर वापस करवाया जाता है, यह समाज की सबसे बड़े घृणित कार्यों में से एक है।
हमारा यह स्पष्ट मानना है कि यदि सरकार चाहती है कि वास्तव में दलितों और आदिवासियों पर किसी प्रकार का अत्याचार नहीं हो, तो इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाने की आवश्यकता है;
- प्रत्येक पुलिस थाने में एक दलित या आदिवासी पुलिस अधिकारी की तैनाती की जाए कि दलित आदिवासियों पर हुए अत्याचार के मामले दर्ज़ कराने में एससी-एसटी को कोई परेशानी ना हो।
- बिहार में यह देखा गया है कि एससी-एसटी के ऊपर हुए अत्याचार के मामलों को पुलिस एफ.आई.आर में तब्दील नहीं करती और मामले को संबंधित सरपंच के यहां वापस भेज दिया जाता है और सरपंच पंचायत करके मामले को रफा-दफा कर देते हैं। मसलन पीड़ित लोग डर कर अपना दर्द कराह कर चुप बैठने पर मजबूर होते हैं।
इन सभी सरकारी कार्यों पर रोक लगनी चाहिए, यह अनुसूचित-जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के खिलाफ हैं। मामले की जांच उच्च स्तरीय पुलिस पदाधिकारी के द्वारा ही की जानी चाहिए। बिहार में चल रहे इस पंचायती राज को खत्म करके कानून का राज कायम करना चाहिए ताकि दलित आदिवासियों को न्याय मिल सके।