Site icon Youth Ki Awaaz

2019 में आत्महत्या करने वाले लोगों की संख्या में 2018 के मुकाबले 3.4% की हुई बढ़ोत्तरी: रिपोर्ट

भारत जैसे अधिक जनसंख्या वाले देश में मज़दूरों की संख्या बहुत अधिक है। 54% मज़दूर तो केवल असंगठित क्षेत्र में ही हैं और बाकी अन्य क्षेत्रों में भी मौजूद हैं। इसी कारण देश में कई योजनाएं बनाई जाती हैं, जिससे हर क्षेत्र से जुड़े मज़दूरों को सहायता मिल सके।

क्या कहते हैं एनसीआरबी के आंकड़ें?

यह अनुमान लगाया जाता है कि तमाम योजनाओं की सहायता से मज़दूरों का लीविंग स्टैंडर्ड बढ़ेगा और उनकी समस्याएं दूर हो सकेंगी लेकिन एनसीआरबी द्वारा जारी आंकड़े इन सभी दावों को खारिज़ कर कुछ अलग ही कहानी बयां करते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

एनसीआरबी के 2019 के आंकडों पर नज़र डालें, तो आप जान पाएंगे कि भारत में 2019 में 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की है। यह आंकड़ा पिछले वर्ष यानी 2018 के मुकाबले 3.4% की वृद्धि पर है लेकिन इन आंकडों में खेतिहर मज़दूरों की बात करें, तो यह मिलता है कि खेती से जुड़े कुल 10,281 लोगों ने अपनी जान दी है, जिनमें 5,957 किसान तो 4,324 खेतिहर मज़दूर हैं।

क्या है कारण?

यह आंकड़ा बहुत भयावह कहानी बयां करता है लेकिन सोचने वाली बात यह है कि आखिर इन मौतों के पीछे क्या कारण हो सकता है?

भारत के प्रसिद्ध मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट विक्रम पटेल का मानना है कि राज्य में और देश में बढ़ती बेरोज़गारी इन दम तोड़ती सांसो के पीछे का सबसे बड़ी वजह है। आज से 10 साल पहले आत्महत्या के मामले इतने अधिक नहीं थे, क्योंकि तब लोगों के पास खासकर मज़दूर वर्ग के पास पर्याप्त काम था लेकिन आज रोज़गार तो कम हुए ही हैं, साथ ही लोगों को भी काम से निकाला जा रहा है।

उपरोक्त सारी जानकारियों के आधार पर यह समझना मुश्किल नहीं होगा कि मज़दूर तबका किस हाल में है और आगे कैसी स्थिति होने वाली है। यह आंकड़े केवल 2019 के हैं। अभी कोरोना काल में बेघर हुए लोग और अपनी जान से हाथ धो बैठे लोगों का आकड़ा आना अभी बाकी ही है।

Exit mobile version