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निजीकरण से इतर सरकारी नौकरियां और संस्थान क्यों हैं ज़रूरी?

unemployment rate in india

भारत में लगातार बढ़ रही है बेरोज़गारी

निजीकरण की तमाम बहस के बावजूद सरकारी नौकरी का मोह जाता नहीं, क्यों? वजह यह है कि सरकारी नौकरी एक तिलिस्मी चाभी है जो एक निम्नवर्गीय व्यक्ति को भी समाज के इलीट क्लास में पहुचने का रास्ता दिखाता है। सदियों से जो दबे कुचले वंचित गरीब रहे हैं, जिनके बाप बड़े व्यवसायी या प्रोपर्टी होल्डर नहीं है, जो बेटे को बड़ी विरासत दे जाएं और कहें बेटा डर मत मैं हूं ना, तुम्हारा भविष्य सिक्योर है।

सरकारी नौकरी उन लोगों की लाइफस्टाइल और जीवन को बेहतर बनाने का मौका है, जो जानते हैं कि उनके पास इतनी पूंजी नहीं कि बड़ा व्यवसाय खड़ा कर सके। चार दुकान किराए पर लगाकर बिना मेहनत कमा खा सके और इज्जत के साथ जी सके।

प्रतीकात्मक तस्वीर

वो आम आदमी यह जानता है कि अपना अतीत और माता-पिता वो बदल नहीं सकता लेकिन उसकी मेहनत और सरकारी नौकरी उसकी किस्मत बदल सकती है।

इसलिए वो हाड़तोड़ परिश्रम करता है, जिस युवा दौर में उसके साथी, मंहगी बाइक कार में सड़क के चौराहों रेस्टोरेंट में लड़कियां घुमा रहे होते हैं, वो किसी शहर के 600 से 1000 रूपए के कमरे में रात 2 बजे तक अपनी आंखें खराब कर रहा होता है। मैकडोनाल्ड डोमिनोज़ कौन कहे, सड़क के ढाबे पर खाने के पहले भी दो बार सोचता है कि उसके पिता कैसे ये सब खर्च मैनेज कर रहे होंगे।

वो ज़िंदगी का सबसे बड़ा दाव खेलता है, जो बड़े-बड़े दिग्गजों के बस की नहीं होती, 18 साल से 30 साल की गोल्डन एज बन्द कमरों की किताबों पर कुर्बान कर देता है, बिना यह सोचे कि जॉब नहीं मिली तो वो क्या करेगा, साहब ज़िंदगी के 18-20 साल सिर्फ एक उम्मीद पर झोंक देना मज़ाक नहीं होता।

ऐसा भी नही होता कि सब सफल ही हों, दहाई और सैकड़ो की संख्या में सीट होती है और लाखों की संख्या में फॉर्म होते हैं। जनरल, एसी एसटी और घपले, रिश्वत और कोर्ट का रिस्क होता है, फिर भी वो लड़ता है, सिर्फ एक उम्मीद पर कि जॉब मिल जाएगी और लाइफ संवर जाएगी।

इसलिए सरकारी नौकरी वालों को दी जाने वाली सैलरी उनके 15-20 साल के तप का फल है। उनकी जॉब उनके इलीट क्लास में घुसने का रास्ता है, क्योंकि जॉब मिलते ही, वो दोस्त जो नज़रें चुराकर निकल जाते थे, वो गर्व से बताते हैं कि मेरा दोस्त आज बड़ा अफसर बन गया, यार काम करवा दो।

जिन घरों की दहलीज पर घुस नहीं सकते थे, वहां से शादी के रिश्ते आने लगते हैं। जिन्होंने कभी आपके बाप से भी तू कहकर बात की हो, वो आप कहने लगते हैं। जिन घरों में खाने को ठीक से अनाज नही होता था, वो भी एयरपोर्ट पर 135/- की चाय पीते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

साहब, अमीरों को फर्क नहीं पड़ता, उनकी लाइफ को बेहतर बनाने के 100 रास्ते वो खुद बना सकते हैं या सरकार या जुगाड़ बना देती है लेकिन गरीब और मध्यम वर्ग का क्या? वो तो ले-देकर सरकारी नौकरी को ही अपनी सबसे बड़ी सीढ़ी समझता है।

निजीकरण अच्छा हो सकता है लेकिन क्या वो गरीब और मध्यम वर्ग को ये सम्मान दे पाएगा? क्या निजीकरण के बाद एक गरीब का बच्चा महंगे कॉलेज से एमबीबीएस, एमडी, इंजीनियर और अफसर बन पाएगा।

अगर नहीं, तो सरकारी संस्थानों के निजीकरण को रोकिए। इसलिए भी क्योंकि आप मिडिल क्लास है और ये निजीकरण एक ऐसी व्यवस्था बनाता है, जिसमें अमीर और ताकतवर होते जाते हैं और बाकी कमज़ोर। भरोसा ना हो तो प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की फीस के बारे में पता कर लीजिएगा और अपनी जेब टटोलकर देखिएगा कि बच्चे को एडमिशन दिला पाएंगे क्या?

जवाब अपने आप मिल जाएगा कि सरकारी संस्थान क्यों ज़रूरी हैं!

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