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समलैंगिकता को अभिशाप क्यों मानता है समाज?

समलैंगिकता, कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिसे देखते ही उनका अर्थ निकल जाता है या कहें कि ऐसे शब्द जिनके कारण समाज उससे मुंह मोड़ लेता है। ‘समलैंगिकता’ शब्द का इस्तेमाल समान लिंग के लोगों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है और समाज में उन्हें हिकारत की दृष्टि से देखा जाता है।

समलैंगिकता क्या है?

आमतौर पर देखा गया है कि बचपन से ही कुछ बच्चों में शारीरिक विकास ऐसे होने लगता है कि वह अपने से विपरीत लिंग की तरह बनने कि चाह रखने लगते हैं और अपने लिंग के लोगों की ओर आकर्षित हो जाते हैं। शुरुआत में अगर वह लड़का हो तो लड़कियों की तरह सजना उनके कपड़े पहना, मेकअप करना, उनकी तरह बातें करना और यदि लड़की है तो लड़कों की तरह व्यवहार करना।

माता-पिता उनको बचपन से ऐसी चीजें करते हुए देखते हैं लेकिन उन्हें लगता है यह उनका बचपना है, उन्हें खुला छोड़ देते हैं लेकिन जब बड़े होने के बाद भी उनका यह व्यवहार नहीं बदलता तो परिवार उनको समझने की बजाय दरिंदगी से पेश आने लगते हैं, नतीजा यही निकलता है कि या तो वे मानसिक अवसाद में आ जाते हैं या कोई गलत कदम उठा लेते हैं।

समलैंगिकता अभिशाप है या वरदान?

जब-जब समलैंगिकों की बात आती है प्रश्न उठता है कि यह समाज के लिए अभिशाप है या वरदान। जहां तक बात करें ना तो यह अभिशाप है और ना ही वरदान।

यह प्राकृतिक है, जब पुरुष में स्त्री और स्त्री में पुरुष के विपरीत शारीरिक गुण एवं व्यवहार पाए जाते हैं, तब समलैंगिक का विकास होता है।ऐसे लोग सेम सेक्स के लोग की तरफ आकर्षित होते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

माता-पिता को लगता है यह कोई बीमारी है। वह उनको दिन-रात डॉक्टर से इलाज करवाते हैं और अंधविश्वास में आकर तांत्रिक विधा से झाड़-फूंक भी करवाने लग जाते हैं और नतीजा इसका असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है।

क्या समलैंगिक विवाह उचित है?

‘मनुस्मृति’ में विवाह के लिए पुरुष और स्त्री का संबंध पवित्र माना गया है, जहां ‘समलैंगिक विवाह’ की बात आती है वहां समाज इस विवाह को उचित नहीं मानता। समाज का मानना है कि यह विवाह धर्म और प्रकृति के विरूद्ध है। वहीं इस श्रेणी के लोग यानी ‘समलैंगिक’ मानते हैं कि प्रेम की कोई भाषा, धर्म, लिंग या जाति नहीं होती है।

जब शुरुआती दौर में यह सुना गया तब सभी लोग अचंभित थे, क्योंकि कुछ लोगों ने समाज को परे रखकर अपने रिश्ते को स्वीकारा और विवाह किया। वर्तमान में जहां हर कार्य के लिए स्वतंत्रता दी गई है, वहीं लोग ‘समलैंगिक’ लोगों के बारे में बातें करने से भी कतराते हैं।

देश में 10 फीसदी लोगों में से 2 फीसदी लोगों ने अपने रिश्ते स्वीकारा है और अधिकतर मामलों में विवाह के बाद या तो उनका समाज से बहिष्कार कर दिया जाता है या फिर ‘ऑनर किलिंग’ के नाम पर मार दिया जाता है।

समलैंगिक लोगों का समाज से बहिष्कार करने के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। 2-3 साल बाद आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को मंजूरी दे दी कि वह अपने मर्ज़ी और मनपसंद तरीके से सम्बन्ध बना सकते हैं। यह गैर-कानूनी नहीं है।

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