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समानता की बात करने वाला समाज माहवारी के दौरान महिलाओं के साथ भेदभाव क्यों करता है?

महिलाएं

महिलाएं

मानव अधिकार वह अधिकार है, जिसमें मनुष्य के पास मानवीय गरिमा का आधार होता है। महावारी के साथ-साथ कई ऐसे मानकों को जिस तरह से समाज इंगित करता है, वह मानव अधिकार के आधार को वास्तव में कमज़ोर करता है।

मानव अधिकार के अंतर्गत समाज के कई आयाम आते हैं। जैसे- अवसरों की बाधा, स्वच्छ स्नान, जल की आपूर्ति और समाज के वातावरण से सामाजिक बहिष्कार आदि। इन सभी का विश्लेषण कर हम जीवन के कई मूलभूत अधिकारों को समझ पाएंगे।

समाज में मानव अधिकार का पूर्ण रूप से हनन ही है, जो महावारी को असमान्य बताकर महिलाओं का शोषण करता है। पूरे विश्व में कई तरह के ऐसे मिथ हैं, कई पाबंदियां हैं जिनमें सिर्फ और सिर्फ महिलाओं को शोषित ही किया जाता है। भारत में कई राज्य ऐसे हैं, जहां माहवारी से सम्बंधित ना जाने कितने ही ऐसे अपराध हैं जिन्हें वहां के लोग अपनी परंपरा मानते हैं।

माहवारी तो एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसमें किसी का कोई हस्तक्षेप नहीं चल सकता है। यह हर महिला को होता है, इसको रोका नहीं जा सकता है मगर हां लोगों को जागरूक किया जा सकता है।

जैसे समाज के हर एक प्राणी को अपने अधिकारों का हक है, वैसे ही महिलाओं को भी अपने अधिकारों का पूर्ण हक है। उनकी भी गरिमा होती है। महावारी के समय उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में बदलाव आता है, जिसके बाद समाज उसको अपवित्र और ना जाने क्या-क्या बोल देता है। ना जाने कितने ही कारक हैं, जो महिलाओं को झेलने पड़ते हैं।

हम सार्वभौमिक रूप से सहमति वाले मानवाधिकारों के विषय में चर्चा कर सकते हैं, जो महिलाओं और लड़कियों के मासिक धर्म के दिनों में उनके हित में साबित हो सकते हैं।

काम करने का अधिकार

भारत अभी भी मासिक धर्म की स्वछता के प्रबंधन के लिए सुरक्षित साधन मुहैया नहीं करवा पाया है। महिलाओं और लड़कियों के लिए मासिक धर्म के दौरान उनकी दर्द और परेशानियों को कम करने के लिए कोई भी राहत नहीं है।

दवाईयां भी सीमित मात्रा में हैं, जिसकी वजह से महिलाओं की प्रोड्क्टविटी पर असर पड़ता है। कई बार उनको इसी वजह से अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ता है। कार्यस्थलों पर उनके साथ भेदभाव किया जाता है। यह उनकी काम करने की क्षमता को प्रभावित करता है। जब सभी को काम करने का अधिकार है, तो इसमें महावारी के दौरान महिलाओं को शिकार क्यों बनना पड़ता है?

स्वास्थ्य का अधिकार

महावारी के समय लड़कियां और महिलाएं मानसिक और शारीरिक परेशानियों से गुज़रती हैं। ऐसे में उनके लिए कोई मज़बूत और ठोस मेडिकल प्रक्रिया का निमार्ण करना चाहिए। उनके कार्यस्थलों पर ऐसे नियम का गठन किया जाना चाहिए, जो उनको महावारी के समय किसी भी तरह की समस्या से बाहर लाने का काम करे।

ऐसे में उनके लिए ज़्यादा सुलभ वातावरण का निर्माण हो पाएगा, जिससे उनको इस बात का डर नहीं रहेगा कि समाज कहीं फिर उन्हें कलंकित साबित करने पर उतारु ना हो जाए।

शिक्षा का अधिकार

जब देश में जब स्वास्थ्य और स्वच्छ्ता के सही इंतज़ाम नहीं होंगे और ना कोई सुरक्षित वातावरण मिलेगा और मासिक धर्म स्वच्छ्ता का प्रबंधन सुचारु रूप से एक्टिव नहीं होगा, तो विद्यालय जाने वाली लड़कियों की उपस्तिथि पर प्रभाव पड़ने के साथ-साथ शैक्षिक परिणामों में भी गिरावट होगी।

सही तरह से दवाईयां और जागरुकता दोनों का आभाव रहेगा तो शिक्षा के स्तर में गिरावट आएगी। ऐसे में लड़कियों का भविष्य अधर में पड़ सकता है। तो यहां यह बात साबित होती है कि लड़कियों की शिक्षा के अधिकार का खंडन हो रहा है।

गैर-भेदभाव और लैंगिक समानता का अधिकार

महिलाओं और लड़कियों के मासिक धर्म से सम्बंधित अवधारणाएं महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण प्रथाएं, कलंक और कई मानदंड ऐसी विचारधाराओं को जन्म देते हैं, जिससे लैंगिक भेदभाव का आगाज़ होता है। यह भेदभाव सिर्फ घरों तक सीमित नहीं होते, लड़कियों और महिलाओं के लिए यह हर क्षेत्र में शर्मिंदगी का उदाहरण बनते हैं, जो पुरुष समाज द्वारा उन पर थोपी जाती है। चाहे विद्यालय हो या ऑफिस, हर जगह महिलाएं मासिक धर्म के दौरान प्रताड़ित होती हैं।

पानी और स्वच्छता का अधिकार

पानी और स्वच्छता की सुविधा, जैसे कि स्नान की सुविधा, जो निजी, सुरक्षित और सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य हैं, साथ ही पर्याप्त, सुरक्षित और सस्ती पानी की आपूर्ति मासिक धर्म स्वास्थ्य प्रबंधन के लिए बुनियादी पूर्वापेक्षाएं हैं। पिछड़े हुए इलाकों में महिलाएं साफ जल के अभाव में कई तरह की बीमारियों से प्रभावित हो जाती हैं। इस विषय में स्वछता और स्वच्छ जल की आपूर्ति को पूरा करना अनिवार्य है।

यह कुछ मानव अधिकार के मौलिक आधार हैं, जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। भारत में रहने वाले हर एक नागरिक को उसके अधिकारों का इस्तेमाल करने का पूर्ण अधिकार है। ऐसे में महिलाओं और लड़कियों के मासिक धर्म के दौरान उनसे भेदभाव करना या उनको कलंकित करना, यह भी एक दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है। लोगों को जागरुक करें और समझाएं कि ये भेदभाव और कुचली हुई प्रथाएं संविधान के खिलाफ हैं।


नोट: इमरान YKA के तहत संचालिच इंटर्नशिप प्रोग्राम #PeriodParGyaan के अगस्त-अक्टूबर सत्र के इंटर्न हैं।

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