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किसानों के सवालों का जवाब क्यों नहीं देना चाहती है सरकार?

झील पर पानी बरसता है हमारे देश में
खेत पानी को तरसता है हमारे देश में
राजनेता हाकिमों और पागलों को छोड़कर
तुम बताओ कौन हंसता है हमारे देश में ।
-संजय सिंह सांसद राज्यसभा  (आप )

कोरोना के इस महामारी के दौर में किसान अध्यादेश लाना उपयोगी नहीं कोई साजिश ही होगी। आज देश का लाखों किसान सड़कों पर किसान अध्यादेश लागू करने के कारण जानना चाहता है लेकिन सरकार उन पर आंसू गैस के गोले छोड़ रही है। लाठियां बरसा रही है, उनके निजी सम्पत्ति को बर्बाद कर रही है। आखिर किसान का गुनाह यही क्या है कि उसने बीजेपी को वोट दिया।

किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह किसानों के बीच

आज असली देश का रक्षक अपने घर परिवार को छोड़कर सड़कों पर है वो जानता है। अगर आज भी हम जुमलों के शिकार हो गए, तो हमारी और हमारे परिवार की गिनती भी उन्हीं साढ़े चार लाख किसानों की तरह हो जाएगी। जो पहले सरकार की गलत नीतियों के कारण आत्महत्या कर चुके हैं।

खैर, अब तो किसान विरोधी सरकार ने किसानों के उत्पीड़न और आत्महत्या के आंकड़े भी दिखाने बन्द कर दिए, ये सरकार की नीयत बताती है कि सरकार कितनी किसानों की हितैसी है। हम छोटे-छोटे बिंदुओं को देखकर समझ सकते हैं कितने भरोसे और खूबसूरत धोखों से यह सरकार किसानों को छल रही है।

हमेशा की हितैषी होने का दावा करने वाली सरकार कभी डीजल-पेट्रोल के दामों पर बात क्यों नहीं करकृती है। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति कई सालों से कर्ज़ा मुक्ति पूरा दाम के लिए आंदोलन और संघर्ष कर रही है कभी संसद में इस पर बिल क्यों नहीं लाया गया।

प्रधानमंत्री फसल बीमा करने वाली कम्पनियों को लाखों करोड़ों का फायदा हुआ लेकिन किसान की फसल बर्बाद होने पर कभी भी उसे बीमा कम्पनियों से सही ढंग से उसका मुआवजा नहीं मिला।

किसान को गुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ने की एक साजिश है किसान अध्यादेश 2020

अब बताते हैं देश के किसान का असली मुद्दे किसान अध्यादेश में बारे में, इस अध्यादेश में देश के किसान के लिए तीन बिल पेश हुए जो हितकारी नहीं दमनकारी कैसे है। पहले जान लेते हैं वो बिल कौन-से हैं और उसमें क्या-क्या है?

सरकार का पक्ष क्या है?

कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020 राज्य सरकारों को मंडियों के बाहर की गई कृषि उपज की बिक्री और खरीद पर टैक्स लगाने से रोकता है और किसानों को लाभकारी मूल्य पर अपनी उपज बेचने की स्वतंत्रता देता है।

सरकार का कहना है कि इस बदलाव के ज़रिए किसानों और व्यापारियों को किसानों की उपज की बिक्री और खरीद से संबंधित आज़ादी मिलेगी, जिससे अच्छा माहौल पैदा होगा और दाम भी बेहतर मिलेंगे।

सरकार का कहना है कि इस अध्यादेश से किसान अपनी उपज देश में कहीं भी, किसी भी व्यक्ति या संस्था को बेच सकते हैं। इस अध्यादेश में कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी मंडियों) के बाहर भी कृषि उत्पाद बेचने और खरीदने की व्यवस्था तैयार करना है। इसके ज़रिए सरकार एक देश, एक बाजार की बात कर रही है।

किसानों के विरोध के बीच लोकसभा में पास हुए कृषि से जुड़े इस बिल पर प्रधानमंत्री ने भरोसा दिया कि एमएसपी और सरकारी खरीद की व्यवस्था बनी रहेगी। किसान अपना उत्पाद खेत में या व्यापारिक प्लेटफॉर्म पर देश में कहीं भी बेच सकेंगे। इस बारे में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा में बताया कि इससे किसान अपनी उपज की कीमत तय कर सकेंगे।

प्रदर्शन करते किसान, तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

वह जहां चाहेंगे अपनी उपज को बेच सकेंगे जिसकी मदद से किसान के अधिकारों में इजाफा होगा और बाज़ार में प्रतियोगिता बढ़ेगी। किसान को उसकी फसल की गुणवत्ता के अनुसार मूल्य निर्धारण की स्वतंत्रता मिलेगी।

लोकसभा में बिल पास करते हुए सरकार ने कहा कि इस बदलाव के ज़रिए किसानों और व्यापारियों को किसानों की उपज की बिक्री और खरीद से संबंधित आज़ादी मिलेगी। जिससे अच्छे माहौल पैदा होगा और दाम भी बेहतर मिलेंगे।

आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन (The Essential Commodities (Amendment) Bill)

पहले व्यापारी फसलों को किसानों के औने-पौने दामों में खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे और कालाबाज़ारी करते थे, उसको रोकने के लिए Essential Commodity Act, 1955 बनाया गया था जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गयी थी।

अब नए विधेयक आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को हटाने के लिए लाया गया है।

हम जानते हैं कि यह हमारे लिए कतई लाभकारी नहीं है और इस आड़ में आप MSP को भी खत्म करना चाहते हैं। बिल में जो Trade शब्द को उपयोग किया उसमें आपकी नियत बताती है कि आपके बिल में ही नहीं नीयत में भी खोट है।

आज हम 86% किसान क्या वाकई इन सुविधाओं का लाभ ले सकेगा कभी नहीं छोटे-छोटे किसान अपनी फसल को बेचने के लिए अपने गाँव से शहर तक की मंडी में अनाज बेचने बड़ी मशक्कत से आ पाते हैं क्या वो दूसरे राज्यो में आ सकेंगे?

दिल्ली के रामलीला मैदान में किसान आंदोलन के दौरान किसान नेता सरदार वीएम सिंह

किसान नेता अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के राष्ट्रीय संयोजक सरदार वी एम सिंह जी ने भी कहा,

“सरकार एक राष्ट्र, एक मार्केट बनाने की बात कर रही है लेकिन उसे यह नहीं पता कि जो किसान अपने ज़िले में अपनी फसल नहीं बेच पाता है, वह राज्य या दूसरे ज़िले में कैसे बेच पाएगा। क्या किसानों के पास इतने साधन हैं और दूर मंडियों में ले जाने में खर्च भी तो आएगा।”

सरकार किसानों के सवालों का जबाब क्यों नहीं देना चाहती?

इस अध्यादेश की धारा 4 में कहा गया है कि किसान को पैसा तीन कार्य दिवस में दिया जाएगा। किसान का पैसा फंसने पर उसे दूसरे मंडल या राज्य में बार-बार चक्कर काटने होंगे। ना तो दो-तीन एकड़ ज़मीन वाले किसान के पास लड़ने की ताकत है और ना ही वह इंटरनेट पर अपना सौदा कर सकता है। यही कारण है किसान इसके विरोध में है।

अगर यह बिल इतना ही लाभकारी है और किसानों को आज़ादी देता है, तो फिर यूरोप और अमेरिका जैसे कई देशों में पहले से ही लागू बावजूद इसके वहां के किसानों की आय में कमी आई है। यहां पर अगर खेती बची है तो उसकी वजह बड़े पैमाने पर सब्सिडी के माध्यम से दी गई आर्थिक सहायता है।

हम तो सोचते हैं, तो फिर बिहार में किसान को खुशहाल होना चाहिए क्योंकि बिहार में 2006 से एपीएमसी नहीं है और इसके कारण होता यह है कि व्यापारी बिहार से सस्ते दाम पर खाद्यान्न खरीदते हैं और उसी चीज को पंजाब और हरियाणा में एमएसपी पर बेच देते हैं, क्योंकि यहां पर एपीएमसी मंडियों का जाल बिछा हुआ है।

यदि सरकार इतना ही किसानों के हित को सोचती है, तो उसे एक और अध्यादेश लाना चाहिए जो किसानों को एमएसपी का कानूनी अधिकार दे दे, जो यह सुनिश्चित करेगा कि एमएसपी के नीचे किसी से खरीद नहीं होगी।

इससे किसानों का हौसला बुलंद होगा लेकिन सरकार को आज किसानों से राय भी लेना नहीं चाहती पहले सरकारे किसान संगठनो के साथ विचार विमर्श करती थी लेकिन आज ऐसा क्यों नहीं आज अधिकारियो और भ्रष्टाचारियों के बीच किसानों को फंसाया जा रहा।

विवाद सुलझाने के लिए 30 दिन के अंदर समझौता मंडल में जाना होगा। वहां न सुलझा तो धारा 13 के अनुसार एसडीएम के यहां मुकदमा करना होगा। एसडीएम के आदेश की अपील जिला अधिकारी के यहां होगी और जीतने पर किसानें को भुगतान करने का आदेश दिया जाएगा।

देश के 85 फीसदी किसान के पास दो-तीन एकड़ जोत है। विवाद होने पर उनकी पूरी पूंजी वकील करने और ऑफिसों के चक्कर काटने में ही खर्च हो जाएगी, तो फिर किसान खायेगा क्या परिवार कैसे चलायेगा या फिर उसके पास एक ही रास्ता होगा आत्महत्या सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में बदलाव करके निजी हाथों में खाद्यान्न जमा होने की इजाजत दे दी है।

अब सरकार का इस पर कोई नियंत्रण नहीं होगा। कोरोना संकट के बीच यह नियंत्रण सरकार के हाथ में इसलिए लोगों को कम से कम अनाज को लेकर दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा। इससे धीरे-धीरे कृषि से जुड़ी पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी। निजी व्यापारी सप्लाई चेन को अपने हिसाब से तय करते हैं और मार्केट को चलाते हैं, जिसका सीधा असर ग्राहकों पर पड़ेगा।

आज यही हाल बुन्देलखण्ड के किसान के है लेकिन क्या करे नेताओं के जुमलों, खुद की गरीबी, प्रकृति की मार से आहत है और वो तो किसी बड़े आंदोलन और मांग करने में भी असक्षम है क्योंकि उनका तो पूरा परिवार एक किसान के रूप में मुखिया के भरोसे बैठा है।

किसान अध्यादेश का विरोध करते शेतकरी संगठन के नेता रविकांत तुपकर, महाराष्ट्र

बस आज इतना ही कहना चाहूंगा कि मेरे युवा किसान साथियों सच्चे भारतवासियों मैं आशीष शाक्यवार बुन्देलखण्ड का किसान होने की हैसियत से इतना कहना चाहूंगा कि जल, ज़मीन, किसान को बचाये रखना नहीं तो किसी दिन हमारी थाली में ना तो बासमती होगा ना ही शुद्ध अनाज, अगर हमें मिलेगा तो 70 साल पहले का गुलामी वाला निवाला, इसलिए मेरे साथियों याद रखना जब कभी भी फोन पर हैलो और बाय बोलना तो याद रखना देश के किसान के देश के सैनिक के लिए जय किसान, जय नौजवान बोलना क्योंकि इसमें शर्म नहीं किसानों का हौसला बुलंद होगा।

आज अगर पूरे देश में किसान अध्यादेश का विरोध है और यहां तक कि एक पंजाब के किसान ने ज़हर खाकर अपनी जान दे दी है, इसको देखते हुए सरकार को इस बिल पर दोबारा बैठक करनी चाहिए और देश के मुख्य किसान संगठनों की राय लेना इस बिल में किसान को लाभकारी घोषित हो सकता है, नहीं तो अब किसान अगर बोना जानता है तो काटना भी और सरकार अब पूरी तैयारी कर ले जाने की।

अंत मे कुछ लाइनें

जब जब देश पर संकट आया है
तब तब यही किसान काम आया है
आशीष शाक्यवार

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