धर्म हमारे देश के लिए हमेशा से एक बहस का मुद्दा रहा है। मसलन, बहस तब और विवादित हो जाता है, जब बात नास्तिक और आस्तिक की होने लग जाए। यदि मुझसे कोई पूछता है कि क्या मुझे भगवान पर विश्वास है?
तो कई सवाल मेरे ज़हन में आते हैं। जैसे- बाढ़ के कारण होने वाली मौतें या कोरोना संक्रमण के कारण विश्वभर में उत्पन्न हालातों को दुरुस्त करने के वक्त भगवान कहां चले जाते हैं? देश से गरीबी दूर करने का कोई मैजिक भगवान क्यों नहीं करते हैं? किसी महिला का जब शोषण हो रहा होता है, तो भगवान स्वयं क्यों नहीं प्रगट हो जाते हैं?
इन सवालों को इस लोकतंत्र में उठाना बेहद ज़रूरी है, ताकि आस्था के नाम पर अंधविश्वास ना फैले। यह अच्छी बात है कि पूजा करने से यदि हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है, तो हमें ज़ाहिर तौर पर करना चाहिए मगर किसी पर यह कतई नहीं थोपना चाहिए कि नास्तिक लोग बुरे होते हैं।
काफी समय पहले मेरे एक मित्र ने मुझसे पूछा था कि मैं क्यों भगावन को नहीं मानता हूं? क्यों मैं भगावन की पूजा-अर्चना नहीं करता हूं? इस मसले पर कई लोग मुझे घेर चुके हैं। आज उन तमाम लोगों को इस लेख के ज़रिये मैं जवाब देना चाहता हूं।
हां, मैं नास्तिक हूं! मैं पूजा-पाठ नहीं करता हूं। जब मेरा परिवार गरीबी से जूझ रहा था और दिन रात हम भगावन की उपासना करते थे तो भगवान नहीं आएं। उन्होंने हमारी मदद नहीं की। जब मेरे गाँव में डायन के नाम पर महिलाओं का शोषण किया जा रहा था, तब भी भगवान ने आकर उन महिलाओं की रक्षा नहीं की।
अब बताइए, ऐसे में मैं कैसे भगवान की पूजा करूं? ऐसे में मैं कैसे खुद के नाम के आगे आस्तिक जोड़ूं? शिक्षा के ज़रिये हमें यही सीख मिली है कि यदि कोई लगन के साथ मेहनत करता है तो उसे कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता है। ऐसे में हम मेहनत ना करें और दिन रात आरती करते रहें तो क्या फायदा?
हां, मेरे नास्तिक होने पर सवाल उठाने वालों से मेरा यही कहना है कि मैं उस रोज़ भगवान की पूजा करना शुरू कर दूंगा जब भगवान देश की अर्थव्यवस्था को दुरुस्त कर देंगे, कोरोना का नाश हो जाएगा, गरीबी दूर हो जाएगी, हर महिला सुरक्षित रहेगी और किसानों को आत्महत्या नहीं करना पड़ेगा।