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मुख्यधारा का मीडिया हमारी-आपकी खबरों से दूर क्यों होता जा रहा है?

मुख्यधारा का मीडिया यानी कि वह मीडिया जिसकी तरफ देश की बड़ी आबादी सही जानकारी और सही विश्लेषण की उम्मीद लगाए बैठी होती है। आज का मुख्यधारा का मीडिया जिस तरीके से काम करता है, उसको देखकर यह लगता है कि यह मीडिया सत्ताधारी पार्टियों का जनसंपर्क अधिकारी बनकर रह गया है।

अच्छे काम किए जाने पर नेताओं की तारीफ और बुरे काम किए जाने पर आलोचनाएं भी बनती है, उसके साथ एक जनता का भी विश्लेषण ज़रूरी है लेकिन मीडिया इन सब चीज़ों से बचती नज़र आ रही है।

इसके साथ ही मीडिया का जो मुख्य काम है कि जनता की आवाज़ को उठाए उसको भी मीडिया खुद दबाते नज़र आती है। इस बात में कोई भी दो राय नहीं होगी कि मीडिया फिलहाल सरकार का तोता बनकर ज़्यादा नज़र आ रही है।

बेरोज़गारी, जीडीपी, कोरोनावायरस और किसानों के मुद्दे पर मीडिया में चुप्पी क्यों है?

हाल ही में भारत में इतने सारे मुद्दे हैं जैसे कि बढ़ती बेरोज़गारी, घटती जीडीपी, कोरोनावायरस को लेकर प्रशासन की बदइंतज़ामी लेकिन फिर भी मीडिया को लगातार रिया चक्रवर्ती और सुशांत सिंह राजपूत केस को दिखाना सही लगता है, क्योंकि जनता में उसकी विशेष रूचि है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

इस बार जीडीपी में सिर्फ कृषि क्षेत्र में वृद्धि देखी गई बाकी सभी क्षेत्र घाटे में थे, फिर भी किसानों के साथ हो रहे अत्याचार के लिए इन तमाम चैनलों का एक भी पत्रकार उपलब्ध नहीं था क्यों? क्योंकि वहां पर सत्ताधारी पार्टी का हुकुम चलता है, अगर सत्ताधारी पार्टी चाहे तो वह किसी भी मीडिया को अपने रुख  की तरफ पलट सकती है।

आजकल अखबारों की भी कुछ खास अच्छी हालत नहीं है। अखबारों में हर तरफ विज्ञापन छपे हैं, ऐसा लगता है कि आप कोई  विज्ञापन की पत्रिका लेकर पढ़ रहे हैं और आपको खरीदारी करनी हो। ऐसा लगता है जैसे हम कोई अखबार नहीं पढ़ रहे हो।

यह सिलसिला तब तक चलता रहेगा जब तक जनता जनार्दन इनका साथ देती रहेगी, नहीं तो जनता को इसके लिए आवाज़ उठानी पड़ेगी और जनता को अपने हक की खबरें और अपने हक का सच जानने का पूरा अधिकार होना चाहिए।

जनता इसको तब समझेगी जब वह इनके खिलाफ कुछ आवाज़ उठाना चालू करें। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया को कहा जाता है। ऐसे में, अगर यही पक्ष और विपक्ष में फंस कर रह जाएगी, तो फिर खबरें कौन देगा?

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