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टीआरपी के जुगाड़ में मीडिया आपके मुद्दों के अलावा सुशांत-रिया, दीपिका, कंगना सब पर बहस कर रही है

बॉलीवुड मात्र एक इंडस्ट्री नहीं, देश का नंबर वन पचिंग बैग है। आपको जहां कहीं का भी गुस्सा हो, सड़क टूटी हो, मंदी छाई हो, घोटाले हो रहे हों, भूख से जनता मर रही हो, बैंकों में फंसे खुद के ही पैसे के लिए लोग कतार में खडे हों, पेट्रोल के दामों से परेशान हों, कुछ भी हो, आप सारा गुस्सा बॉलीवुड पर निकाल सकते हैं। यह सुविधा आपको विश्व की किसी संस्थान में नहीं मिलेगी।

आप उस युवक के चेहरे का भाव देखिए जिसने अभी-अभी खबर पढ़ी हो कि अब होगी बॉलीवुड माफिया की जांच, सुशांत केस में आया ड्रग एंगल, रिया गई सलाखों के पीछे, बॉलीवुड के बड़े नामों का हुआ खुलासा, दीपिका ने मंगवाई चरस की गोली, राकुल प्रीत सिंह के आंगन में गांजे का पौधा, अनुराग के घर से बरामद हुई हैश, इन सबके बाद खुशी का ठिकाना देखिए फिर।

पहले प्रेम की लताओं से लिपटे आशिक-सा वह देश का युवा झूम उठता है। उसे देख आपका दिल और दिमाग एकदम तरोताज़ा हो जाएगा। वाह, वाह देश की मीडिया ने तो कमाल कर दिया! ऐसी पत्रकारिता की मिसालें दो दशकों तक दी जाएंगी।

एक नहीं, दो नहीं, दस-दस घंटे के प्राइम टाइम, तीखी बहसें और अध्यात्मिक स्तर का आत्ममंथन नेशनल टीवी पर हो रहा है और देश का युवा उसे अमृतजल समझ कर पिए जा रहा है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

बात भी सही है, बस यह बॉलीवुड सुधर जाए तो देश के विकास की गाड़ी आगे बढ़े लेकिन देश का युवा इतना भी बौद्धिक तौर पर समतल नहीं है। उसने ट्विटर और फेसबुक से अमूल्य ज्ञान प्राप्त कर खुद को बहुत कुशाग्रबुद्धि बना लिया है। इतनी आसानी से भटकता नहीं है।

इसीलिए जब तक ऐसी खबरों में पाकिस्तान का ज़िक्र नहीं आता, उसके किसी से मतलब की नहीं है। खबर जगत में जब तक नारको टेरर शब्द, दाऊद का स्माइलिंग फेस, बॉलीवुड की हस्तियों के चेहरे, वाइट पाउडर की लकीरें और फिल्मों से उड़ाए गए पार्टियों के सीन ना आ जाए, युवा विश्वास नहीं करता।

फिर चाहे घर की खिड़की के बाहर किसानों का एक हुजूम आंदोलन कर रहा हो, किसान पेड़ से लटकें मर रहे हों, करोड़ों की संख्या में रोज़गार गायब हो गए हों, सरकारी भर्तियां कम हो गयी हों, PPE किट के घोटाले हो रहे हों, स्वास्थ्य व्यवस्था की धज्जियां उड़ चुकी हों, पता नहीं चल रहा हो कि पीएम केयर फंड आखिर केयर किसकी कर रहा है?

सरकार के पास किसी प्रकार का कोई डेटा ना हो लेकिन यह सब बातें फिजूल की बाते हैं। यह सब विपक्ष द्वारा फैलाए गए भ्रम है ताकि देश सुशांत के इंसाफ की लड़ाई भूल जाए ताकि देश बॉलीवुड में मच रहे ड्रग उत्पात पर ध्यान ना दे पाएं। यही तो असली साजिश है।

राष्ट्रवादी मीडिया को ऐसी तुच्छ बातों पर समय जाया करना भी नहीं चाहिए। नेगेटिव खबरें दिखाकर या देश की समस्याएं बताकर वह क्या साबित करना चाहते हैं? देश का युवा समझदार है। बेरोज़गारी को अवसर समझता है। निजीकरण को मानवता की सेवा और परम पूज्य पूंजीपतियों को देश का असली मालिक और इन मालिकों की देख रेख के लिए ही तो चौकीदार नियुक्त किया है। चौकीदार को सब ध्यान है।

विश्व में किसी के पास एंटायर पॉलिटिकल साइंस की डिग्री नहीं है लेकिन मयूर-स्वामी के पास है। वह कोई छोटे-मोटे बादशाह नहीं है, बहुत बड़े बादशाह हैं। छोटे-मोटे होते तो क्या इतनी बड़ी दाढ़ी होती? बड़ी दाढ़ी होना महानता की निशानी है। बड़े दाढ़ी वाला झूठ नहीं बोलता। सत्य की गंगा बहा देता है और इसी सत्य की गंगा में शायद आज पूरा देश डूबा है।

माफ कीजिए, अगर गुस्सा आ गया हो तो लेकिन गुस्से का इलाज़ है। अपना प्यारा बॉलीवुड लीजिए दे मारिए इस पचिंग बैग पर ज़ोर से और देखिए कैसे सब चंगा-सी हो जाएगा।

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