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साइबर बुलिंग का ट्रेंड लगातार बढ़ता क्यों जा रहा है?

cyber crime and bullying

तकनीक और सोशल मीडिया के विस्तार के साथ ही तेज़ गति से साइबर बुलिंग का भी विस्तार हुआ है। जैसा की एक कहावत है, “शब्द घाव देते हैं, अफवाह लोगों को बर्बाद करती हैं लेकिन बुलिंग इंसान को मार देती है।”

क्या होती है बुलिंग?

अगर बुलिंग को आम भाषा में समझें, तो प्रताड़ित करने का एक ऐसा तरीका जिसमें एक ताकतवर इंसान अपने से कमज़ोर पर उसकी मर्ज़ी के खिलाफ काम करने के लिए उसे बाध्य करता है या ज़बरदस्ती उसे वो काम करने लिए मज़बूर करता है जिसे वो नहीं करना चाहता है।

इसमें किसी कमज़ोर इंसान को फोटो, विडियो और फर्ज़ी सोशल मीडिया अकाउंट के ज़रिए शर्मसार और बेइज़्ज़त भी किया जाता है।  आमतौर पर बुलिंग कई स्तर पर होती है, उदाहरण स्वरूप स्कूल में, ऑफिस में, कॉलेज में और सोशल मीडिया साइट्स इत्यादि पर, अगर इसे आसान शब्दों में कहें तो ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से बुलिंग होता है।

ऑफलाइन बुलिंग का मतलब आपके सामने कोई आपके धर्म जाति, रंग, भेद, मोटा पतला या क्षेत्र का नाम लेकर आपको नीचा दिखाने की कोशिश करता है, वहीं ऑनलाइन में किसी टेक्स्ट मैसेज, कमेंट या पोस्ट के ज़रिए जिसमें फोटो और विडियो भी हो सकता है। बुलिंग की जाती है।

फेसलेस एनिमी करते हैं ऑनलाइन बुलिंग

इंटरनेट एक तरफ जहां दोस्तों, घर वालों, रिश्तेदारों और ऑफिस के लोगों को नज़दीक लेकर आया है, वहीं लोगों को एक ग्लोबल विलेज का स्वरूप भी दिया है। वहीं इसने आपके आसपास बहुत से छुपे दुश्मनों को भी बैठा दिया है, जिसे इंग्लिश में ‘फेसलेस एनिमी’ यानी बिना चेहरे वाला दुश्मन कहा जाता है, अर्थात् जिसकी कोई पहचान नहीं हो और यह कोई भी हो सकता है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

ऑनलाइन बुलिंग के ज़्यादातर केसेज़ में पीड़ित शोषण करने वाले के खिलाफ किसी भी प्रकार की करवाई से बचने की कोशिश करता देखा गया है, जिसकी अहम वजह समाज में बेइज़्ज़ती से घबराना और कानून का कम जानकार होना है।

अगर हम हाल फिलहाल या पिछले कुछ दिनों को देखें तो मशहूर पत्रकार राणा अय्यूब, बरखा दत्त, स्वाति चतुर्वेदी, सगारिका घोष समेत कई बड़ी हस्तियां साइबर बुलिंग और ट्रोलिंग का शिकार हो चुकी हैं। वहीं किसी बड़े नेता या सेलेब्स के अकाउंट को हैक किए जाने की खबरें भी आमतौर पर देखने और सुनने को मिल ही जाती हैं।

ऐसे समय में जब दुनिया भर की आबादी से ज़्यादा डिवाइसेज हों, ऐसे में साइबर बुलिंग के खिलाफ बनाए गए कानूनों का प्रचार प्रसार बेहद ज़रूरी हो जाता है। दुनिया भर में इस वक्त 22 बिलियन डिवाइसज इंटरनेट से कनेक्टेड हैं, जबकि पूरे विश्व की आबादी महज़ 7.3 बिलियन के आसपास है यानी प्रतिव्यक्ति लगभग तीन डिवाइसेज।

दूसरी तरफ 1.3 बिलियन आबादी वाले भारत देश में इस वक्त लगभग 1.5 बिलियन कनेक्टेड डिवाइसेज हैं। भारत में साइबर बुलिंग से लड़ने के लिए बहुत से कानून तो नहीं हैं लेकिन सरकार ने कुछ कानून बनाए हैं जो पहले से मौजूद हैं, उन कानूनों का जनता तक पहुंचना बेहद ज़रूरी है।

ऐसे समय में जब सरकार खुद “डिजिटल इंडिया” जैसे प्रोग्राम को बढ़ावा दे रही है, साइबर बुलिंग के खिलाफ ठोस कदम उठाए जाने की भी सख्त ज़रुरत है। साइबर बुलिंंग की गंभीरता को समझते हुए इस पर तत्काल काम करने और साइबर बुलिंग करने वालों के साथ सख्ती से निपटने की भी ज़रुरत है।

हाल के दिनों में हमने कई ऐसे मामले देखें हैं जिसमें पीड़ित ने साइबर बुलिंग का दंश झेलने के बाद आत्महत्या कर ली है। कोरोना महामारी के इस दौर में इस तरफ ध्यान देने की ज़्यादा ज़रुरत इसलिए भी है, क्योंकि देश की ज़्यादातर पढ़ने-लिखने वाली आबादी किसी-ना-किसी तरह इंटरनेट से जुडी हुई है।

तस्वीर साभार: YKA यूज़र

Comaparitech.com के मुताबिक भारत के किशोर दुनिया में सबसे ज़्यादा बुलिंग का शिकार होते हैं। वहीं बच्चों के अधिकारों से सम्बंधित एक दूसरी संस्था के रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में किए गए 630 लोगों पर एक सर्वे के अनुसार, 9.2 प्रतिशत लोगों ने साइबर बुलिंग का सामना किया था, जिसमें से तकरीबन आधे लोगों ने उसकी रिपोर्ट दर्ज़ नहीं कराई।

जानकारों के मुताबिक बुलिंग के तीन मानक हो सकते हैं:

इसके अलावा पावर में बने रहने के लिए भी दूसरो को बुली किया जाता है और यह एक बेहद संगीन मामला है। कई रिपोर्ट्स के मुताबिक आम तौर पर देखा गया है की लड़कियां कमेंट के ज़रिए जबकि लड़के ज़्यादातर केसेज़ में फोटो या विडियो के ज़रिए बुलिंग करते हैं।

बहुत से सोशल मीडिया साइट्स पर अकाउंट बनाने के लिए आयु की समय-सीमा तय तो है लेकिन वो इतनी लचीली है कि कोई भी उसका  उल्लंघन आसानी से कर लेता है। चार में से तीन किशोरों को सोशल मीडिया की उम्र की समय-सीमा के बारे में या तो ज्ञान नहीं होता है या वो इसका पालन नहीं करते हैं।

फेसबुक पर आईडी बनाने की न्यूनतम आयु सीमा 13 वर्ष है, वहीं दूसरे सोशल मीडिया साइट्स पर यह सीमा 18 बरस तक की है। अमेरिका के एक संगठन की तरफ से जारी की गई एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक बुलिंग के सबसे ज़्यादा मामले इंस्टाग्राम पर देखे गए हैं, वहीं इस मामले में फेसबुक दूसरे नंबर पर है।

विश्व स्तर पर हर तीन इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले में से एक बच्चा है, वहीं भारत में तीन में से दो इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले शख्स की उम्र 12 वर्ष से 29 वर्ष के बीच की है।

Child Rights and You नामक संगठन के मुताबिक सर्वे किए गए कुल किशोरों में से 31 फीसदी किशोरों की दो फेसबुक आईडी थी।  बुलिंग की एक अहम वजह एक आदमी के पास दो-दो सोशल मीडिया आईडी का होना भी है।

बुलिंग की वजह से आइडेंटिटी फर्ज़ीवाड़े को भी काफी बढ़ावा मिल रहा है, जानकारों और रिपोर्ट्स के मुताबिक जिन बच्चों के साथ 9 या इससे ज़्यादा बार बुलिंग की घटना हुई है वो सोशल मीडिया साइट्स पर अपनी पहचान छुपाना शुरू कर देते हैं। हालांकि ज़्यादातर मामलो में ऐसा भी देखा गया है कि बच्चे घर वालों की नज़र से बचने के लिए भी किसी नकली नाम से आईडी बना लेते हैं।

ऑनलाइन गेमिंग का बढ़ता रुझान भी साइबर बुलिंग का एक अहम और मुख्य कारण है, जहां पर बुल्ल्यिंग के चान्सेज तकरीबन 53 फीसद तक होते हैं। वहीं घर के व्यस्क व्यक्ति का ध्यान भी उस तरफ कम ही जाता है। ऐसे में ऑनलाइन गेमिंग पर हो रहे साइबर बुलिंग को भी काफी संजीदगी से लेने की ज़रुरत है। इस मामले में सरकार को भी ध्यान देने कि ज़रुरत हैं।

एनसीआरबी के रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2017-18 में महिलाओं और किशोरों के साथ बुलिंग के मामलों में 36 फीसदी की वृद्धि देखी गई है। वहीं दोषी ठहराए जाने के मामले में कमी दर्ज़ की गई है, जो 40 प्रतिशत से घटकर 25 फीसद ही रह गई है जबकी आधे से ज़्यादा मामलो में बुलिंग रिपोर्ट भी नहीं की गई है।

कोरोना महामारी के इस दौर में जहां पढ़ाई-लिखाई से लेकर ऑफिस, शॉपिंग, गेमिंग और टाइम पास तक का काम सोशल मीडिया जैसी साइट्स के सहारे हो रहा है ,ऐसे में लोगों के बीच बुलिंग से सम्बंधित जानकारी पंहुचाना भी काफी अहम हो गया है।

तस्वीर साभार: YKA यूज़र

सरकार और समाज की तरफ से साइबर बुलिंग को लेकर उदासीनता बेहद चिंता का विषय है। समाज और सरकार दोनों ही इस बड़े खतरनाक और तेज़ी से फैल रहे ज़हर को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं जो आने वाले वक्त में बेहद घातक साबित हो सकती है।

सोशल मीडिया पर लगातार देखी जाती है साइबर बुलिंग

जैसा कि हम हर दिन सोशल मीडिया की विभिन्न साइट्स पर देखते हैं, खासकर ट्विटर और फेसबुक पर कि जब किसी की सोच दूसरे की सोच से मेल नहीं खाती है, तो उसे ट्रोल करना शुरू किया जाता है। गाली-गलौज किया जाता है।

कई मामलों में महिलाओं को रेप की धमकियां भी मिलती हैं जो एक बेहद खतरनाक ट्रेंड हैऔर इससे भी खतरनाक यह कि समाज उसे संगठनात्मक तरीके से अपना एक हिस्सा मानते हुऐ ऐसी चीज़ों को नॉर्मल और सामान्य मानने लगा है।

किसी को भी उसके, नस्ल, रंग, जाति, मज़हब, क्षेत्र और भाषा की बुनियाद पर दी जाने वाली गाली और नीचा दिखाने का काम बिल्कुल सही नही हो सकता है।

हाल ही में ऐसा भी देखा गया की जब कोई व्यक्ति किसी पार्टी या सोच से इत्तेफाक नहीं रखता और संवैधानिक तरीके से अपना विरोध दर्ज़ कराता है, तो उसके लिए भी उसे और उसके घर वालो को, उसके शहर, राज्य यहां तक कि उसके धर्म को गाली दी जाती है। लगातर उसकी साथ बुलिंग की जाती है।

लोगों को समझना होगा की किसी भी राजनीतिक पार्टी, व्यक्ति या संगठन से समक्ष विरोध प्रकट करना, किसी धर्म या मज़हब से नफरत करना बिल्कुल नहीं है। सरकार को ऑफलाइन तथा ऑनलाइन बुलिंग के खिलाफ तत्काल कड़ा रुख अपनाने की सख्त ज़रूरत है।

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